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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-26

यदि अस्पृश्यता आदि विकृतियां भारत की संस्कृति होतीं तो अलग-अलग कालखण्डों में आये अनेकों समाज सुधारकों को उनके विरूद्घ आवाज उठाने की ही आवश्यकता नहीं पड़ती, और ना ही उनके सत्कार्यों का इतिहास वन्दन करता। राष्ट्र सर्वप्रथम भारत में विद्यार्थियों के भीतर राष्ट्र सेवा का भाव जागृत करने के लिए राजा और रंक के बच्चों […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-25

हमारे प्राचीन ऋषियों ने पशु-पक्षियों की अनेकों प्रेरणास्पद कहानियों का सृजन किया, और उन्हें बच्चों को बताना व पढ़ाना आरंभ किया। उसे बच्चे के मनोविज्ञान के साथ जोड़ा गया और परिणाम देखा गया कि बच्चों पर उसका आशातीत प्रभाव पड़ा। वेद और उपनिषदों की गूढ़ बातों को पशु-पक्षियों की कहानियों के माध्यम से आचार्य लोग […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-24

अपनी बात को मनवाने के लिए महर्षि दयानंद ने अंग्रेज सरकार को सितंबर 1874 में एक ज्ञापन दिया था। जिसमें उन्होंने आर्ष संस्कृत शिक्षा को भारत में पुन: लागू कराने का आग्रह सरकार से किया था। ज्ञापन में लिखा था-”इससे मेरा विज्ञापन है-आर्यावर्त देश का राजा अंग्रेज बहादुर से कि संस्कृत विद्या की ऋषि-मुनियों की […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-23

ऐसे लोग मनुष्य मात्र के शिक्षक व प्रेरक होते हैं, और आलस्य आदि शत्रुओं से रहित होकर धारणा, ध्यान, समाधि का अनुष्ठान करने वाले, परम उत्साही, योग्य, सर्वस्व त्यागी निष्काम विद्वान महान मोक्ष को प्राप्त करते हैं। ऐसे लोग ईश्वर और मृत्यु को सदा साक्षी रखते हैं और प्रत्येक प्रकार के पापकर्म से अपने आपको […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

दुर्गादास और महाराजा अजीतसिंह के लिए पौ फट गयी

पकड़ी दक्षिण की राह मेवाड़ के महाराणा की शिथिलता से राष्ट्रीय आंदोलन की गति पर विपरीत प्रभाव पड़ा। मेवाड़ से और वहां के महाराणा से मिलने वाली निराशा की क्षतिपूर्ति के लिए लोगों ने दक्षिण की ओर देखना आरंभ किया। फलस्वरूप शाहजादा अकबर और दुर्गादास राठौर शिवाजी के पुत्र शम्भाजी के राज्य के लिए चल […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-67

इदन्नमम् का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो इदन्नमम् की सार्थक जीवन शैली ही विश्वशांति और विश्व कल्याण की एकमात्र कसौटी है। अभी तक हमने इसी विषय पर पूर्व में भी कई बार अपने विचार स्पष्ट किये हैं। अब इस अध्याय में पुन: कुछ थोड़ा विस्तार से अपने विचार इस विषय पर रखे जा रहे हैं।  […]

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बिखरे मोती

भगवद् भक्ति का लक्ष्य पीछे छूट गया

बिखरे मोती-भाग 194 गतांक से आगे…. भोजन वसन तन को दिये, सुंदर दिये आवास, भक्ति-रस ना दे सका, नहीं बुझी हंस की प्यास ।। 1127।। व्याख्या :-हाय रे मानव! तेरी मनोदशा देखकर मुझे करूणा आती है। पता नहीं कितने जन्मों के बाद तुझे यह नर-तन मिला है, इसे तो प्यारा प्रभु ही जानता है। इसीलिए […]

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अन्य

आवश्यकता है पत्रकारिता को पहचानने की

राकेश आर्य (बागपत) एक समय था जब हम किसी समाचार के लिए कहते थे कि अमुक बात समाचार पत्र में आई है, अत: इस पर शक करने की कोई गुंजाइश नहीं है, परंतु समय के साथ-साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में भी गिरावट आई है और यहां भी कुछ पेशेवर लोग घुस आये हैं। ‘पत्रकारिता दिवस’ […]

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महत्वपूर्ण लेख

खतरा बनते जा रहे हैं फर्जी बाबा

भारत में समस्या यह है कि इस तरह के बाबाओं से कैसे निपटा जाए, जबकि सरकारें उनका समर्थन कर रही होती हैं। ऐसे बाबा लोग भले ही एक बड़ा वोट बैंक बनाते हैं, परंतु वे राज व्यवस्था को ऐसी क्षति पहुंचाते हैं जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती है। लोकतंत्र मतदाताओं व दलों में सीधे […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-22

चमड़े को मृत पशुओं के शरीरों से उतारकर उसका जूते-जूतियां या अन्य वस्तुओं के बनाने में प्रयोग करने की कला भी विश्व में भारतीयों ने ही प्रचलित की। इसी प्रकार गौ-भैंस को दूहने की कला और उनके दूध से विभिन्न प्रकार के पेय या भोज्य-पदार्थ बनाना, दही, घी बनाना या निकालना आदि भी एक कला […]

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