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बिखरे मोती

बिखरे मोती भाग-62

अनीति नीति सी लगै, जब होता निकट विनाशगतांक से आगे….वाणी का संयम कठिन,परिमित ही तू बोल।वाणी तप के कारनै,बढ़ै मनुज का मोल ।। 708 ।। अच्छी वाणी मनुज का,करती विविध कल्याण।वाणी गर होवै बुरी,तो ले लेती है प्राण ।। 709 ।। कुल्हाड़े से काटन वृक्ष तो,पुन: हरा हो जाए।बुरे वचन के घाव तै,हृदय उभर नही […]

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बिखरे मोती भाग-61

सारा खेल बिगाड़ दे, एक अहंकार की चूकगतांक से आगे….दुष्टों का सहयोग ले,उपकृत हो यदि संत।श्रेय को लेवें दुष्टजन,कड़वा होवै अंत ।। 695 ।। भाव यह है कि सत्पुरूषों को चाहिए कि जहां तक हो सके किसी सत्कार्य में दुष्टों का सहयोग नही लेना चाहिए। अन्यथा दुष्टजन सत्कार्य का श्रेय स्वयं लेकर संतों को उपेक्षित […]

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बिखरे मोती भाग-60

धर्म से अर्जित धन टिकै, चहुं दिशि यश फेेलायगतांक से आगे….कार्य में परिणत नही,तो रखो गुप्त विचार।दृढ़ संकल्प के सामने,अनुकूल होय संसार ।। 679।। मन उत्तम स्थिर मति,करै ना निज को माफ।सूरज की तरह चमकता,जिसका दामन साफ ।। 680।। करै दूसरों का मान जो,और राखै शुद्घ विचार।निज समूह में श्रेष्ठ हो,जैसे मणि हो चमकदार ।। […]

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बिखरे मोती भाग-59

जीवन में कभी भूल कै, मत करना अभिमानगतांक से आगे….निश्चय बुद्घिमान का,और देवों का संकल्प।विद्वानों की नम्रता,इनका नही विकल्प ।। 667।। धृति क्षमा सत दान को,भूलकै भी मत त्याग।पुरूषार्थ को मिलै सफलता,जाग सके तो जाग ।। 668।। आज्ञाकारी पुत्र हो,प्रियवादिनी नार।सेहत विद्या लक्ष्मी,से प्रिय लगै संसार ।। 669।। अर्थात वश में रहने वाला पुत्र हो, […]

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बिखरे मोती भाग-58

क्षमावान का भी कोई, बैरी पनप न पाय गतांक से आगे….जो राजा डरपोक हो,और संन्यासी बनै कांप।इनको भूमि निगलती,ज्यों चूहे को निगलै सांप।। 653 ।। ‘संन्यासी बनै कांप’ से अभिप्राय है-जो ज्ञानवान संत हैं, किंतु नदी के रेत की तरह एक ही स्थान पर पड़े हैं। दुष्टों की पूजा नही,बोलै न वचन कठोर।।संतों का आदर […]

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बिखरे मोती भाग-57

अध्यात्मवाद की वैदिक पद्घति : संध्योपासन-भाग दो गतांक से आगे……आचार्य भद्रसेनमहाराज कृष्ण गीता में कहा है-इंद्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन:।हे अर्जुन! इंद्रियां बड़ी बलवान हैं। ये जबरदस्ती मन को अपनी ओर खींच लेती हैं। अत: इंद्रियों के बलवान होने के साथ साथ उनका सन्मार्गगामी होना भी परमआवश्यक है। यह तभी होगा, जब उनके अंदर से […]

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बिखरे मोती भाग-56

आदर मिले न खैरात में, चाहता हर इंसानगतांक से आगे….आदर मिले न खैरात में,चाहता हर इंसान।गुणों के बदले में मिले,बनना पड़ै महान ।। 636 ।। अर्थात इस संसार में सम्मान हर व्यक्ति चाहता है किंतु यह उपहार में नही मिलता है। इसे तो आप अपने विलक्षण गुणों के द्वारा अर्जित करते हैं। इस संदर्भ में […]

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बिखरे मोती भाग-55

मंजिल पर पहुंचे वही, जिनके चित में चावगतांक से आगे….सन्तमत और लोकमत,कभी न होवें एक।अवसर खोकै समझते,बात कहै था नेक।। 632 ।। कैसी विडम्बना है? वर्तमान जब अतीत बन जाता है तो व्यक्ति की तब समझ में आता है कि मैं तत्क्षण कितना सही अथवा कितना गलत था? ठीक इसी प्रकार यह संसार सत्पुरूषों की […]

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बिखरे मोती भाग-54

ऐसे जीओ हर घड़ी, जैसे जीवै संतगतांक से आगे…. ऐसे जीओ हर घड़ी,जैसे जीवै संत।याद आवेगा तब वही,जब आवेगा अंत ।। 630 ।। प्रसंगवश कहना चाहता हूं कि ‘गीता’ के आठवें अध्याय के पांचवें श्लोक में भगवान कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं, हे पार्थ!

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बिखरे मोती भाग-53

दिव्यता से सौम्यता मिलै, ये साथ चले श्रंगारगतांक से आगे….सजा सके तो मन सजा,तन का क्या श्रंगार।दिव्यता से सौम्यता मिलै,ये साथ चले श्रंगार ।। 628 ।। भावार्थ यह है कि अधिकांशत: लोग इस नश्वर शरीर को ही सजाने में लगे रहते हैं जबकि उनका मन छह विकारों काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और ईष्र्या तथा […]

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