हमें यह विचार करना चाहिए कि जैसे मानव शरीर जड़ और चेतन का अद्भुत संगम है, उसमें प्रकृति के पंचतत्व से बना नश्वर शरीर तथा अजर अमर-अविनाशी, आत्मा साथ-साथ रहते हैं उसी प्रकार कत्र्तव्य और अधिकारों का सम्बन्ध् है। कत्र्तव्य हमारी चेतना शक्ति शरीर में आत्मतत्व से जुड़े हैं जबकि अधिकार हमारे शरीर की इच्छाओं […]
महीना: अक्टूबर 2015
तनवीर जाफऱी हमारे देश में प्रवाहित हो रही सैकड़ों बड़ी-छोटी नदियों में गंगा नदी के महत्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के लोग इसे गंगा मैया व मां गंगा कहकर संबोधित करते हैं। देश का बहुसंख्य हिंदू समाज देश के अनेक प्रमुख स्थानों पर गंगा जी की आरती करता […]
संजय द्विवेदी जिस तरह का माहौल अचानक बना है, वह बताता है कि भारत अचानक अल्पसंख्यकों (खासकर मुसलमान) के लिए एक खतरनाक देश बन गया है और इसके चलते उनका यहां रहना मुश्किल है। उप्र सरकार के एक मंत्री यूएनओ जाने की बात कर रहे हैं तो कई साहित्यकार अपने साहित्य अकादमी सम्मान लौटाने पर […]
नयी दिल्ली। गौमांस खाने के मुद्दे ने इन दिनों देश को आंदोलित कर रखा है जहां लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। धार्मिक रूप से गौमांस सेवन वर्जित होना इस मुद्दे का एक आयाम हो सकता है लेकिन गौमांस सेवन के खिलाफ एक और बेहद मजबूत पहलू […]
बी एन गोयलगत दिनों कुछ लोगों ने विकिपेडिया विश्वकोश में पंडित जवाहर लाल नेहरू के पृष्ठ पर कुछ नकारात्मक बदलाव करने का प्रयत्न किया। बदलाव नहीं कर सके तो अपनी तरफ से अपनी व्याख्या की एक नई वेब साइट बना कर लगा दी। विकिपेडिया – ओन लाइन पर एक ऐसा विश्वकोश है जिस में पाठकों […]
अपने आलोचकों की दृष्टि में आजम खान इस समय देश में एक साम्प्रदायिक नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। उनके आलोचकों के पास ऐसे बहुत से तर्क हैं जिनसे उन्हें एक साम्प्रदायिक नेता सिद्घ किया जा सकता है। जैसे मुजफ्फरनगर के दंगों के बारे में ऐसे लोगों का मानना है कि यदि पहली […]
अपने नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करना और उनके विकास के सभी अवसर उपलब्ध् कराना संसार के प्रत्येक देश की सरकार की अनिर्वायत: बाध्यता है। क्योंकि नागरिकों को विकास के सभी अवसर उपलब्ध् कराना और मानवीय गरिमा को मुखरित और विकसित करने के लिए ही राज्य की उत्पत्ति हुई थी। विश्व का इतिहास ऐसे दो […]
देश इस समय 1965 के भारत-पाक युद्घ की 50वीं वर्षगांठ मना रहा है। स्पष्ट है कि 1965 का जिक्र आये तो तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का पावन स्मरण भी लोगों को अवश्य ही आता है। यह वह व्यक्तित्व था जिसने 1962 के युद्घ में लज्जास्पद ढंग से पिटे एक राष्ट्र के ऊपर मात्र तीन […]
शिव कुमार गोयल आज आदरणीय शिवकुमार गोयल जी हमारे बीच नही हैं, पर उनके विचार हमारे बीच जरूर हैं। उनका गंभीर और राष्ट्रवादी लेखन आजीवन हमारा मार्गदर्शन करेगा। 31 अक्टूबर उनकी जयंती होती है, इस अवसर पर उन्हीं की पुस्तक ‘क्रांतिकारी आंदोलन’ से प्रस्तुत है उनका यह आलेख। बाबूजी को श्रद्घांजलि के साथ-श्रीनिवास आर्य अंग्रेजों […]
युवा वर्ग को विचार शक्ति सबल, सक्षम और सफ ल बनाती है, और विचार को संस्कार प्रबल करता है। संस्कारहीन युवा सृजनात्मक विचार शक्ति से शून्य होता है। सृजनात्मक विचार शक्ति सुसंस्कृत समाज की संरचना का आधारभूत सत्य है। आप देखेंगे तो पता चलेगा कि समाज में दो विचारधाराएँ सदा प्रवाहित रही हैं एक वह […]