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Uncategorised संपादकीय

क्या भाजपा ‘इण्डिया’ से ‘भारत’ को कर पाएगी मुक्त ?

इस समय देश में ‘भारत बनाम इंडिया’ की बहस चल रही है। जो लोग इसे भारत के ‘नाम परिवर्तन’ के साथ जोड़कर देख रहे हैं उनका तर्क है कि देश के संविधान निर्माताओं ने जो नाम रख दिया, वही उचित है। उनके दृष्टिकोण में भारत का नाम ‘इंडियन यूनियन’ ही रहना चाहिए । जो लोग ‘इंडिया’ की पैरोकारी कर रहे हैं वे वही लोग हैं जो भारत को 1947 से पहले ‘भारत’ के रूप में देखने को तैयार ही नहीं है। इनकी सोच है कि भारत का बौद्धिक और वैज्ञानिक विकास भारत को ‘इंडिया’ कहने वाले अंग्रेजों के आने के समय से ही हुआ। अतः इंडिया भारत की प्रगतिशीलता का और भारत रूढ़िवादिता को प्रकट करने वाला शब्द है। इधर भाजपा है जो भारत को भारत के रूप में स्थापित करने की बात करती है। यही कारण है कि उसने ‘भारत’ को अपनाने की एक अच्छी शुरुआत की है। यद्यपि भाजपा के विरोधी उस पर करारा प्रहार करते हुए कह रहे हैं कि भाजपा की नीतियों में दोगलापन है। वह चुनावी लाभ के लिए भारत की बात करती है और अपने चुनावी नारों को ‘इंडिया’ के साथ संलग्न करती है।
यदि भाजपा के विरोधियों की इस बात पर विचार किया जाए तो पता चलता है कि भाजपा ने भी भारत के बारे में अनेक बार ‘इंडिया’ शब्द को अपने नारों में स्थान दिया है। ‘हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान’ की पवित्र भावना का संकल्प लेकर चलने वाली भाजपा निश्चित रूप से अपने पथ से भ्रष्ट हुई और उसने हिंदुस्तान या भारतवर्ष के स्थान पर ‘इंडिया’ को जोरदार ढंग से अपनाया। इसके उपरांत भी हम इस नई पहल को स्वागत योग्य मानते हैं। ‘देर आयद दुरुस्त आयद’ वाली बात के दृष्टिगत यदि भाजपा आज भी अपने आपको भारत की चेतना के साथ संलग्न पर प्रस्तुत करने का संकल्प ले रही है तो हम कहेंगे कि ‘यह भी सही’।
जहां तक भाजपा के दोगलेपन की बात है तो यह आरोप आरएसएस पर भी लगता रहा है। आरएसएस जहां गौ मांस और गौ हत्या का विरोध करता है, वहीं वह जिन प्रान्तों में गौ हत्या हो रही है और लोग गौ मांस का सेवन कर रहे हैं वहां वह भी मौन साध जाता है। यही कारण है कि भाजपा के शासनकाल में पहले से अधिक गौ मांस भारत से निर्यात हो रहा है। अब आरएसएस और भाजपा दोनों से यह प्रश्न किया जा सकता है कि क्या वे भारत को वास्तव में ‘भारत’ बनाने के लिए गौ हत्या निषेध की दिशा में आवश्यक कठोर कानून ला सकेंगे? हम सबको यह पता होना चाहिए कि ‘इंडिया’ नाम का गठबंधन भाजपा से कभी भी यह प्रश्न पूछ ही नहीं सकता क्योंकि वह स्वयं चोर ही नहीं बल्कि डकैत है। डकैत जानता है कि वह चोर से बड़ा है। इसलिए वह चोर की चोरी तक की भावना को उपेक्षित करता है, क्योंकि वह जानता है कि तू चोर की चोरी को खोलेगा तो चोर तेरी डकैती पर सवाल खड़े करेगा।
भाजपा अपने भारत में गौ हत्या को पूर्णतया निषिद्ध कर देगी तो हम मानेंगे कि उसने भारत को भारत के रूप में समझा भी है और स्थापित करने की दिशा में भी ठोस काम किया है, और यदि ऐसा नहीं कर पाई तो हम मानेंगे कि उसने भी केवल वोट प्राप्त करने के लिए एक नया शोशा मात्र छोड़ा है। यदि वह हिंदू को देश के प्रत्येक क्षेत्र और प्रांत में सुरक्षित कर पाई तो हम मानेंगे कि वह ‘भारत’ के प्रति निष्ठावान है। यदि भाजपा गीता को देश के विद्यालयों के पाठ्यक्रम में सबके लिए अनिवार्य कर पाई तो हम मानेंगे कि वह ‘भारत’ के प्रति निष्ठावान है। यदि भाजपा वेद को देश का राष्ट्रीय धर्म ग्रंथ घोषित कर पाई तो हम मानेंगे कि भाजपा ‘भारत’ के प्रति निष्ठावान है। यदि भाजपा संस्कृतनिष्ठ हिंदी को देवभाषा का नाम देते हुए उसे सम्मानित स्थान देने में सफल हुई तो भी हम मानेंगे कि वह सचमुच भारत के प्रति निष्ठावान है।
भारत को भारत बनाने के लिए बहुत लंबी सूची है। यह माना जा सकता है कि भाजपा उस दिशा में कुछ बढ़ती हुई दिखाई दे रही है पर अभी इतना कुछ किया जाना शेष है कि उसके लिए भाजपा को अपनी गति और भी अधिक बढ़ानी होगी।
यदि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की बात करें तो उससे ‘भारत’ के प्रति निष्ठावान रहने की अपेक्षा कभी नहीं की गई है । क्योंकि उसने पहले दिन से भारत की संस्कृति के इन मानक तत्वों के प्रति उपेक्षा पूर्ण दृष्टिकोण अपनाया है और न केवल उपेक्षा पूर्ण दृष्टिकोण अपनाया है बल्कि भारत की चेतना को धूमिल करने का पाप भी किया है। इसके अधिकांश नेता ऐसे हैं जो कहते हैं कि भारत पिछले 5000 वर्ष से है। ये सारे नेता इस बात को नहीं मानते कि भारत सृष्टि के प्रारंभ से है और सृष्टि को बने हुए लगभग दो अरब वर्ष हो गए हैं। ये नहीं जानते कि भारत महर्षि मनु के कुछ समय पश्चात से ही ‘भारत’ के रूप में जाना जाता रहा है। उनकी मान्यता है कि वेद पिछले 3 से 5000 वर्ष के भीतर बनाए गए हैं । इन्होंने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ को पढ़ा है और उसी के आधार पर भारत के बारे में अपनी धारणाएं बनाई हैं । इसने 1947 से पहले के भारत को अंधकार पूर्ण माना है और ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ की धारणा के अनुसार उस युग के लोगों की कोई भी बात इन्हें स्वीकार्य नहीं है। कुल मिलाकर इनका तो मानसिक दिवालिया ही निकला पड़ा है।
भारत को इंडिया कहा जाए या भारत कहा जाए इस संबंध में जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका लाई गई तो 2016 में उस जनहित याचिका को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि नागरिक अपनी इच्छा के अनुसार देश को इंडिया या भारत कहने के लिए स्वतंत्र हैं। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टी0 एस0 ठाकुर और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने महाराष्ट्र के निरंजन भटवाल द्वारा दायर जनहित याचिका को उसे समय इस टिप्पणी के साथ खारिज किया था “भारत या इंडिया? आप इसे भारत कहना चाहते हैं, आगे बढ़ें। कोई इसे इंडिया कहना चाहता है, उसे इंडिया कहने दें।
आज जब हम अपने देश के संविधान में ‘इंडिया’ शब्द के आने की बात कर रहे हैं तो हमारा मानना है कि इंडिया भारत को कहीं ना कहीं अधिशासित करने की स्थिति में आ चुका है। अब इससे मुक्ति का समय आ गया है। विदेशी सोच, विदेशी शब्द और विदेशी चिंतन को अपने ऊपर लागू किये रखने की अब और अधिक अनुमति देश नहीं दे सकता। विशेष रूप से तब जब कि हमने इस विदेशी सोच और विदेशी शब्द के रहते हुए अपना बहुत कुछ गंवा दिया है। हमारी नई पीढ़ी हमसे कहने लगी है कि भारत का भारत के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर वह गर्व और गौरव कर सके। जब नई पीढ़ी हमसे ऐसा कहती है तो उसका एक ही कारण होता है कि हमने अपने विद्यालयों के पाठ्यक्रम में ‘इंडिया’ को पढ़ाया है भारत को नहींसमय आ गया है कि हम इंडिया को दूर कर भारत को पढ़ें भारत को समझें और भारत को समझने के लिए पूरे संसार की यात्रा पर निकल पड़ें।

डॉ राकेश कुमार आर्य

(लेखक सुविख्यात इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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