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कविता

अध्याय … 71 , जिससे सब उत्पन्न हों….

211 सब भूतों में एकरस , रमा हुआ भगवान। अविनाशी उसको कहें, अर्जुन से भगवान।। अर्जुन से भगवान , मिलती मुक्ति उसको। निर्गुण है परमात्मा,ना छूता विकार उसको।। नहीं बांटता भगवान, छूत और अछूतों में। विराजमान है भीतर, जग के सारे भूतों में।। 212 जिससे सब उत्पन्न हों, और धारते प्राण। उसी में सबकी लय […]

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कविता

अध्याय … 70 आत्मा रथी शरीर में …..

208 खोज अपने आप की, सबसे बड़ी है खोज। जिन खोजो है आपुनो ,बन गई ऊंची सोच।। बन गई ऊंची सोच ,किया विषयों से किनारा। भीतर हुआ प्रकाश ,छोड़ दिया जगत पसारा।। खोजी खोजें खोज में, और ऊंची रखते सोच। सोच मिलती शोध से,और पूरी होती खोज।। 209 मन कपट की धार है, वाणी भरी […]

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कविता

अध्याय … 69 , हाथ का मनका छोड़…..

205 शिव का कर ले ध्यान तू ,करे वही कल्याण। भवसागर से पार हो, जीवन का हो त्राण।। जीवन का हो त्राण , मिलेगी मुक्ति तुझको। मुनि मनीषी जप रहे, ध्यान लगाकर उसको।। हाथ का मनका छोड़, पकड़ मन का मनका। बेड़ा पार तेरा होगा , ध्यान करेगा शिव का।। 206 पढ़ लिखकर नौकर हुए, […]

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संपादकीय

भारत के राष्ट्रवादी मुसलमान : अराजक तत्वों के खिलाफ बनना पड़ेगा ‘मदारी बाबा’

राष्ट्र हमारी सोच में निवास करता है। इस सोच के वशीभूत होकर हम अपने समस्त देशवासियों को अपना भाई-बहन मानते हैं । जब भी हमारी सामूहिक चेतना आगे बढ़ने का निर्णय लेती है या आगे बढ़कर कुछ कर दिखाती है तो चाहे चंद्रयान-3 अभियान हो या फिर सर्जिकल स्ट्राइक हो, सभी पर हमको समान रूप […]

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अध्याय … 68 , नींद चैन की लेय…..

202 सुख आया तो दु:ख गया, दु:ख आए सुख जाय। यही सनातन खेल है, मनवा समझ न पाय।। मनवा समझ न पाय , करता रहा ठिठोली। समझा वही , जिसकी आंख विधाता ने खोली।। समझदार ना विचलित होता, जब आता है दु:ख। समत्व भाव से जीवन जीता , ना भटकाता सुख।। 203 भूमि शय्या प्रेम […]

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अध्याय … 67 आई और आकर गई ,……

199 चंदन को ज्यों ज्यों घिसें, सुगंधि बढ़ती जाय । सोने से कुंदन बने, कीमत बढ़ती जाय।। कीमत बढ़ती जाय , ईख से रस भी निकले। चमक बढ़े तप से सदा,जाने जो इस पथ चले।। तपता चल, जपता चल, बन जा तू भी कुंदन। मूल्यवान बन जा तू इतना, लोग बना लें चंदन।। 200 पागल […]

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अध्याय … 66, योगी मिलन की चाह में,….

196 धन धरती रह जाएगा, पशु खड़े रहें बाड़ । अंत समय जब आएगा, धर्म ही होगा साथ।। धर्म ही होगा साथ , ना कोई साथ निभावै। मतलब के हैं दोस्त ,सब दूर से हाथ हिलावें।। पत्नी भी दरवाजे तक, चार कदम ही धरती। चिता में तेरी देह जलेगी, जलें ना धन -धरती।। 197 जग […]

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अध्याय … 65 , संत शांत आगे बढ़ें …..

193 जब तक स्वस्थ शरीर है, और बुढ़ापा दूर। इंद्रियां शक्ति से भरी, नाम जपो भरपूर ।। नाम जपो भरपूर ,होगा कल्याण बहुत ही। आग लगे पे कुआं खोदें, कहलाते मूरख ही ।। भूलो बिगाड़ हुए को , हो लिया जो अब तक। सुधारो इस जीवन को, प्राण बचे हैं जब तक।। 194 भोग भोगते […]

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अध्याय … 64 , शरीर सिकुड़कर झुक गया……

190 शरीर सिकुड़कर झुक गया, धीमी पड़ गई चाल। दांत टूट कर गिर गए, आंख – नाक बेहाल।। आंख – नाक बेहाल, कान से ऊंचा सुनता। मुंह से लार टपकती रहती, व्यर्थ में सिर धुनता।। धर्मपत्नी रहती दूर, कभी बेटा ना बांधे धीर। कहे, बुढ़ापा कितना बैरी ? डगडग हिले शरीर।। 191 जब तक तन […]

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कविता

अध्याय … 63 जोबन चढ़ती वासना…..

187 सत्व ,रज और तम से बना, चित्त उसी का नाम। जब तामस इसमें बढ़े, करता उल्टे काम।। करता उल्टे काम, अधर्म और अनीति लावै । उल्टी देता सीख मनुज को, अज्ञान बढ़ावै।। विषयों में जा फंसता मानव, छा जाता है तम। बताए प्रकृति के तीन गुण, सत्व ,रज और तम।। 188 वासना के भूत […]

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