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संपादकीय

गाय के उपलों से हवन?

पिछले अंक में हमने एक लेख गाय के विषय में दिया था। जिसमें लेखक खुशहालचंद आर्य ने गाय के उपलों से हवन करने की बात कही है। इस पर कुछ लोगों की प्रतिक्रिया आयी कि ऐसा करने से प्रदूषण अधिक होगा। अत: इसलिए उपलों से हवन नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही ऐसे लेख प्रकाशित […]

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संपादकीय

शिक्षा का उद्देश्य अभी भी स्पष्ट नहीं

पिछले दिनों केन्द्र सरकार ने शिक्षा पर सबका समान अधिकार मानते हुए इस दिशा में कुछ कदम उठाये हैं। गरीबों को भी अब निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढाने का अवसर मिलेगा। सरकार की नीति है कि पिछड़ा और दलित समाज भी शिक्षा क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत बना सके, इसलिए उस क्षेत्र […]

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संपादकीय

कितनी लातें….कितनी संख्या…?

भारत की सेना का इतिहास अत्यंत गौरवपूर्ण है। इसके गौरव का, गरिमा का और गर्व का, इतिहास युगों पुराना है। लाखों वर्ष पूर्व मान्धाता जैसे महान चक्रवर्ती सम्राट के काल में भी सेना का अस्तित्व था। भगवान राम और भगवान कृष्ण के काल में भी सेना का अस्तित्व था। इस सेना का प्रमुख कार्य कूटनीति […]

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संपादकीय

इन सैकुलरिस्टों को जनता चलता करे

भारत में सचमुच वह काला दिन था जब देश को सैकुलरिज्म के रास्ते पर डालने की बात सोची गयी थी। क्योंकि सैकुलरिज्म और भारतीय राजनीति का दूर दूर तक का भी कोई सम्बन्ध नहीं है । भारत में राजनीति को पंथनिरपेक्ष बनाने की दिशा में कार्य होना चाहिए था, परन्तु राजनीतिज्ञों की भाषा और उनकी […]

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ज्ञानी की कोई जाति नहीं होती : स्वामी चक्रपाणि

वशिष्ठ स्मृति में कहा गया है कि आचारहीन को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। भविष्य पुराण में भक्त की पवित्रता का उल्लेख करते हुए कहा गया कि कुल, रूप और धन के बल से कोई सच्चा भक्त नहीं हो सकता। भक्ति, ज्ञान और बाह्य प्रतिष्ठा से दूर आंतरिक पवित्रता से आती है, वही भक्त […]

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संपादकीय

इंद्रप्रस्थ से नौवी दिल्ली तक का सफर

पहली दिल्ली : महाभारत से पूर्व ओर महाभारत के युद्ध के कुछ काल पश्चात तक दिल्ली को इंद्रप्रस्थ कहा जाता था। यह राजा इन्द्र की राजधानी थी राजा इन्द्र का स्वर्ग यहीं पर विधमान था तो युधिष्ठर का ‘धर्मराज’ भी यही से चला था। बाद में उनकी पीढियों ने भी यही से शासन किया। सम्राट […]

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तब भी एक स्वाभिमानी की कुर्सी खाली थी

सारे देश के राजा महाराजा और काँग्रेस के नेता अपने ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम की एक झलक पाने और उसके साथ खड़े होकर फोटो खिंचवाने के लिए उस समय बहुत ही अधिक लालायित थे। किसी हो अपने या अपने देश के स्वाभिमान की कोई चिंता नहीं थी। सब इसी में अपना सम्मान समझ रहे थे […]

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संपादकीय

मुस्लिमों को आरक्षण या संरक्षण?

पहले जाति के नाम पर आरक्षण देकर देश के नेताओं ने देश में सामाजिक स्वरूप को जहरीला बनाया और अब साम्प्रदायिक आधार पर मुस्लिमों को आरक्षण देकर राष्ट्रीय परिवेश को और भी विषैला बनाने की कोशिश की जा रही है। सभी राजनीतिक दलों की दृष्टि में ‘मुस्लिम हित’ नहीं है अपितु मुस्लिमों के वोट हैं।भारत […]

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संपादकीय

अनुसूचित जन जातियां और भारत का विकास

भारत में जातियों का वेर्गीकरण और उनकी सामाजिक स्थिति को विकृत करने का काम अंग्रेजों ने किया। भारत की प्राचीन वर्णव्यवस्था कर्म के आधार पर थी। कर्म से ही व्यक्ति वर्ण निशिचत किया जाता था, कर्म परिवर्तन से वर्ण परिवर्तन भी सम्भव था। इसलिए एक शूद्र के ब्राह्राण बनने की पूर्ण सम्भावना थी। कालान्तर में शिक्षा के अभाव, वर्ण […]

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संपादकीय

अमनपसंद गिलानी व नेक दिल मनमोहन सिंह..

ऊंट के विवाह में गधा गीत गा रहा था, कोर्इ श्रोता नहीं था, कोर्इ दर्शक नहीं था। तब संस्कृत के किसी कवि के हदय के तार बज उठे और उनसे जो संगीत निकला उसने इन शब्दों का रूप ले लिया- उष्ट्रानाम् विवाहेषु गीतम गायंति गर्दभा:।परस्परम् प्रशंसन्ति अहो रूपम् अहो ध्वनि।। अर्थात् ऊंट के विवाह में […]

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