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इतिहास के पन्नों से विश्वगुरू के रूप में भारत

भारत का गौरवपूर्ण अतीत : वेदों में वर्णित जल और नौका विज्ञान

  कृपाशंकर सिंह ऋग्वेद मे कुएँ का उल्लेख अनेक ऋचाओं में हुआ है। इससे पता चलता है कि ऋग्वेदिक काल में सिंचाई के साधनों में कुआँ का उपयोग भी होता रहा होगा। इसकी प्रप्ति कई़ ऋचायों मे चरस का नाम आने से भी होती है। सम्भवतः पीने के लिये भी कुएँ के पानी का उपयोग […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

संसार के पहले समुद्र यात्री महर्षि अगस्त्य

  महावीर प्रसाद द्विवेदी (लेखक सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हैं।) कूपमण्डूकता बड़ी ही अनिष्टकारिणी क्या एक प्रकार से, विनाशकारिणी होती है। मनुष्य यदि अपने ही घर, ग्राम या नगर में आमरण पड़ा रहे तो उसकी बुद्धि का विकास नहीं होता, उसके ज्ञान की वृद्धि नही होती, उसकी दृष्टि को दूरगामिनी गति नहीं प्राप्त होती। देश—विदेश जाने, […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

सभ्यता की शक्ति में ही बसती है भारत की आत्मा

  भारत के राजनेताओं का यह कत्र्तव्य है कि वे चुनाव से पहले मतदाताओं को अर्थात् राष्ट्र को यह बतलाएँ कि उनकी दृष्टि में भारत का बल क्या है और भारत की निर्बलता या कमजोरी क्या है? साथ ही बल को बढ़ाने के लिए और कमजोरी को खत्म करने के लिए कौन से प्रभावकारी और […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

विश्व की सभी सभ्यताओं पर रहा है,वैदिक सभ्यता का वर्चस्व

संकलन :अनिरुद्ध जोशी ‘शतायु’ भारतीय संस्कृति व सभ्यता विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। मध्यप्रदेश के भीमबेटका में पाए गए 25 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र, नर्मदा घाटी में की गई खुदाई तथा मेहरगढ़ के अलावा कुछ अन्य नृवंशीय एवं पुरातत्वीय प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि भारत की भूमि आदिमानव की […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

भारतीय विज्ञान की पहुंच वर्तमान विज्ञान से कम नहीं

गुरूदत्त विज्ञान और विज्ञान से हमारा अभिप्राय है भारतीय विज्ञान और पाश्चात्य विज्ञान। इसका अर्थ प्राचीन विज्ञान और अर्वाचीन विज्ञान भी है। क्या प्राचीन काल में भी किसी प्रकार का विज्ञान था? अन्य देशों की बात तो हम नहीं जानते, किन्तु भारतवर्ष में विज्ञान नाम प्रचलित था और उसमें बहुत उन्नति भी हुई थी। भगवद्गीता […]

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अध्यात्म ही नहीं, विज्ञान की भी भाषा है संस्कृत

श्रीश देवपुजारी (लेखक संस्कृत भारती के प्रचार प्रमुख हैं।) केन्द्रीय विद्यालयों में संस्कृत तथा अन्यान्य भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं की जगह पर जर्मन का पढ़ाया जाना असंवैधानिक ही नहीं अपितु भारत की स्वतन्त्र चेतना के भी विरुद्ध कदम है। चूँकि इस निर्णय से सर्वाधिक दुष्प्रभाव संस्कृत पर पड़ रहा था और इसे पुन: संशोधित करने से […]

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चरक संहिता अौर आधुनिक विज्ञान

डॉ. दीप नारायण पाण्डेय (लेखक आयुर्वेद के जानकार और पूर्व आईएएस अधिकारी हैं।) सोशल मीडिया में स्वयंभू विशेषज्ञों का बहुत बड़ा जमावड़ा लगा रहता है। आयुर्वेद भी इससे अछूता नहीं है। इन्टरनेट में आयुर्वेद के एक्सपट्र्स और उनके नुस्खों का बोलबाला है। जन-सामान्य भी इन्टरनेट में खोजबीन कर इसी ज्ञान से अपना काम चलाने की […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत

प्राचीन भारत के राजनीतिक सिद्धांतों और विज्ञान को आज लागू करन की आवश्यकता

डॉ. पवन सिन्हा (लेखक आध्यात्मिक गुरु तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक हैं।) यदि मैं वर्तमान हूँ तो मैं अपने इतिहास का उत्पाद हूँ। इसका अर्थ है कि मेरा इतिहास ही मुझे बता रहा है कि आज मैं क्या हूँ और उसी इतिहास के आधार पर मैं यह तय करूँगा कि मैं कल क्या […]

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प्राचीन काल में भारत के प्रशासनिक अधिकारी

प्रो लल्लन प्रसाद चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन काल भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है। इसके विधाता निर्माता, सलाहकार सब कुछ आचार्य कौटिल्य थे। राज्य को उन्होंने एक सशक्त प्रशासनिक ढांचा दिया, विभागध्यक्षों में स्पष्ट कार्य विभाजन किया, उनकी कार्यशैली, आपसी सहयोग के नियम, उनके कामों के निरीक्षण की प्रणाली, उनको प्रोत्साहन तथा दण्ड […]

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विवेकानंद का शिकागो भाषण

✍🏻अजेष्ठ त्रिपाठी शिकागो धर्मसभा में जहाँ सभी विद्वान् दुनिया भर के चोटी के विद्वानों, वैज्ञानिकों और चिंतकों की उक्तियों के साथ अपने उद्बोधन दे रहे थे वहीं जब आप स्वामी विवेकानंद द्वारा उस धर्म-सम्मेलन में दिए गये भाषण को पढ़ेंगे तो आपको दिखेगा कि अपने पूरे भाषण में उन्होंने किसी आधुनिक वैज्ञानिक, आधुनिक चिंतन का […]

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