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कविता

अवधपति! आना होगा

112-
प्राची का पट खोल, बाल सूरज मुस्काया।
भ्रमर कली खग ओस बिंदु को अतिशय भाया।।
जागी प्रकृति तुरन्त, हुए गायब सब तारे।
पुनः हुए तैयार, विगत में जो थे हारे।।

उठे बालगण खाट छोड़ माँ – माँ – माँ रटने।
माँ दौड़ी सब काम छोड़ लख आँचल फटने।।
काँधे पर ले स्वप्न, सूर्य सँग जाना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

113-
अब भी सीता देख, बहुत ललचाता रावण।
सूर्पणखा की राह, पुनः अपनाता रावण।।
खर – दूषण की मौत, समझ कब पाता रावण!
समझाने पर मूढ़, दर्प दिखलाता रावण।।

दशकंधर दशकंध, पाप राही अनुगामी।
बुधि विवेक मतिहीन, वासना परवश कामी।।
धरती से लंकेश कुटुम्ब मिटाना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

114-
कोरोना की चाह, सफाई रक्खो भाई।
बार-बार निज हाथ ठीक से करो धुलाई।।
मुँह पर बाँधो मास्क, रखो दो गज की दूरी।
नहीं लगाओ हाथ वस्तु जो नहीं जरूरी।।

सैनीटाइज बार बार हो दफ्तर, बाड़ी।
जानबूझ हर बार बनो मत अपढ़ अनाड़ी।।
कोरोना के हेतु नियम अपनाना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

115-
राम रसायन स्वाद लिया जो कवि,ऋषि,योगी।
घर में भी घरमुक्त सदा वह रहा वियोगी।।
करता है हर कर्म किन्तु आसक्ति रहित वो।
लाभ हानि प्राप्तांक, राम अनुसार फलित हो।।

माँ शबरी सा आस, हृदय में हरदम रखता।
राम नाम बड़ स्वाद सदा चखता ही रहता।।
भक्तों को भवपार, अवश्य कराना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

116-
कैकेयी के संग, मंथरा अद्भुत जोड़ी।
लेकर प्रिय के प्राण, न विचलित हुई निगोड़ी।।
जिसकी रक्षा हेतु, लड़ी देवासुर रण में।
जिसके पालन हेतु, जाग जाती थी क्षण में।।

देवलोक,घर, राज्य, भूमि, अम्बर, सचराचर।
उदाहरण में नाम, लिखा था सबसे ऊपर।।
संग – कुसंग प्रभाव, सत्य ठहराना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

117-
राम नाम रसखान, पियो जी छक कर प्यारे।
आदि अनादि अनंत, अगोचर अगम उचारे।
धर मनुष्य का रूप, किये लीला रघुवीरा।
देव मनुज गंधर्व, दनुज सब हुए अधीरा।।

कोई कहता राम, नहीं हैं जिष्णु पुरातन।
कोई कहता सीय, नहीं हैं शक्ति सनातन।।
फिर से शाश्वत भान, अवश्य कराना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति!आना होगा।।

118-
राम नाम आधार, अन्य क्षणभंगुर नश्वर।
इनसे ही भव पार, सभी होते हैं तट पर।।
इधर उधर की बात न सोचो और न भटको।
पगबाधा को देख न मद -माया में अटको।।

कर्म मर्म से शुद्ध, धर्म की राहें पकड़ो।
गुरु सज्जन गुणवान, मिलें तो सादर जकड़ो।।
बहुत हो चुकी देर, न समय गँवाना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

119-
राम- नाम अनमोल, मोल संगति सज्जन की।
कर लो पर उपकार, शपथ सदगुरु चरनन की।।
दीनबंधु हैं राम, दीन की करो भलाई।
सर्वोत्तम यह कार्य, खुशी होंगे रघुराई।।

यही असल है धर्म, यही मानवता उत्तम।
करके यह श्रीराम, बने जग में पुरुषोत्तम।।
रामराज्य रक्षार्थ, इसे अपनाना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति!आना होगा।।

120-
सत्य – झूठ के बीच, फँसा इंसान अकारण।
माया – चादर ओढ़, खोजता रहता तारण।।
अंधकूप में बैठ, बना कर्त्तव्य विहीना।
परिवर्तन के साथ, नहीं उसको है जीना।।

बना कूप – मंडूक, खुला अम्बर क्या जाने!
आजादी का असल, मायने कब पहचाने!
स्वयं पकड़कर बाँह , राह पर लाना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

121-
सूरज है बेकार, निकलता है देरी से।
जुगनू ठोके ताल, बजाता रणभेरी से।।
हँसता सूरज देख, मूर्ख की ये नादानी।
कानी बनने आज चली है ज्यों पटरानी।।

करो नीच को ऊँच मगर शुचि निगरानी में।
वरन लगेगी आग, गंग-जमुनी पानी में।।
अगर असल हो श्रेष्ठ, कर्मफल लाना होगा।
अवध न जाए हार, अवधपति! आना होगा।।

डॉ अवधेश कुमार अवध

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