238 खाया जहां का अन्न है, पुण्य धरा और धाम। जब तक हम जग में जिएं, करें देश के काम।। करें देश के काम , अपना देश सुधरता। भूमंडल में खुशबू फैले, परिदृश्य बदलता।। पूर्वजों से अपने हमने, यही संदेश है पाया। ऋण होता उस माटी का,अन्न जहां का खाया।। 239 दोहराते संकल्प हम, अखंड […]
लेखक: डॉ॰ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत
बात 1983 की है। जब गुटनिरपेक्ष आंदोलन का सातवां शिखर सम्मेलन भारत में आयोजित किया गया था। नई दिल्ली को उस समय दुल्हन की तरह सजाया गया था। उस समय देश का नेतृत्व एक सक्षम और मजबूत प्रधानमंत्री के रूप में श्रीमती इंदिरा गांधी कर रही थीं। उनके समय में कई ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए […]
235 भारत में भारत बसे, लेय विशाल स्वरूप। चक्रवर्ती सम्राट हों , वही पुराने भूप।। वही पुराने भूप , फिर तक्षशिला नालंदा हों। हमसे लेकर ज्ञान, ना कोई कभी शर्मिंदा हो।। सारे भूमंडल को लोग कहें , फिर से भारत। सब भेदों को, समूल मिटा दे अपना भारत।। 236 ‘नवभारत’ कैसा बना, जान गये सब […]
232 तेज ,क्षमा और धैर्य, वैरभाव का त्याग। अहंकार से दूर हो, उसका दिव्य स्वभाव।। उसका दिव्य स्वभाव, आशीष देव का। मानव वही बना करता , आदर्श देश का।। राष्ट्रवंदना सिखिलाता है, मेरा भारत देश। जिसने समझा ‘भारत’, मिला उसी को तेज।। 233 समझो अपने देश को, दुनिया का सिरमौर। रहा बांटता ज्ञान को, बना […]
1947 के बंटवारे को हम सब देशवासियों को एक गंभीर चुनौती और दुखद त्रासदी के रूप में लेना चाहिए । देश के संजीदा लोग इस बात पर सहमत भी हैं कि हमें देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए। इसके उपरांत भी कुछ लोग हैं जो अभी भी देश […]
इस समय देश में ‘भारत बनाम इंडिया’ की बहस चल रही है। जो लोग इसे भारत के ‘नाम परिवर्तन’ के साथ जोड़कर देख रहे हैं उनका तर्क है कि देश के संविधान निर्माताओं ने जो नाम रख दिया, वही उचित है। उनके दृष्टिकोण में भारत का नाम ‘इंडियन यूनियन’ ही रहना चाहिए । जो लोग […]
229 दूर नहीं वह पास है, क्यों खोजे नादान ? तेरा मालिक घट बसे, तू नाहक है परेशान।।7 तू नाहक है परेशान , देख उसे अंतर्मन में। वह निकट से निकट , बसा हुआ है मन में।। निकट का आभास , मिले भक्ति में भरपूर। ज्ञानी पिता सर्वज्ञ को, कहते- दूर से भी दूर। 230 […]
226 नाच दिखाके शांत हो , करे नर्तकी रोज । प्रकृति पीछे हटे , हो जाता जब मोक्ष।। हो जाता जब मोक्ष, जगत रचा ईश्वर ने। जीवों का कल्याण हो, भाव रखा ईश्वर ने।। स्वभाव जैसा जीव का, वही रचाता रास । अपनी अपनी साधना,अपना अपना नाच।। 227 तीन, पांच ,सोलह जुड़ें, संख्या है चौबीस […]
223 अपने धर्म को छोड़कर , जो भी जाता भाग। लोग उसे धिक्कारते, लाख टके की बात।। लाख टके की बात ,माधव ने बताई अर्जुन को। धर्म क्षेत्र के बारे में, सच बतलाया अर्जुन को।। लोक-लायक ना होते, छोड़ भागते जो रण को। लोकनायक वही बनें, जो जानें अपने धर्म को।। 224 जो जन्मा सो […]
220 जो भी लत हमको लगी, कर देती बर्बाद। दारू – धुआं छोड़ दे, रहना जो आबाद।। रहना जो आबाद , सीख कुछ कछुए से भी। सिकोड़ लेत है अंग, चोट लगे ना मारे से भी।। सिकुड़ कछुए की भांति, क्यों बनता है भोगी ? लक्ष्य वही पा जाएगा , दिल से चाहता जो भी।। […]