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स्वास्थ्य

अखरोट मानव शरीर के लिए जरूरी, साल भर कर सकते हैं सेवन

रोगों की रोकथाम और स्वास्थ्य में अखरोट (वालनट) की भूमिका पर यहां चिकित्सा जगत के विशेषज्ञों ने चर्चा की और कहा कि अखरोट का सेवन हृदय रोगों, कैंसर, आयु से जुड़े रोगों और मधुमेह जैसी समस्याओं में सकारात्मक परिणाम देता है तथा पोषक तत्वों की विविधता के साथ यह पूरे साल उपयोग के लिये आदर्श […]

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राजनीति

आजादी के बाद विचारधारा से हटी कांग्रेस

28 दिसंबर 1885। कांगे्रस का स्थापना दिवस। दिन के 12 बजे थे और मुंबई का गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कालेज कांग्रेसजनों से खचाखच भरा था। अंग्रेज अधिकारी एलन आक्टेवियम ह्यूम ने व्योमेश चंद्र बनर्जी के सभापतित्व का प्रस्ताव रखा और एस सुब्रमण्यम अय्यर और काशीनाथ त्रयंबक तैलंग ने उसका समर्थन किया। इस तरह कांग्रेस का जन्म […]

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बिखरे मोती

दिशाएं होते सत्पुरूष, देते सत्सन्देश

बिखरे मोती-भाग 222 गतांक से आगे…. दिशाएं होते सत्पुरूष, देते सत्सन्देश। परहित जिनका धर्म है, रहते खुशी हमेश ।। 1159 ।। व्याख्या:-विश्वमंगल करने के लिए विधाता धरती पर ऐसी दिव्यात्माओं का आविर्भाव किया करता है, जो सत्पुरूष कहलाती हैं। ऐसी दिव्यात्माओं का स्वभाव ऋजुता (कुटिलता रहित होना) से ओत-प्रोत रहता है। सरलता, शीलता, प्रेम और […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-75

गीता का चौदहवां अध्याय और विश्व समाज गीता निष्कामता और फलासक्ति के त्याग को अपना प्रतिपाद्य विषय लेकर चल रही है। हर अध्याय का निचोड़ गीता के इसी प्रतिपाद्य विषय के आसपास ही आकर ठहरता है। अब जो विषय चल रहा है, वह यही है कि- रूह अलग है देह से देह करे व्यापार। खेत […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-74

गीता का तेरहवां अध्याय और विश्व समाज संसार के जितने भर भी चमकते हुए पदार्थ हैं-उनमें वह परमपिता परमेश्वर ज्योति की ज्योति अर्थात परम-ज्योति बनकर विराजमान है। यही वेद कहता है -‘ज्योतिषां ज्योतिरेकम्।’ वह अंधकार से परे है-वेद भी कहता है-‘तम स: परस्तात्’- श्रीकृष्ण जी भी उस ‘ज्ञेय’ का अर्जुन को कुछ ऐसा ही पता […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

हिन्दू राज्य की स्थापना के लिए संघर्ष करता रहा वीर बैरागी

यह सोच हमें छलती है यदि कोई हमसे यह कहे कि भारत के इतिहास में कहीं थोड़ा बहुत तथ्यात्मक परिवर्तन हो भी गया है तो इससे अंतर ही क्या आया है? वही विश्व है, वही धरती है, वही सूर्य है और वही चंद्रमा है। जब सब कुछ वही है तो इस बात को लेकर रोने […]

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बिखरे मोती

चित्त का चिन्तन ठीक हो, तो मनुज का हो उत्थान

बिखरे मोती-भाग 221 गतांक से आगे…. काश! ऐसा हो कि हम अपने आत्मस्वरूप को पहचानें और प्रभु प्रदत्त चित्त रूपी मानसरोवर जो प्रेम, प्रसन्नता शान्ति, क्षान्ति, क्षमा, धैर्य, सौहाद्र्र, संतोष, उदारता, वात्सल्य, स्नेह, श्रद्घा, समर्पण इत्यादि सद्भावों का जलाशय है। यदि मानव इस जलाशय में नित्य प्रति अवगाहन करेगा, इस जलाशय में गोता लगाएगा अर्थात […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-73

गीता का तेरहवां अध्याय और विश्व समाज ब्रहमाण्ड का क्षेत्रज्ञ कौन है? अब श्रीकृष्णजी कहते हैं कि अर्जुन! अब मैं तुझे यह बतलाऊं कि ‘ज्ञेय’ क्या है? अर्थात जानने योग्य क्या है? वह क्या है जिसे जान लेने पर अमृत की प्राप्ति की जाती है? इस ‘ज्ञेय’ के विषय में बताते हुए श्रीकृष्णजी कहते हैं […]

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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

जब बजी वेद की बांसुरिया

जन डोले जीवन डोले और डोला सब संसार रे जब बजी वेद की बांसुरिया रे 1. परमेश्वर की अनुकम्पा से एक तपस्वी आया। जिसने जनता को नवयुग का नव संदेश सुनाया हो प्यारे नव संदेश सुनाया रे…. जब…. 2. जनता जागी निद्रा त्यगी सुमिर-सुमिर ओंकार रे…. जब बजी वेद की… सब पाखण्डी कुरीतियों से उडक़र […]

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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

जन्मजात दार्शनिक

स्वामी दयानन्द जन्मजात दार्शनिक थे, इस कारण नहीं कि वे प्रारम्भ से मूडी या उदासमुख थे, अपितु इस कारण कि भावी दार्शनिक की भांति बाल्यकाल से उनकी आत्मा में जीवन की जटिल समस्याओं का हल खोजने की ललक थी। इस प्रयोजन से उनके जीवन की दो घटनायें प्रस्तुत की जा रही हैं जो भविष्य में […]

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