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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-90

गीता का अठारहवां अध्याय अठारहवें अध्याय में गीता समाप्त हो जाती है। इसे एक प्रकार से ‘गीता’ का उपसंहार कहा जा सकता है। जिन-जिन गूढ़ बातों पर या ज्ञान की गहरी बातों पर पूर्व अध्याय में प्रकाश डाला गया है, उन सबका निचोड़ इस अध्याय में दिया गया है। एक अच्छे लेखक की अपनी विशेषता […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-89

गीता का सत्रहवां अध्याय अपनी चर्चा को निरंतर आगे बढ़ाते हुए श्रीकृष्णजी कहने लगे कि जो दान, ‘देना उचित है’-ऐसा समझकर अपने ऊपर प्रत्युपकार न करने वाले को, देश, काल तथा पात्र का विचार करके दिया जाता है उस दान को सात्विक दान माना गया है। इस प्रकार का दान सर्वोत्तम होता है, क्योंकि इस […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-87

गीता का सत्रहवां अध्याय श्रीकृष्ण जी कह रहे हैं कि संसार में कई लोग ऐसे भी होते हैं जो कि दम्भी और अहंकारी होते हैं। ऐसे लोग अन्धश्रद्घा वाले होते हैं और शारीरिक कष्ट उठाने को ही मान लेते हैं कि इसी प्रकार भगवान की प्राप्ति हो जाएगी। यद्यपि ऐसे कठोर तपों का शास्त्रों में […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-49

गीता का सातवां अध्याय और विश्व समाज ईश्वर विषयक भ्रम जो लोग विभिन्न देवी देवताओं की पूजा में लगे रहते हैं, या विभिन्न व्यक्तियों को ईश्वर मानकर उनकी पूजा करते रहते हैं-उन्हें श्रीकृष्ण जी बुद्घिहीन मानते हैं। कहते हैं कि जो बुद्घिहीन लोग मुझ अव्यक्त को व्यक्त हुआ मानने लगते हैं, अर्थात भिन्न-भिन्न देवताओं के […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-41

गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज अब पुन: हम उस आनन्द के विषय में ‘ब्रह्मानन्दवल्ली’ (तैत्तिरीय-उपनिषद) का उल्लेख करते हैं। जिसका ऋषि कहता है कि यदि कोई बलवान युवावस्था को प्राप्त वेदादि शास्त्रों का पूर्ण ज्ञाता सम्पूर्ण पृथ्वी का राजा होकर राज भोगे तो उसे उस राज से जो आनन्द प्राप्त होगा वह एक […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-25

गीता का चौथा अध्याय और विश्व समाज गीता के इन श्लोकों में यह तथ्य स्पष्ट किया गया है कि संसार में जब अनिष्टकारी शक्तियों का प्राबल्य होता है तो उस अनिष्ट से लडऩे वाली शक्तियों का भी तभी प्राकट्य भी होता है। जब बढ़ता संसार में घोर पाप अनाचार। तभी जन्मते महापुरूष दूर करें दुराचार।। […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-24

गीता का चौथा अध्याय और विश्व समाज अभी तक हमारे विश्व नेता वह नहीं बोल रहे हैं जो उन्हें बोलना चाहिए। उनके बोलने में कितनी ही गांठें लगी रहती हैं। बोलने में स्पष्टता नहीं है। छल नीति है। इसीलिए विश्वशान्ति के मार्ग में अनेकों बाधाएं हैं। इन बाधाओं को गीता ज्ञान समाप्त करा सकता है। […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-23

गीता का चौथा अध्याय और विश्व समाज गीता का चौथा अध्याय अभी पिछले दिनों दशहरा (30 सितम्बर 2017) के पावन पर्व पर देश के राष्ट्रपति भवन में पहली बार इस पर्व से सम्बन्धित विशेष कार्यक्रम रखा गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस अवसर पर कन्या पूजन का कार्यक्रम किया। इन दोनों […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-22

गीता का तीसरा अध्याय और विश्व समाज जब व्यक्ति अपना कार्य तो अधर्म पूर्वक करे अर्थात डाक्टर रोगियों की सेवा न करके उनकी जेब काटे, व्यापारी शुद्घ वस्तु न देकर मिलावट करे इत्यादि और सुबह-शाम मन्दिरों में घण्टे घडिय़ाल बजाये तो ऐसा कार्य अधर्म=निज स्वभाव के अनुसार न होकर भयजनक होता है, पाखण्ड होता है। […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-20

गीता का तीसरा अध्याय और विश्व समाज हमने पाकिस्तान के विरूद्घ भारत के प्रधानमंत्री मोदी को ‘सर्जिकल स्ट्राईक’ करते देखा। संयुक्त राष्ट्र में अपनी विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज को पाकिस्तान की बखिया उधेड़ते हुए देखा-ऐसे हर अवसर पर देश में भावनात्मक एकता का परिवेश बना, लोगों में सांस्कृतिक और सांगठनिक एकता का भाव बना। […]

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