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आओ कुछ जाने विश्वगुरू के रूप में भारत

भौगोलिक ज्ञान का स्पष्ट चित्रण है भारत के पुराणों में

  मिश्र की लोकमाता नदी का ‘नील’ नाम शुद्ध संस्कृत है, ऐसा पाश्चात्य अन्वेषक कहते हैं। प्राचीन काल के भारतीयों के भौगोलिक ज्ञान के विषय में जिन्होंने गहरा अध्ययन किया है, वह Francis Wilford (1761–1822) कहते हैं कि “भारतीय पुराणों में वर्णित शंख के आकारवाला द्वीप अफ्रीका ही है।’ नील नदी के उद्गम के विषय […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

सुशासन का भारतीय स्वरूप क्या है ?

  लेखक:- रामेश्वर प्रसाद मिश्र पंकज सुशासन पर विचार करने से पूर्व इसके आधार और स्वरूप के विषय में भारतीय ज्ञानपरंपरा, राजनीति की परंपरा को तथा इतिहास के तथ्यों को जान लेना चाहिए। इसमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि विश्व में केवल भारत ही एकमात्र ऐसा राष्ट्र है, जहां प्राचीन काल से ही राजनीतिशास्त्र […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

आजादी के 75 वें वर्ष के आयोजनों ने दिया नये सक्षम और समर्थ भारत का संकेत

ललित गर्ग पुस्तक में संघ के प्रति जन दृष्टिकोण एवं संघ का राष्ट्र निर्माण में योगदान का समन्वित प्रस्तुतीकरण है। भारत के राजनीतिक भविष्य के संदर्भ में संघ अनुभव करता है कि यहां बहुत से राजनीतिक दल होंगे किंतु वे सब प्राचीन भारतीय परंपरा एवं आध्यात्मिक धरोहर का सम्मान करेंगे। आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाने […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

भारत “एक अस्वाभाविक राष्ट्र” है या फिर ”एक राष्ट्ररूप’ में एक ‘अस्वाभाविक अवधारणा’ है ?

सुशोभित सक्तावत रामचंद्र गुहा की किताब “इंडिया आफ़्टर गांधी” यूं तो स्‍वतंत्र भारत का राजनीतिक इतिहास है, लेकिन वह एक रूपक भी है। यह रूपक है : “इंडिया : द अननेचरल नेशन।” किताब में कोई भी सवाल हो : बंटवारे का मसला, रियासतों के विलय का मुद्दा, संविधान सभा में कॉमन सिविल कोड या राजभाषा […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

विश्व गुरु भारत का गौरवशाली इतिहास : एक दृष्टिकोण

(‘उगता भारत डेस्क) परम्परा से भारत को ‘विश्वगुरु’ कहा जाता है. इसका कारण यह है कि धर्म, दर्शन, विज्ञान, वास्तु, ज्योतिष, खगोल, स्थापत्यकला, नृत्यकला, संगीतकला, आदि सभी तरह के ज्ञान का जन्म भारत में हुआ। मध्यकाल में भारतीय गौरव को नष्ट किया गया और आज का भारतीय, पश्चिमी सभ्यता को महान् समझता है। इसका कारण […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत स्वर्णिम इतिहास

यूरोप की केल्टिक सभ्यता थी कभी वैदिक सभ्यता

रोमन शासक कांस्टेंटाईन के ३१२ ईस्वी में ईसाई धर्म अपनाने और यूरोप में उसके द्वारा ईसायत के प्रसार से पूर्व यूरोप में वैदिक संस्कृति होने के प्रमाण मिलते हैं. इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं कि यूरोप के ड्रुइडस भारतीय ब्राह्मण थे और उनके मार्गदर्शन में विकसित केल्टिक या सेल्टिक संस्कृति स्थानीय परिवर्तनों के […]

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इतिहास के पन्नों से विश्वगुरू के रूप में भारत स्वर्णिम इतिहास

भारत के महान हिंदू सम्राटों के विजय अभियान 4,5,6

रामायण और महाभारत तथा पुराणों से यह स्पष्ट है कि यवन भी भारतीय क्षत्रिय ही हैं ।सम्राट अशोक का शासन यवन प्रांत तक था और यवनराज तुषार अशोक का एक सामंत था। पुष्यमित्र के पुत्र वसुमित्र ने सिंधु तीर पर यवनों को परास्त किया ,,इसका उल्लेख भी पुराणों में और महान वैयाकरण पतंजलि के महाभाष्य […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

भारत के महान हिंदू सम्राटों के विजय अभियान 1,2,3,4

भारत के महान हिंदू सम्राटों के विजय अभियान:1 ————/—————— लेखिका :- कुसुमलता केडिया भारत के प्रतापी सम्राट सदा से ही विजई अभियान चलाते रहे हैं । वेदों में भी ऐसे अभियानों का वर्णन है। यौवनाश्व के पुत्र मांधाता चक्रवर्ती सम्राट थे और उनका शासन संपूर्ण विश्व में था, ऐसा सभी पुराणों में और प्राचीन भारत […]

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इतिहास के पन्नों से विश्वगुरू के रूप में भारत

रहस्यमयी लिपि में छुपा है भारत का प्राचीन इतिहास

अनिरुद्ध जोशी प्राचीन काल में ऐसी कई भाषाएं या उनकी लिपियां लुप्त होकर अब रहस्य का विषय बनी हुई है। भारत की इन लिपियों का रहस्य खुल जाए तो भारत के प्राचीन इतिहास का भी एक नया ही आयाम खुल सकता है। भारत में कई जगह ऐसी लिपियों में कुछ लिखा हुआ है जिन्हें अभी […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

एशिया महाद्वीप में आज भी हावी प्रभावी हैं प्राचीन भारत की मान्यताएं

डॉ. एन.एस.शर्मा इ तिहास के पन्ने साक्षी हैं कि विश्व की विभिन्न संस्कृतियों का लोप हो जाने के बावजूद अपने अंतर्निहित शाश्वत तत्वों के कारण भारतीय संस्कृति आज भी अक्षुण्ण है। भारतीयों के पर्वत और आकाश की ऊंचाइयों को नापकर और समुद्र की गइराईयों को पार करके दक्षिण मध्य एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के […]

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