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संपादकीय

क्रांतिकारियों का वो वन्दनीय आध्यात्मिक राष्ट्रवाद

वीरता का निन्दन और कायरता का वंदन केवल भारत में ही होता है। 1947 के क्षितिज पर तनिक मेरी आंखों में आंख डालकर देखो तो सही अनेकों वीर क्रांतिकारी और राष्ट्रभक्त  बलिदानी पर्दे के पीछे से उचक उचक कर हमसे कहे जा रहे हैं- हमें याद रखना, भूल मत जाना। जितनी दूर हमसे 1947 होता जा […]

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संपादकीय

भारत को कैसे मिले अब तक के अपने राष्ट्रपति

रायसीना हिल्स पर बना राष्ट्रपति  भवन गणतांत्रिक भारत के हर ऐतिहासिक क्षण का गवाह बना है। आजादी से पूर्व इसे वायसरीगल हाउस के नाम से जाना जाता था। लेकिन 26 जनवरी 1950 को सुबह 10.15 बजे जब डा. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति  के रूप में शपथ लेकर गणतांत्रिक भारत के राजपथ पर कदम रखे […]

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संपादकीय

हम विश्व के सुदृढ़तम लोकतंत्र बन जाएं

पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा की अंतिम बैठक में कहा था-भारत की सेवा का अर्थ है लाखों करोड़ों पीडि़त लोगों की सेवा करना, इसका अर्थ है गरीबी और अज्ञानता को मिटाना, हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति (महात्मा गांधी) की यही महत्वाकांक्षा रही है कि हर आंख से आंसू मिट जाएं। शायद ये […]

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संपादकीय

अखिलेश राजधर्म निभायें:जनता उनके साथ है

स्वामी रामदेव के विषय में एक कांग्रेसी कुछ लोगों के बीच बैठकर अपनी भड़ास निकाल रहे थे और कह रहे थे कि साधुओं का भला राजनीति से क्या मतलब है? ये लोग राजनीति से दूर रहें और अपने हवन भजन में ध्यान दें।मैं सोच रहा था कि ऐसा दृष्टिïकोण इन लोगों का भारत के हिंदू […]

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संपादकीय

गाय के उपलों से हवन?

पिछले अंक में हमने एक लेख गाय के विषय में दिया था। जिसमें लेखक खुशहालचंद आर्य ने गाय के उपलों से हवन करने की बात कही है। इस पर कुछ लोगों की प्रतिक्रिया आयी कि ऐसा करने से प्रदूषण अधिक होगा। अत: इसलिए उपलों से हवन नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही ऐसे लेख प्रकाशित […]

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संपादकीय

शिक्षा का उद्देश्य अभी भी स्पष्ट नहीं

पिछले दिनों केन्द्र सरकार ने शिक्षा पर सबका समान अधिकार मानते हुए इस दिशा में कुछ कदम उठाये हैं। गरीबों को भी अब निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढाने का अवसर मिलेगा। सरकार की नीति है कि पिछड़ा और दलित समाज भी शिक्षा क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत बना सके, इसलिए उस क्षेत्र […]

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संपादकीय

कितनी लातें….कितनी संख्या…?

भारत की सेना का इतिहास अत्यंत गौरवपूर्ण है। इसके गौरव का, गरिमा का और गर्व का, इतिहास युगों पुराना है। लाखों वर्ष पूर्व मान्धाता जैसे महान चक्रवर्ती सम्राट के काल में भी सेना का अस्तित्व था। भगवान राम और भगवान कृष्ण के काल में भी सेना का अस्तित्व था। इस सेना का प्रमुख कार्य कूटनीति […]

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संपादकीय

इन सैकुलरिस्टों को जनता चलता करे

भारत में सचमुच वह काला दिन था जब देश को सैकुलरिज्म के रास्ते पर डालने की बात सोची गयी थी। क्योंकि सैकुलरिज्म और भारतीय राजनीति का दूर दूर तक का भी कोई सम्बन्ध नहीं है । भारत में राजनीति को पंथनिरपेक्ष बनाने की दिशा में कार्य होना चाहिए था, परन्तु राजनीतिज्ञों की भाषा और उनकी […]

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संपादकीय

ज्ञानी की कोई जाति नहीं होती : स्वामी चक्रपाणि

वशिष्ठ स्मृति में कहा गया है कि आचारहीन को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। भविष्य पुराण में भक्त की पवित्रता का उल्लेख करते हुए कहा गया कि कुल, रूप और धन के बल से कोई सच्चा भक्त नहीं हो सकता। भक्ति, ज्ञान और बाह्य प्रतिष्ठा से दूर आंतरिक पवित्रता से आती है, वही भक्त […]

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संपादकीय

इंद्रप्रस्थ से नौवी दिल्ली तक का सफर

पहली दिल्ली : महाभारत से पूर्व ओर महाभारत के युद्ध के कुछ काल पश्चात तक दिल्ली को इंद्रप्रस्थ कहा जाता था। यह राजा इन्द्र की राजधानी थी राजा इन्द्र का स्वर्ग यहीं पर विधमान था तो युधिष्ठर का ‘धर्मराज’ भी यही से चला था। बाद में उनकी पीढियों ने भी यही से शासन किया। सम्राट […]

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