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कविता

गीता मेरे गीतों में , गीत 69 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

जो भक्ति मन से करे …. अनन्य – भाव से जो करे, मेरी भक्ति पार्थ। मिलता उसको मोक्ष है , यहां आया जो सेवार्थ।। जो भक्ति मन से करे , उसे मिलते करुणाकंद । सत , रज , तम से पार हो , पाता परमानंद।। सेवा महात्माओं की करें , जो हैं ईश्वर भक्त। आकर्षण […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 68 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

हथियार उठा निर्भय होकर जो धैर्य रखने वाला हो , कष्टों में ना घबराता है, स्तुति और निंदा में जो समदर्शी रह पाता है। मान और अपमान में भी भाव समान बनाए रखे ऐसा मानव ही दुनिया में भगवान का भक्त कहाता है।। जो शत्रु का भी हितचिंतन करे मित्र की भांति ही, नहीं डिगा […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 67 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

आ गया धरा के आंगन में गुणातीत भी तू, शब्दातीत भी तू, कैसे तुझसे किन शब्दों में हम संवाद करें ? जो निर्गुण और सगुण दोनों है, किस प्रार्थना के द्वारा उससे हम बात करें? हर पल साथ हमारे रहता पर कभी दिखलाई नहीं पड़ता है, ‘चरैवेति -चरैवेति’ कहते-कहते संत गए उसकी अतुलित महिमा का […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 65 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

उसके बाहर कुछ शेष नहीं देह क्षेत्र कहलाती अर्जुन ! क्षेत्रज्ञ इसका ज्ञानी होता। संसार ‘क्षेत्र’ है – ‘क्षेत्रज्ञ’ इसका ईश्वर सा मानी होता।। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश क्षेत्र में आते हैं। दस ज्ञानेन्द्री कर्मेन्द्री और उनके विषय इसी में आते हैं।। अहंकार , बुद्धि और प्रकृति भी इसी में शामिल होती है। […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 64 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

ईश्वर भासता ब्रह्मांड में एक सूर्य ही कर रहा, प्रकाश सभी लोक में। सब मस्त रह जीवन चलाते प्राणी इस लोक में, प्राणी सब स्वस्थ रहते , इसके ही आलोक में, सब प्राणियों का ध्यान रखता खुशी और शोक में।। उपकार इसके हैं घने , कोई बतला सकता नहीं, सब जगह सब काल में हमसे […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 64 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

ईश्वर भासता ब्रह्मांड में एक सूर्य ही कर रहा, प्रकाश सभी लोक में। सब मस्त रह जीवन चलाते प्राणी इस लोक में, प्राणी सब स्वस्थ रहते , इसके ही आलोक में, सब प्राणियों का ध्यान रखता खुशी और शोक में।। उपकार इसके हैं घने , कोई बतला सकता नहीं, सब जगह सब काल में हमसे […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 63 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

निसंग रहता है सदा जो तेरे – मेरे से उठे और मिटा देत दुर्भाव। मुझको पाता है वही, जो रखता हो सद्भाव।। परमपिता – परमात्मा स्वयं रमा मेरी देह। निसंग रहता है सदा , पर रखता सबसे नेह।। आकाश सर्वत्र व्याप्त है, पर नहीं किसी में लिप्त। हर वस्तु से दूर है , होकर भी […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 62 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

सब हो जाओ निसंग करता जो मेरे लिए अपने सारे काम । आनन्द जग में वह करे पाता है कल्याण।। निष्काम कर्मी बन सदा , भजत प्रभु का नाम। भक्त बने भगवान का , मिले मोक्ष का धाम।। जिसने त्यागा बैर को , चले बाँटता प्रीत। उसको ही भगवान की मिलती हरदम प्रीत।। ना किसी […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 61 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

ज्ञान, दर्शन और प्रवेश श्री कृष्ण बोले – मैं अर्जुन, लोकों को कर सकता हूँ क्षय। मैं वही काल हूँ – जिस पर ना पा सकता कोई विजय ।। जितने योद्धागण यहाँ खड़े हुए ये कभी नहीं बच सकते। ये सारे मिलकर कभी नहीं सामना मेरा कर सकते ।। जिसको शक्ति है सुख देने की, […]

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परमपिता परमात्मा की अनंत कृपा के संदर्भ-

बिखरे मोती तू सौवे वह जागता, चला रहा तेरे सांस । हृदय की धड़कन चला, करता तेरा विकास॥1959॥ संत संनिधि के संदर्भ में- आत्मवेत्ता संत मिले, तो सद् गुण बढ़ जाय। जैसे पारस लोहे को, सोना दे बनाय॥1960॥ मूरख के स्वभाव के संदर्भ में – मूरख निज मन की करे, समझाना बेकार । ज्ञान की […]

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