Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-59

इस मंत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि जैसे हमारा मुख सिर के अग्र भाग में होता है, वैसे ही यान का संचालन यंत्र अग्रभाग में ही रखना चाहिए। इसे तीन आवरण वाला अर्थात सुरक्षा, गति व संचालन की दृष्टि से त्रिवृत्त कहा गया है। संचालन कक्ष में संचालकों के बैठने व बाह्य […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-58

वहां कहा गया है-”ओ३म् अग्निमीडे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्।।” (ऋ. 1/1/1) यहां पर अग्नि को सर्वत: हित करने में अग्रणी मानते हुए उसकी स्तुति करने की बात कही गयी है। इसका अभिप्राय है कि वेद का ऋषि अग्नि के गुणों से परिचित था। तभी तो उसने उसकी स्तुति का उपदेश दिया है। अग्नि तत्व […]

Categories
संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

हिन्दू शक्ति के नायक के रूप में उभरे छत्रपति शिवाजी

शिवाजी नाम की महिमा जब कभी भी भारतवर्ष के निष्पक्ष स्वातंत्र्य समर का इतिहास लिखा जाएगा तब भारत के महान सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज को उस समर के महानायकों में अवश्य ही स्थान मिलेगा। छत्रपति शिवाजी भारत के इतिहास के उस महान नक्षत्र का नाम है, जिससे औरंगजेब सबसे अधिक भय खाता था। उसे रात […]

Categories
पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-73

हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे गुरू ने शिष्य से एक दांव छुपाकर रखा-यह उनका ‘यथायोग्य वत्र्ताव’ था। उन्होंने उसे सब कुछ सिखाने का प्रयास किया-यह उनका ‘प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार किया गया आचरण’ था।  भारत का राष्ट्रीय अभिवादन ‘नमस्ते’ है। नमस्ते की सही मुद्रा है -व्यक्ति के दोनों हाथों का छाती के सामने आकर […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-57

ऋग्वेद (10/85/47) ने पति-पत्नी को जल के समान मिलने की बात तो कही ही है, साथ ही इनके मिलन को और भी अधिक सुंदर और उपयोगी बनाते हुए एक उपदेश और दिया है। जिसमें ‘सं मातरिश्वा’ की बात कही गयी है। इसका अभिप्राय है कि तुम दोनों परस्पर मिलकर ऐसे रहो जैसे दो वायु परस्पर […]

Categories
संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

शाहजहां और औरंगजेब दोनों ही हिंदुओं के लिए क्रूर थे

स्वर्णकाल नहीं था शाहजहां का शासनकाल शाहजहां को भारत में स्वर्णयुग का निर्माता माना जाता है। हम पूर्व पृष्ठों में कई स्थानों पर यह कह आये हैं कि उसका काल ‘स्वर्णयुग’ कहे जाने के योग्य नहीं था, क्योंकि उसमें ‘स्वर्णयुग’ कहे जाने के लिए अपेक्षित योग्यताएं नहीं थीं। शाहजहां ने जितने भर भी युद्घ किये-उनमें […]

Categories
पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-72

हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे विनम्रता वैदिक धर्म का एक प्रमुख गुण है। सारी विषम परिस्थितियों को अनुकूल करने में कई बार विनम्रता ही काम आती है। इसीलिए विनम्र बनाने के लिए विद्या देने की व्यवस्था की जाती है। विद्या बिना विनम्रता के कोई लाभ नहीं दे सकती और विनम्रता बिना विद्या […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-56

वेद (अथर्व 03/30/2) में आया है :-अनुव्रत: पितु पुत्रो मात्रा भवतु संमना:। जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम्।। वेद का आदेश है कि पुत्र अपने पिता का अनुव्रती हो, पिता के अनुकूल आचरण करने वाला हो। पिता के दिये गये निर्देशों का वह श्रद्घापूर्वक पालन करे। ध्यान रहे कि पिता का हृदय अपनी संतान के […]

Categories
राजनीति संपादकीय

पीएम मोदी अरूण जेटली को सिखायें ‘राजधर्म’

भारत का लोकतन्त्र एक दीवार है-उन लोगों के लिए जो प्रतिभावान और ईमानदार देशभक्त तो हैं, पर उनके पास लोकतन्त्र को नचाने के लिए अपने साधनों की कमी है। वे धनाढ्य नहीं हैं और ना ही उनके पास पार्टी तन्त्र है। लोकतन्त्र को पार्टीतन्त्र खा रहा है और पार्टी तन्त्र द्वारा निगले जा रहे लोकतन्त्र […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-55

कलकत्ता की टकसाल के अध्यक्ष रहे प्रो. विल्सन ने कहा था-”मैंने पाया कि ये लोग सदा प्रसन्न रहने वाले और अथक परिश्रमी हैं। उनमें चापलूसी का अभाव है और चरमसीमा की स्पष्टवादिता है। मैं यह कहना चाहूंगा कि जहां भी भयरहित विश्वास है वहीं स्पष्टवादिता भारतीयों के चरित्र की एक विशिष्ट विशेषता है। पढ़े-लिखे लोगों […]

Exit mobile version