गायत्री मन्त्र: ओ3म् भूर्भुव:स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। घियो यो न: प्रयोदयात।। गायत्री मन्त्र में प्रथम जो (ओ3म) है यह ओंकार शब्द परमेश्वर का सवार्वेत्तम नाम है, क्योंकि इसमें जो अ, उ और म् अक्षर मिलकर एक (ओ3म्) समुदाय हुआ है, इस एक ओ3म् नाम से परमेश्वर के बहुत नाम आते हैं जैसे-अकार से विराट्, […]
श्रेणी: आज का चिंतन
आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी शिव पुराण के रुद्र संहिता तृतीय पार्वती खण्ड के अध्याय 54 में राजा हिमवान की पत्नी मेना की इच्छा के अनुसार एक ब्राह्मण-पत्नी द्वारा शिव पार्वती विवाह के उपरान्त पार्वती जी को पतिव्रत धर्म का उपदेश दिलाया गया है। इसी को बाद में तुलसी दास जी ने राम चरित मानस […]
ओ३म् ========= मनुष्य मननशील प्राणी को कहते हैं। हम मननशील हैं, अतः हमारा प्रमुख कार्य मननपूर्वक सभी कार्यों को करना है। मनुष्य संसार में आता है तो वह संसार को देख कर जिज्ञासा करता है कि यह संसार किसने बनाया है? सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, ग्रह-उपग्रह तथा लोक लोकान्तर किसने बनाये हैं? पृथिवी पर वायु, जल, […]
चिंतन आलोचना ,समीक्षा और निंदा यह तीनों शब्द समानार्थक से प्रतीत होते हैं यद्यपि तीनों शब्दों में मौलिक अंतर है। तीनों शब्दों का एक विस्तृत आयाम है। एक शब्द होता है लोचन, उसी से जब ‘आ’ प्रत्यय हुआ तो वह आलोचन हो गया। लोचन का अर्थ है देखना। इसी से आलोचना शब्द की उत्पत्ति होती […]
सब धरती कागद करूँ लेखनी सब बन राय ॥ सात समुन्द्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ॥ तीन लोक नौ खण्ड में गुरु से बड़ा न कोय। करता करे ना करि सकै , गुरु करे सो होय ॥ (वाणी कवीर साहिब) ‘गुरुदेव ‘ का अर्थ जो अन्धकार से प्रकाश में ले […]
_______________ पृथ्वी पर जो असंभव है, अंतरिक्ष में वह संभव है| पृथ्वी से 9 गुना बड़ा 54 गुना भारी हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे भारी ग्रह शनि जो सूर्य से 140 करोड़ किलोमीटर दूर है |उसे लगभग 30 साल लग जाते हैं सूर्य का एक चक्कर लगाने में… लेकिन शनि ग्रह की विचित्रता विशालता का […]
ओ३म् -कृष्ण जन्माष्टमी पर्व 18 अगस्त, 2022 पर- =========== मनुष्य का जन्म आत्मा की उन्नति के लिये होता है। आत्मा की उन्नति में गौण रूप से शारीरिक उन्नति भी सम्मिलित है। यदि शरीर पुष्ट और बलवान न हो तो आत्मा की उन्नति नहीं हो सकती। आत्मा के अन्तःकरण में मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार यह […]
बचपन में जो चीज़ें सबसे अनोखी लगती हैं, उनमें से एक होती है परछाई | कभी लम्बी हो जाती है, कभी छोटी हो जाती है | धुप निकले तो होती है, कभी कभी नहीं भी होती है | कई बच्चे अपनी परछाइयों से ही खेलते बड़े होते हैं | परछाई वैज्ञानिक चीज़ है | परछाई […]
ओ३म् ========= वेद मनुष्य के गुण, कर्म व स्वभाव को महत्व देते हैं। जो मनुष्य श्रेष्ठ गुण, कर्म व स्वभाव वाला है वह द्विज और गुण रहित व अल्पगुणों वाला है उसे शूद्र कहा जाता है। द्विज ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य को कहते हैं जो गुण, कर्म व स्वभाव की उत्तमता से होते हैं। ब्राह्मण […]
हमारे शरीर की अपनी छाया होती है और अपने आसपास बनी रहती है। प्रकाश होने पर भूतल पर तो छाया होती है ही, किंतु वह परछाई होती है और जो शरीर के चतुर्दिक ध्यानपूर्वक अवलोकित होती है, वह छाया है। इसको ‘प्रभामण्डल’ कहा जा सकता है। आज की भाषा में ओरा। इसका कदाचित पहला शास्त्रीय […]