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कविता

बिनु रुके, थके बिनु, बिनु हारे

बिनु रुके, थके बिनु, बिनु हारे

जीवन के जटिल जंक्शन पर
जब उचित राह ना समझ सको
मत अड़े रहो, मत खड़े रहो
चल दो फौरन बस किसी ओर
शायद उस पर ही मंजिल है….

यदि उस पर मंजिल नहीं मिले
मत हो उदास, मत हो निराश
उस पथ पर लिख दो-
लक्ष्य हीन, मंजिल विहीन
यह पथ तो मात्र छलावा है….

लौटो मन में निश्चय लेकर
चल पड़ो दूसरे पथ फौरन
यह याद रखो, मन पर टाँको
जब तक मंजिल ना मिलती हो
तब तब हर पथ को विजित करो
बिनु रुके, थके बिनु, बिनु हारे।

डॉ अवधेश कुमार अवध

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