जब गजनवी के दरबार से सोमनाथ का आकलन और खिलजी के दरबार से पद्मावती का आकलन, बख्तियार के दरबार से नालंदा का आकलन तथा गोरी के दरबार से पृथ्वीराज का आकलन पढ़ेंगे तो – कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे! जब बाबर के दरबार से राणा साँगा का मूल्यांकन और हुमायूँ के दरबार से सती […]
श्रेणी: कविता
कान खोलकर सुन लो कान खोलकर सुन लो- हे अंध-संविधान समीक्षकों! हे तथाकथित कानून रक्षकों! हे समाज के ठेकेदारों! है मज़हबी जालसाज़ों! हे वासना को प्यार कहने वाले कामलोलुपों! हे पाप को प्यार कहने वाले पापियों! हे फिल्मी जोकरों! हे लिव इन रिलेशनशिप के पैरोकारों! हे सनातनी जीवन पद्धति के विरोधियों, गद्दारों! आज हम डंके […]
जो नहीं हो सके पूर्ण-काम मैं उनका करता हूँ प्रणाम। कुछ कुंठित औ’ कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट जिनके अभिमंत्रित तीर हुए; रण की समाप्ति के पहले ही जो वीर रिक्त तूणीर हुए! —उनको प्रणाम! जो छोटी-सी नैया लेकर उतरे करने को उदधि-पार; मन की मन मे ही रही, स्वयं हो गए उसी में निराकार! —उनको प्रणाम! जो […]
मौत झोली लिए घूम रही है मृत्यु उस बंदर की तरह है जो एक मक्के के खेत में घुस जाने पर नए-नए भुट्टे तोड़ता जाता है, और बगल में लगाता जाता है। अफसोस कि बंदर जैसे ही दूसरा भुट्टा अपनी बगल में लगाता है, पहला बगल से गिरता जाता है, बंदर सारा खेत समाप्त कर […]
बिखरे मोती “प्रकृति परिवर्तनशील है” किन्तु इस नियम में अपवाद भी है, जैसे:- हवा सदा बहती रहे, पर्वत रहें कठोर। रवि सदा तपता रहे, सांझ होय चाहे भोर।।1998॥ भक्ति की परिकाष्ठा के संदर्भ में – भक्ति चढ़े परवान तो, छूट जाय संसार। कण-कण में दिखने लगे, सबका प्राणाधार॥1999॥ वैश्वानार एक रूप अनेक – फूलों में […]
अन्त में ……. सन्देश – आज के अर्जुन ! जाग जा पगले, नींद अधर्म की क्यों सोता? देश – धर्म पर संकट भारी , समय व्यर्थ में क्यों खोता ? जिनको तू अपना समझे था ,वही तुझे ललकार रहे। तेरा धर्म यही बनता है , निर्भय हो संहार करे।। सत्य सनातन की रक्षा हित , […]
संदेह मेरे सब मिट गए माधव ! सब धर्मों को छोड़कर जो शरण प्रभु की आ जाता। हो जीवन का कल्याण उसी का सारे वैभव पा जाता।। तू शरण में आ जा अर्जुन मेरी ,मैं ही जगत की हूँ माता। जो भी करता याद मुझे , मैं अंतर्मन में मिल जाता।। कर्त्तापन का बहम दूर […]
जो भक्ति मन से करे …. अनन्य – भाव से जो करे, मेरी भक्ति पार्थ। मिलता उसको मोक्ष है , यहां आया जो सेवार्थ।। जो भक्ति मन से करे , उसे मिलते करुणाकंद । सत , रज , तम से पार हो , पाता परमानंद।। सेवा महात्माओं की करें , जो हैं ईश्वर भक्त। आकर्षण […]
हथियार उठा निर्भय होकर जो धैर्य रखने वाला हो , कष्टों में ना घबराता है, स्तुति और निंदा में जो समदर्शी रह पाता है। मान और अपमान में भी भाव समान बनाए रखे ऐसा मानव ही दुनिया में भगवान का भक्त कहाता है।। जो शत्रु का भी हितचिंतन करे मित्र की भांति ही, नहीं डिगा […]
आ गया धरा के आंगन में गुणातीत भी तू, शब्दातीत भी तू, कैसे तुझसे किन शब्दों में हम संवाद करें ? जो निर्गुण और सगुण दोनों है, किस प्रार्थना के द्वारा उससे हम बात करें? हर पल साथ हमारे रहता पर कभी दिखलाई नहीं पड़ता है, ‘चरैवेति -चरैवेति’ कहते-कहते संत गए उसकी अतुलित महिमा का […]