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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-5

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-5 वैदिक गीता-सार सत्य हम अपनों को अपना मानकर उधर से किसी हमला की या विश्वासघात की अपेक्षा नहीं करते। अपनों की ओर से हम पीठ फेरकर खड़े हो जाते हैं। यह मानकर कि इधर से तो मैं पूर्णत: सुरक्षित हूं। कुछ समय बाद पता चलता है कि […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-2

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-2 वैदिक गीता-सार सत्य गीता की उपयोगिता इसलिए भी है कि यह ग्रन्थ हमें अपना कार्य कत्र्तव्य भाव से प्रेरित होकर करते जाने की शिक्षा देती है। गीता का निष्काम-भाव सम्पूर्ण संसार को आज भी दु:खों से मुक्ति दिला सकता है। परन्तु जिन लोगों ने गीता ज्ञान को […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-4

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-4 वैदिक गीता-सार सत्य डा. देसाई को अपने लक्ष्य की खोज थी और वह अपने लक्ष्य पर पहुंच भी गये थे, परन्तु अभी वास्तविक लक्ष्य (पण्डा और राजा से मिलना) कुछ दूर था। उन्होंने अपने साथ एक मुसलमान पथप्रदर्शक रख लिया था। यह पथप्रदर्शक वहां के लोगों को […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-3

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-3 वैदिक गीता-सार सत्य मानव जीवन की ऊहापोह हमारा सारा जीवन इस ऊहापोह में व्यतीत हो जाता है कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? मेरे लिए क्या उचित है? और क्या अनुचित है? महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन के समक्ष भी यही प्रश्न […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-1

वैदिक गीता-सार सत्य भी-कभी मन में आता है कि वह समय कितना पवित्र और प्यारा होगा, जब भगवान श्री कृष्ण जी इस भूमण्डल पर विचरते होंगे? पर अगले ही क्षण मन में यह विचार भी आता है कि उस काल को भी पवित्र और प्यारा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यदि वह काल पवित्र और […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-62

इसी समय भारत की राष्ट्रवादी शक्तियों ने अपना योग विश्व को प्रस्तुत कर दिया है। हताशा और निराशा का मारा हुआ संसार बड़ी तेजी से ओ३म् के झण्डे तले योग की शरण में आ रहा है और अपनी हताशा और निराशा को मिटाकर आत्मिक शान्ति की अनुभूति कर रहा है। लोगों को ओ३म् का उच्चारण […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

दुर्गादास राठौर ने मल्लिका गुलनार के सामने रख दिया था अपना सिर

वेदों में नारी का सम्मान वेद ने नारी को अप्रतिम और अतुलित सम्मान दिया है। इसका कारण यही है कि नारी जगन्नियंता ईश्वर की विधाता और सर्जनायुक्त शक्ति का नाम है। ऋग्वेद (1/113/12) में कहा गया है- यावयद्द्वेषा ऋतपा ऋतेजा: सुम्नावरी सूनृता ईरयंती। सुमंगलीर्विभूति देवती तिमिहाद्योष: श्रेष्ठतया व्युच्छ।। अर्थात-”हे श्रेष्ठतम ऊषा! तू अपनी छटा को […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-74

हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे गतांक से आगे…. अत: एक प्रकार से नमस्ते दो विभिन्न आभामंडलों का प्रारंभिक मनोवैज्ञानिक परिचय है, जिसमें दो भिन्न-भिन्न आभामंडल कुछ निकट आते हैं, और परस्पर मित्रता का हाथ बढ़ाने का प्रयास करते से जान पड़ते हैं। इसीलिए कहा गया है :- अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्घोपसेविन:। चत्वारि […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-61

तालाबों को प्राचीन काल में हमारे पूर्वज लोग बड़ा स्वच्छ रखा करते थे। पर आजकल तो इनमें कूड़ा कचरा और गंदी नालियों का गंदा पानी भरा जाता है। यही स्थिति नदियों की है। जो वस्तु हमारे जीवन का उद्घार करने में सहायक थी उन्हें ही हमने अपने लिए विनाश का कारण बना लिया है। हमें […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-60

वेदमंत्र जो कुछ कहता है उसकी व्याख्या वेदश्रमीजी इस प्रकार करते हैं-”हे अग्नि! तुम वृष्टि से हमारी रक्षा करो। अर्थात वृष्टि करके हमारा पालन करो और अति वृष्टि को रोककर भी वृष्टि से हमारी रक्षा करो। इस प्रकार दोनों प्रकार की प्रक्रियाओं के प्रति इसकी संगति होती है। किस प्रकार रक्षा या पालन करें इसके […]

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