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विशेष संपादकीय

भावों की उज्ज्वलता से ही दोषों का शमन होता है

संसार में काम, क्रोध, मद, मोह लोभादि के कितने ही विकार बताये गये हैं, परंतु विद्वानों ने ‘भावों की निकृष्टता’ को सबसे अधिक घातक विकार बताया है। चिंतन का दूषित हो जाना सचमुच बड़ा घातक है। इसी चिंतन के कारण मनुष्य कहीं पिता से, कहीं पुत्र से, कहीं पत्नी से, कहीं पुत्री से, माता से […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-14

गतांक से आगे…..हमारे अब तक के कथन का निष्कर्ष यह है कि प्रथम विभाग वाले चमत्कारी वर्णन वेदों के हैं और दूसरे विभाग के वर्णनों का कुछ भाग वेदों का है और कुछ उस नाम के व्यक्तियों के इतिहासों का है, जिसे आधुनिक कवियों ने एक में मिला दिया है। अत: संभव और असंभव की […]

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विशेष संपादकीय

जब कलम से कांपते थे राजमहल

राजा सर रामपाल सिंह हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे। उन्हीं के द्वारा ‘हिंदुस्तान’ पत्र का शुभारंभ किया गया था। पत्र के पहले संपादक थे महान हिंदूवादी और प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक पंडित मदन मोहन मालवीय। मालवीय जी ने अपनी नियुक्ति से पहले ही राजा के समक्ष यह प्रस्ताव रख दिया था कि वे उन्हें कभी भी […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-13

ऐतरेय ब्राह्मण की साक्षीइसी तरह की दूसरी नामावलि ऐतरेय ब्राह्मण 7। 34 में लिखी हुई। उसमें लिखा है कि कावेषय: तुर, साहदेव्य: सोमक: साञ्र्जय: सहदेव, दैवावृधो अभ्रू: वैदर्भों भीम गांधारी नग्नचित्त जानकि: ऋुवित पैजवन: सुदस…..सर्वे हैव महाराजा आसुरादित्य इव ह स्म धियां प्रतिष्ठास्तपन्तित सर्वाभ्यो दिग्भ्यो बलिमावहन्ते।इसमें भी सार्वभौम राजों को उनके देश आदि के साथ […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-12

गतांक से आगे………सभी जानते हैं कि मनु से सूर्यवंश चला और उन्हीं मनु की इला नामी पौत्री से चंद्रवंश चला। मनु से इक्ष्वाकु हुए और इक्ष्वाकु की पुत्री से चंद्रवंश का मूलपुरूष पुरूरवा हुआ, अर्थात दोनों वंश एक साथ ही आरंभ हुए पर आगे चलकर दोनों की पीढिय़ों में जो घट बढ़ हुई वह बहुत […]

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विशेष संपादकीय

हताश, निराश और उदास लोगों का तीसरा मोर्चा

2014 के लोकसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर 11 राजनीतिक दलों ने देश की राजधानी दिल्ली में फिर अवसरवादी राजनीति को बढ़ावा देते हुए एक संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया और एक गैर भाजपा व गैर कांगे्रसी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक और जनोन्मुखी विकास करने वाले राजनैतिक मोर्चे को जन्म दिया। इस मोर्चे को भारतीय राजनीति की […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-11

गतांक से आगे………इस नील रंग का व्यापार मिश्र की जिस नदी के द्वारा होता था, उसको भी यहां रहने वाले नील ही कहते थे, जो नाइल के नाम से अब तक प्रसिद्घ है। जायसवाल महोदय कहते हैं कि भारतवासी नील नदी को जानते थे। हम कहते हैं कि यहां वाले नील नदी को जानते ही […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-10

इस पुस्तक के उपक्रम से यह बात स्पष्ट हो रही है कि योरप के विचारवान लोग वर्तमान भौतिक उन्नति से संतुष्ट नही है, प्रख्यात मनुष्य की स्वाभाविक स्थिति की खोज में है। उन्होंने यह बात निश्चित कर ली है कि मनुष्य अपनी उत्पत्ति के समय स्वाभाविक स्थिति में था और सुखी था। परंतु वह स्वाभाविक […]

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विशेष संपादकीय

”सत्य का समानार्थक अन्य कोई शब्द नही’

हिन्दी के कई शब्द ऐसे हैं जिनके समानार्थक शब्द किसी भी भाषा के पास उपलब्ध नही हैं। उनमें से एक शब्द ‘सत्य’ है। यह शब्द संस्कृत के सत्यम् से बना है। सत्यम् की सन्धि विच्छेद करने पर हमें यह शब्द स+ति+यम् से मिलकर बनता हुआ स्पष्ट होता है। इसमें वैयाकरणिक आधार पर ‘स’ का अर्थ […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-9

गतांक से आगे….इस व्याकुलता को सांड, भैंसा, बकरा आदि तुरंत ही मालूम कर लेते हैं और गर्भ स्थापन कर देते हैं। जिन मादा पशुओं को आवश्यकता नही है, उनके नर उनकी ओर दृष्टिपात भी नही करते। किंतु मनुष्य में यह बात बिलकुल नही पाई जाती। न तो ऋतुमती स्त्री को ही कोई विलक्षण व्याकुलता होती […]

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