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विशेष संपादकीय संपादकीय

योगी का उत्तर प्रदेश और पर्यटन विकास

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों प्रदेश की राजधानी लखनऊ में निवेशकों की बैठक कराकर जिस प्रकार प्रदेश के लिए निवेशकों को लुभाया है उससे उनकी विकास पुरुष की छवि बनी है। लोगों को लगा है कि वह वास्तव में प्रदेश को वर्तमान दुर्दशा के दुर्दिनों के दौर से निकालने की कोई […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

वीर बैरागी का कृतित्व अनुपम और बलिदान था अद्वितीय

हिंदू प्रतिभा और पराक्रम मुगलकाल का विधिवत आरंभ अकबर के काल से माना जाता है। अकबर को भी उस समय हेमू जैसे वीर योद्घा के प्रबल प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। इस महान योद्घा के विषय में डा. आर.सी. मजूमदार लिखते हैं :- ”मध्यकालीन और आधुनिक इतिहासकारों ने हेमू के साथ न्याय नहीं किया […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-95

गीता का अठारहवां अध्याय त्रिविध सुख क्या है तीसरे सुख अर्थात तामसिक सुख के विषय में श्रीकृष्ण जी का मानना है कि तामसिक सुख प्रारम्भ से अन्त तक आत्मा को मोह में फंसाये रखता है। मोह का आवरण सबसे अधिक भयानक होता है। यह एक ऐसा आवरण है जिससे हर व्यक्ति चाहकर भी मुक्त नहीं […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-94

गीता का अठारहवां अध्याय अधर्म को धर्म समझ लेना घोर अज्ञानता का प्रतीक है। मध्यकाल में बड़े-बड़े राजा महाराजाओं ने और सुल्तानों ने अधर्म को धर्म समझकर महान नरसंहारों को अंजाम दिया। ये ऐसे नरसंहार थे -जिनसे मानवता सिहर उठी थी। वास्तव में ये कार्य तामसी बुद्घि के कार्य थे। ऐसे लोगों से संसार को […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-93

गीता का अठारहवां अध्याय त्रिविध कत्र्ता और गीता त्रिविध कर्म के पश्चात श्रीकृष्णजी त्रिविध कत्र्ता पर आते हैं। इसके विषय में वह बताते हैं कि कत्र्ता भी सात्विक, राजसिक और तामसिक-तीन प्रकार के ही होते हैं। सात्विक कत्र्ता के बारे में बताते हुए श्रीकृष्णजी कहते हैं कि ऐसा कत्र्ता आसक्ति से मुक्त रहता है, उसका […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-92

गीता का अठारहवां अध्याय अंग्रेजों के कानून ने किसी ‘डायर’ को फांसी न देकर और हर किसी ‘भगतसिंह’ को फांसी देकर मानवता के विरूद्घ अपराध किया। यह न्याय नहीं अन्याय था। यद्यपि अंग्रेज अपने आपको न्यायप्रिय जाति सिद्घ करने का एड़ी चोटी का प्रयास आज भी करते हैं। इसके विपरीत गीता दुष्ट के विनाश करने […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-91

गीता का अठारहवां अध्याय योगीराज श्रीकृष्णजी अर्जुन को बताते हैं कि किसी भी देहधारी के लिए कर्मों का पूर्ण त्याग सम्भव नहीं है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई व्यक्ति कर्मों का पूर्ण त्याग कर दे। कर्म तो लगा रहता है, चलता रहता है। गीता की एक ही शर्त है जिसे श्रीकृष्णजी पुन: दोहरा […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-90

गीता का अठारहवां अध्याय अठारहवें अध्याय में गीता समाप्त हो जाती है। इसे एक प्रकार से ‘गीता’ का उपसंहार कहा जा सकता है। जिन-जिन गूढ़ बातों पर या ज्ञान की गहरी बातों पर पूर्व अध्याय में प्रकाश डाला गया है, उन सबका निचोड़ इस अध्याय में दिया गया है। एक अच्छे लेखक की अपनी विशेषता […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

जब बैरागी ने शत्रु के सामने रख दिये धनुष बाण

सृष्टि नियमों के विरूद्घ मिथ्या सिद्घांत स्वतंत्रता सच्चिदानंद ईश्वरीय व्यवस्था का स्वाभाविक विधान है। संसार में कोई भी जीव ऐसा नही है और ना ही कोई वनस्पति ऐसी है जो किसी अन्य जीव या वनस्पति के आधीन करके ईश्वर ने उत्पन्न किया हो। ‘जीवम् जीवस्य भोजनम्’ का त्रुटिपूर्ण अर्थ करके यह मिथ्या और भ्रामक प्रचार […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-90

गीता का अठारहवां अध्याय अठारहवें अध्याय में गीता समाप्त हो जाती है। इसे एक प्रकार से ‘गीता’ का उपसंहार कहा जा सकता है। जिन-जिन गूढ़ बातों पर या ज्ञान की गहरी बातों पर पूर्व अध्याय में प्रकाश डाला गया है, उन सबका निचोड़ इस अध्याय में दिया गया है। एक अच्छे लेखक की अपनी विशेषता […]

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