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संपादकीय

भारत को लेकर अमेरिका का बदलता दृष्टिकोण

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का भारत के प्रति दृष्टिकोण प्रारम्भ से ही लचीला रहा है। इसका अभिप्राय यह कतई नहीं है कि अमेरिका अपने राष्ट्रीय हितों को भुलाकर भारत के सामने आरती का थाल लेकर आ खड़ा हुआ हो। अमेरिका के लिए अपना व्यापार पहले है। इसलिए वह अपने राष्ट्रीय हितों के प्रति पहले […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-37

गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज योगेश्वर श्रीकृष्णजी ऐसे पाखण्डियों के विषय में कह रहे हैं कि ऐसे लोग किसी रूप में ना तो योगी हैं ना ही संन्यासी हैं और उनके भगवान होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं है। श्रीकृष्णजी योगी या संन्यासी होने के लिए कह रहे हैं कि वह व्यक्ति […]

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संपादकीय

जिसको न निज गौरव न निज देश का अभिमान है

भारत में राष्ट्र की सर्वप्रथम कल्पना की गयी। सम्पूर्ण भूमण्डल पर भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो अपने राष्ट्रवाद में सम्पूर्ण वसुधा के कल्याण को समाहित करके चलता है। हमारा राष्ट्रवाद संकीर्ण नहीं है। हमारे ऋषियों ने सबके कल्याण की भावना से प्रेरित होकर ही राष्ट्र की संस्था की खोज की थी। अथर्ववेद के […]

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संपादकीय

गुजरात व हिमाचल की जनता का परिपक्व निर्णय

गुजरात की कुल 182 सीटों में से 99 भाजपा को, 80 कांग्रेस को और 3 अन्य को मिलीं। भाजपा ने लगातार छठी बार गुजरात में सरकार बनाने का इतिहास रचा। जबकि हिमाचल प्रदेश में कुल 68 सीटों में से 44 भाजपा को, 21 कांग्रेस को व 3 अन्य दलों को मिली हैं। इस प्रकार हिमाचल […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-36

गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज गीता का छठा अध्याय कर्म के विषय में महर्षि दयानन्द जी महाराज ने ‘आर्योद्देश्यरत्नमाला’ में लिखा है- ”जो मन, इन्द्रिय और शरीर में जीव चेष्टा करता है वह कर्म कहाता है। शुभ, अशुभ और मिश्रित भेद से तीन प्रकार का है।” कर्म के विषय में वैदिक सिद्घान्त यह […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

औरंगजेब नही झुका पाया था गुरू हरिराय के स्वाभिमान को

गुरू हरिराय का अपने पुत्र रामराय के प्रति व्यवहार गुरू हरिराय के लिए यह असीम वेदना और कष्ट पहुंचाने वाली बात थी कि उनका पुत्र बादशाह औरंगजेब की चाटुकारिता करने लगे। जबकि उन्होंने अपने पुत्र रामराय को दिल्ली जाने से पूर्व भली प्रकार समझाया था कि बादशाह के समक्ष कोई भी ऐसी बात ना तो […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-35

गीता का पांचवां अध्याय और विश्व समाज गीता का भूतात्मा और पन्थनिरपेक्षता गीता ने सर्वभूतों में एक ‘भूतात्मा’ परमात्मा को देखने की बात कही है। वह भूतात्मा सभी प्राणियों की आत्मा होने से भूतात्मा है। सब भूतों में व्याप्त है भूतात्मा एक। परमात्मा कहते उसे आर्य लोग श्रेष्ठ।। मनुष्य जाति यदि इस भाव को हृदय […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-34

गीता का पांचवां अध्याय और विश्व समाज ये चारों बातें कर्मयोगियों के भीतर मिलनी अनिवार्य हैं। यदि कोई व्यक्ति द्वैधबुद्घि का है, अर्थात द्वन्द्वों में फंस हुआ है तो वह हानि-लाभ, सुख-दु:ख, यश-अपयश आदि के द्वैध भाव से ऊपर उठ ही नहीं पाएगा। वह इन्हीं में फंसा रहेगा और इन्हीं में फंसा रहकर जीवन पार […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-33

गीता का पांचवां अध्याय और विश्व समाज इस आत्मविनाश और आत्मप्रवंचना के मार्ग को सारा संसार अपना रहा है। रसना और वासना का भूत सारे संसार के लोगों पर चढ़ा बैठा है। इसके उपरान्त भी सारा संसार कह रहा है कि मजा आ गया। इस भोले संसार को नहीं पता कि रसना और वासना का […]

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संपादकीय

जेटली की आंकड़ेबाजी और जमीनी सच

लोकतन्त्र एक ऐसी शासन प्रणाली है-जो ‘सम्मोहन’ के जादुई खेल से चलायी जाती है। कोई भी ऐसा राजनीतिज्ञ जो इस ‘सम्मोहन’ की जादुई क्रिया को जानता हो-देर तक किसी देश पर शासन कर सकता है। भारतवर्ष में स्वतंत्रता के पश्चात नेहरूजी देश के प्रधानमंत्री बने तो उनका व्यक्तित्व तो जादुई नहीं था-पर वह ‘सम्मोहन’ पैदा […]

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