नये भारत के निर्माण की नींव में बैठा इंसान सिर्फ हिंसा की भाषा में सोचता है, उसी भाषा मेें बोलता है और उससे कैसे मानव जाति को नष्ट किया जा सके, इसका अन्वेषण करता है। बदलते परिवेश, बदलते मनुज-मन की वृत्तियों ने उसका यह विश्वास और अधिक मजबूत कर दिया कि हिंसा हमारी नियति है, […]
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भारत प्राचीनकाल से संस्कार आधारित नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने वाला देश रहा है। इस देश ने शिक्षा को मानव निर्माण से विश्व निर्माण का एक सशक्त माध्यम माना और इसीलिए शिक्षा को व्यक्ति का मौलिक अधिकार घोषित कर ज्ञानवान होने को व्यक्ति की मौलिक आवश्यकता माना। 1947 में जब देश आजाद हुआ तो हमारे संविधान […]
आतंकवाद का अंतर्राष्ट्रीय षडय़ंत्र हम देखते हैं किअशिक्षा से त्रस्त समाज भारत में सर्वाधिक मुस्लिम समाज है। इस समाज को मुल्ला-मौलवियों ने आज भी जकड़ा हुआ है। इस कठमुल्लावाद के विरूद्घ फिर भी वहां विद्रोह नहीं हैै। न कोई मुल्ला आतंकवाद की भेंट चढ़ा और न कोई मस्जिद अथवा मदरसा? आखिर ऐसा क्यों नहीं हुआ […]
पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन और वे सभी राष्ट्र अथवा संगठन जो भारत से या तो शत्रुता रखते हैं अथवा ईष्र्या करते हैं, क्या अशिक्षित और बेरोजगार हैं? क्या वे लोग जो भारत को पुन: इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए सक्रिय हैं और यहां एक सुनियोजित रणनीति के अंतर्गत आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं वे अशिक्षित […]
इन नेताओं को कौन समझाये कि भारत में आतंकवाद की समस्या का मूल कारण अगर ‘अशिक्षा’ और बेरोजगारी होती तो भारत में क्रांति होती। सारे भूखे और बेरोजगार अशिक्षित संसद की ओर कूच करते, हमारे राजभवनों को आग लगाते, बैंक खातों में जमा धनराशि का हिसाब लेते और अपने अधिकारों का सम्मान करने वाले लोगों […]
आतंकवाद भारत की ही नहीं, अपितु आज विश्व की एक बड़ी समस्या बन चुका है। सही अर्थों में मानव समाज की यह बुराई मानव के दानवी स्वरूप की सनातन परंपरा का अधुनातन स्वरूप है। विश्व के पिछले दो हजार वर्ष के इतिहास को यदि उठाकर देखा जाये तो जिन लोगों ने ईसाइयत और इस्लाम के […]
फ्रायड का फ्राड और भारतीय शिक्षा फ्रायड नाम के विदेशी मनोवैज्ञानिक ने एक शब्द पकड़ लिया ङ्ख्रञ्जष्ट॥ वाच। इसकी व्याख्या उसने करते हुए कहा कि देखो इसका प्रथम अक्षर ङ्ख कह रहा है कि ‘वाच यौर वर्डस’ अपने शब्दों पर ध्यान दें कि आप क्या कह रहे हैं? इसी प्रकार र से एक्शन ञ्ज से […]
विजय शर्मा सरकारी इंजीनियरिंग, मेडिकल और तकनीकी शिक्षण संस्थानों की कमी के चलते प्रदेश में निजी गैर मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थान कुकरमुत्तों की तरह उग आए हैं। ये युवाओं के साथ छल कर रहे हैं और जाने-अनजाने शासन-प्रशासन उसका भागीदार है। ऐसे संस्थानों एवं इन्हें चलाने वालों के खिलाफ कठोर कदम उठाने की जरूरत हैज् […]
चंदन श्रीवास्तव उच्च शिक्षा-संस्थानों में कौन कितना बेहतर है, यह निर्धारित करने के लिए सरकार ने एक देसी फ्रेमवर्क बनाया है. संस्थानों को उनकी श्रेष्ठता के क्रम में ऊपर से नीचे सजाने की तरकीब आकर्षक लग सकती है और जरूरी भी. जो अभिभावक अपने होनहारों की उच्च शिक्षा पर बरसों की जमा रकम खर्च करने […]
डॉ. मधुसूदनशिक्षा के माध्यम का बदलाव, भारत की क्रान्तिकारी प्रगति का सशक्त मौलिक कारण मानता हूँ। यह ऐसा धुरा है, जिस पर सारे राष्ट्र की प्रगति का चक्रीय (Merry Go Round) हिण्डोला आधार रखता है, और कुशलता पूर्वक चतुराई से, प्रबंधन करनेपर, प्रचण्ड गति धारण कर सकता है; सपने में भी जो किसी ने, सोची […]