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संपादकीय

भारत किस विदेशी सत्ता या आक्रांता का कितनी देर गुलाम रहा? 2

जौनपुर इलाहाबाद की भांति ही जौनपुर भी अकबर के काल तक अपनी स्वतंत्रता को बचाये रहा पर 1583 में यहां भी मुगल सत्ता के रूप में विदेशी शासन स्थापित हो गया जो 1856 तक जारी रहा । 1856 से 1947 तक यहां ब्रिटिश शासन स्थापित रहा । जबकि सल्तनत काल मे यहां केसरिया फहराता रहा […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-98

गीता का अठारहवां अध्याय यहां पर श्रीकृष्णजी ने अपनी सुंदर शैली में यह स्पष्ट कर दिया है कि संसार के लोग मोहवश चाहे किसी काम को न कर सकें-परन्तु कर्मशील लोग संसार के सभी कार्यों को वैसे ही पूर्ण करते हैं-जैसी उनसे अपेक्षा की जाती है। ईश्वर की शरण का गुह्म उपदेश ईश्वर की शरण […]

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संपादकीय स्वर्णिम इतिहास

भारत किस विदेशी सत्ता या आक्रांता का कितनी देर गुलाम रहा?

भारत किस विदेशी सत्ता या आक्रांता का कितनी देर गुलाम रहा?भारत किस विदेशी सत्ता या आक्रांता का कितनी देर गुलाम रहा? इस पर मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा ‘भारत हजारों वर्षों की पराधीनता: एक औपनिवेशिक भ्रमजाल’ नामक ग्रंथ में शोधपूर्ण ढंग से बताया गया है। जिसमें पिछले 18000 वर्ष के कालखंड पर प्रकाश डाला […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

वीर बंदा वैरागी के जीवन का सिंहावलोकन

हिंदुत्व से मुस्लिम बादशाहों की घृणा डा. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है-”विदेशी हमले के जवाब में मध्यकाल के हिंदुओं की व्यवस्थित सुसंस्कृत और राष्ट्रीय शक्ति का शानदार संघर्ष, देश की सांस्कृतिक अस्मिता को बचाने का प्रेरणा स्रोत रहेगा।” इस टिप्पणी के आलोक में या संदर्भ में हमें शाहिद रहीम साहब का यह कथन भी ध्यान […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-97

गीता का अठारहवां अध्याय इन्हीं की ओर संकेत करते हुए श्रीकृष्ण जी उपदेश दे रहे हैं कि अहंकार, दर्प, बल, काम, क्रोध और धन सम्पत्ति को छोडक़र ममता से रहित होकर जो शान्त स्वभाव का हो जाता है-वह -‘ब्रह्मभूय’- अर्थात ब्रह्म के साथ एकाकार होने के योग्य हो जाता है। इस प्रकार मानव जीवन के […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-96

गीता का अठारहवां अध्याय वह परमपिता-परमात्मा इस जगत का मूल कारण है। उसी से सब प्राणी जन्म लेते हैं, उसी से यह सारा जगत व्याप्त है। उस ईश्वर की अपने कर्म से पूजा करके मनुष्य सिद्घि को प्राप्त कर लेता है। कहने का अभिप्राय है कि यदि व्यक्ति को सिद्घि को प्राप्त करना है तो […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

योगी का उत्तर प्रदेश और पर्यटन विकास

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों प्रदेश की राजधानी लखनऊ में निवेशकों की बैठक कराकर जिस प्रकार प्रदेश के लिए निवेशकों को लुभाया है उससे उनकी विकास पुरुष की छवि बनी है। लोगों को लगा है कि वह वास्तव में प्रदेश को वर्तमान दुर्दशा के दुर्दिनों के दौर से निकालने की कोई […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

वीर बैरागी का कृतित्व अनुपम और बलिदान था अद्वितीय

हिंदू प्रतिभा और पराक्रम मुगलकाल का विधिवत आरंभ अकबर के काल से माना जाता है। अकबर को भी उस समय हेमू जैसे वीर योद्घा के प्रबल प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। इस महान योद्घा के विषय में डा. आर.सी. मजूमदार लिखते हैं :- ”मध्यकालीन और आधुनिक इतिहासकारों ने हेमू के साथ न्याय नहीं किया […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-95

गीता का अठारहवां अध्याय त्रिविध सुख क्या है तीसरे सुख अर्थात तामसिक सुख के विषय में श्रीकृष्ण जी का मानना है कि तामसिक सुख प्रारम्भ से अन्त तक आत्मा को मोह में फंसाये रखता है। मोह का आवरण सबसे अधिक भयानक होता है। यह एक ऐसा आवरण है जिससे हर व्यक्ति चाहकर भी मुक्त नहीं […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-94

गीता का अठारहवां अध्याय अधर्म को धर्म समझ लेना घोर अज्ञानता का प्रतीक है। मध्यकाल में बड़े-बड़े राजा महाराजाओं ने और सुल्तानों ने अधर्म को धर्म समझकर महान नरसंहारों को अंजाम दिया। ये ऐसे नरसंहार थे -जिनसे मानवता सिहर उठी थी। वास्तव में ये कार्य तामसी बुद्घि के कार्य थे। ऐसे लोगों से संसार को […]

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