स्वराज्यार्थ यत्न आ य्द्वामीयचक्षसा मित्र वयं च सूरयः | व्यचिष्ठे बहुपाय्ये यतेमहि स्वराज्ये || ( ऋग्वेद ५-६६-६ ) शब्दार्थ — हे ईयक्षसा = प्राप्तव्य ज्ञानवाले , मित्रा = प्रीतियुक्त स्त्री-पुरुषों ! , वाम् = आप दोनों के , सूरयः = विद्वान् , च = और , वयम् = हम मिलकर , व्यचिष्ठे = अति विशाल […]
श्रेणी: आज का चिंतन
ओ३म मनुष्य, आस्तिक हो या नास्तिक, बचपन से ही उसके मन में सृष्टि व इसके विशाल भव्य स्वरूप को देखकर अनेक प्रश्न व शंकायें होती हैं। एक प्रश्न यह होता है कि इस सृष्टि का रचयिता कौन है और उसने किस उद्देश्य से इसकी रचना की है? इसका उत्तर या तो मिलता नहीं है और […]
प्रार्थना – क्या सही क्या गलत ऐसी प्रार्थना कभी न करनी चाहिये और न परमेश्वर उस को स्वीकार करता है कि जैसे हे परमेश्वर! आप मेरे शत्रुओं का नाश, मुझ को सब से बड़ा, मेरी ही प्रतिष्ठा और मेरे आधीन सब हो जायँ इत्यादि, क्योंकि जब दोनों शत्रु एक दूसरे के नाश के लिए प्रार्थना […]
भारतवर्ष में देवों का वर्णन बहुत रोचक है | देवों की संख्या तैंतीस करोड़ बतायी जाती है और इसमें नदी , पेड़ , पर्वत , पशु और पक्षी भी सम्मिलित कर लिये गये है | ऐसी स्तिथि में यह बहुत आवश्यक है कि शास्त्रों के वचन समझे जाएँ और वेदों की वास्तविक शिक्षाएँ ही जीवन […]
ओ३म् ============= आज रविवार दिनांक 5-9-2021 को हम आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के रविवारीय सत्संग में सम्मिलित हुए। हमने समाज में सम्पन्न अग्निहोत्र में भाग लिया। आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी यजमान के आसन पर उपस्थित होकर यज्ञाग्नि में साकल्य से आहुतियां दे रहे थे। यज्ञ आर्यसमाज के विद्वान पुरोहित श्री विद्यापति शास्त्री जी […]
ललित गर्ग शिक्षक दिवस एक अवसर है जब हम धुंधली होती शिक्षक की आदर्श परम्परा एवं शिक्षा को परिष्कृत करने और जिम्मेदार व्यक्तियों का निर्माण करने की दिशा में नयी शिक्षा नीति के अन्तर्गत ठोस कार्य करें। लेकिन इसके लिए ‘सबके प्रयास’ की जरूरत है। गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र […]
डॉ. दिनेश चंद्र सिंह जो व्यक्ति जिस क्षेत्र में उन्नति की पराकाष्ठा की मंजिल को प्राप्त करने का संकल्प धारण करते हैं, उन्हें उसी प्रक्रिया से कठिन, दुर्गम, अगम्य एवं असाध्य कष्ट की कंकड़ीली व अत्यंत परिश्रमपूर्ण, स्वलक्ष्य केंद्रित उपलब्धि के लिए संकल्प से सिद्धि की साधना करनी पड़ती है। भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान रही […]
🌷 ईश्वर की सत्ता 🌷 वेद ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखते हैं और आस्तिकता के प्रचारक हैं। वेद नास्तिकता के विरोधी हैं। परन्तु संसार में कुछ व्यक्ति हैं जो ईश्वर की सत्ता को स्वीकार नहीं करते। वेद ऐसे लोगों की बुद्धि पर आश्चर्य प्रकट करता है और उनकी भर्त्सना करता है। न तं विदाथ […]
ओ३म् पं. ओमप्रकाश वर्मा आर्यसमाज की पिछली पीढ़ियों से परिचित एकमात्र ऐसे आर्योपेदेशक थे जिन्हें आर्यसमाज के वरिष्ठ संन्यासियों, भजनोपदेशकों, आर्यविद्वानों के साथ कार्य करने का अनुभव प्राप्त था। उनके स्मृति-संग्रह में आर्यसमाज के गौरव को बढ़ाने वाली अनेक ऐतिहासिक घटनायें थी जिन्हें आर्यजन एवं इसके शीर्ष विद्वान भी उनसे लेखबद्ध करने का आग्रह करते […]
ओ३म् ========= मनुष्य के जीवन के दो यथार्थ हैं, पहला कि उसका जन्म हुआ है और दूसरा कि उसकी मृत्यु अवश्य होगी। मनुष्य को जन्म कौन देता है? इसका सरल उत्तर यह है कि माता-पिता मनुष्य को जन्म देते हैं। यह उत्तर सत्य है परन्तु अपूर्ण भी है। माता-पिता तभी जन्म देते हैं जबकि ईश्वर […]