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कविता

सोच सको तो सोचो

गिलगित बाल्तिस्तान हमारा है हमको लौटाओ।
वरना जबरन ले लेंगे मत रोओ मत चिल्लाओ।।
खून सने कातिल कुत्तों से जनता नहीं डरेगी।
दे दो वरना तेरी छाती पर ये पाँव धरेगी।।
तेरी मेरी जनता कहने की ना कर नादानी।
याद करो आका जिन्ना की बातें पुन: पुरानी।।
देश बाँटकर जाते जाते उसने यही कहा था-
“पाक नहीं चल पाया तो भारत में इसे मिलाओ।”
गिलगित बाल्तिस्तान हमारा है हमको लौटाओ।।

बार बार हम माफ किये थे तुम्हें समझकर भाई।
कुत्ते की दुम सा तुम ऐंठे बात समझ ना आई।।
जिस मजहब का ढोल पीटकर तुम आतंक मचाते।
तुमसे ज्यादा भारत में रहते रहकर इठलाते।।
कान खोलकर सुनो पाक नापाक नदारद होगा।
नफरत फैलाने वालों ने कब कितना सुख भोगा!!
जिन्ना से आगे बढ़कर कुछ सही दिशा में सोचो-
मानव को मानव बम अब तो हरगिज नहीं बनाओ।
गिलगित बाल्तिस्तान हमारा है हमको लौटाओ।।

वह सत्ता का भूखा था भूखे थे कुछ अपने भी।
चकनानूर किए थे मिलकर भारत के सपने भी।।
हम विकास की राह चले तुम चले कुराह कसाई।
सही पड़ोसी बन पाये ना रह पाये तुम भाई।।
दुनिया में चहुँ ओर बज रहा है भारत का डंका।
रामराज की ओर चले हम तुम रावण की लंका।।
अलग थलग पड़कर दुनिया में आतंकी कहलाये-
सोच सको तो सोचो अथवा भारत में मिल जाओ।
गिलगित बाल्तिस्तान हमारा है हमको लौटाओ।।

डॉ अवधेश कुमार अवध

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