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गीता मेरे गीतों में , गीत 60 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) तेरी शक्ति अपरिमित कितनी ?

तेरी शक्ति अपरिमित कितनी ? अर्जुन बोला – हे मधुसूदन ! मैं कैसा देख रहा हूँ रूप ? सारे देव एक साथ में बैठे और नतमस्तक बैठे हैं भूप।। अनेक मुख, उदर और बाहु आदि चारों ओर दिखाई देते। हे विश्वेश्वर ! विश्वरूप !! मुझे तेरे दिव्य रूप दिखाई देते।। ना आदि कहीं ना मध्य […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 59 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) सृजन जहां – है विध्वंस वहीं

सृजन जहां – है विध्वंस वहीं भगवान अनेकों मुख वाला और आंखों वाला होता है। धारण करता अनेकों दिव्य भूषण वस्त्रों वाला होता है।। अनेकों शस्त्रों से रहे सुसज्जित, शत्रु संहारक होता है। वेद की यह उक्ति सही है वह ब्रह्मांड का धारक होता है।। सब ओर उसके मुख होते, सब ओर ही आंखें रखता […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 58 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

विश्व रूप का दर्शन करना अनेकों रूप ईश्वर के जिन्हें मैं योग से जाना। तू भी देख ले अर्जुन! कितने रूप हैं नाना।। जो तूने देखा नहीं अब तक , उसे तू देख ले अर्जुन। मेरे में सिमटा हुआ सारा यह संसार है अर्जुन।। विश्व के दर्शन करा दिए , एक ब्रह्म तत्व में कृष्ण […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 57 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

समझ बिना अस्थि वाले को ब्रह्मामृत का सेवन करते, हम उसको ही ध्याते भजते रहें। मिलेगा निश्चय वह हमें ऐसा जान निरंतर आगे बढ़ते रहें।। स्थित समस्त धामों में , हमारे विचार भाव में रमा हुआ। जानता भाव-भुवन को भी,ना कोई उससे बचा हुआ।। प्रभु के ऊंचे खेलों को ना हर कोई समझ पाता जग […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 56 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

इस बंधन को अटूट करें तू देख नहीं सकता मुझको अपने भौतिक संसाधन से। आंखें कुछ दूरी तक काम करें अपने सीमित साधन से।। मैं दिव्य चक्षु तुझको देता, पार्थ !देख सके तो देख जरा। क्या है मेरा योग -ऐश्वर्य ? तू ध्यान लगा कर देख जरा।। मेरी दिव्य दृष्टि पाकर अर्जुन ! अपने सारे […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 55 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

ईश्वर को जानो कण-कण में , विभूति होती देन योग की हर किसी को नहीं मिला करती। जिनकी बने साधना ऊंची उनका ही अवलंब लिया करती।। विभूति संपन्न अनेकों जन संसार में सम्मानित हुआ करते। जिन पर कृपालु की कृपा नहीं, वे अपमानित हुआ करते।। जिनकी कथनी करनी में भेद रहे , वे ही पिशाच […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 54 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

मेरी विभूतियां अनंत हैं मेरी विलक्षण शक्तियां , हैं मेरी तरह ही अनंत। दिव्यताओं का मेरी ना हो सकता कभी अंत।। जो कुछ भी यहां हो रहा सबका ईश्वर मूल। किसी को कांटे मिल रहे , किसी को मिलते फूल।। प्रारब्ध प्रबल होत है , खिला रहा सब खेल। किसी का जीवन स्वर्ग सम किसी […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 53 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

जय – विजय करता हूँ मैं तर्ज :- कह रहा है आसमां …. उत्पन्न करता सारे जग को और भरण करता हूँ मैं। अंत में प्रलय मैं करता , मरण भी करता हूँ मैं ।। ‘वासुदेव’ मुझको ही कहा है , संसार का हूँ आसरा। सुख – संपदा देता हूँ सबको , चिंताएं हरता हूँ […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 52 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

कृष्ण जी द्वारा ओ३म का गुणगान तू मेरा अनुसरण कर अर्जुन- यह अर्जुन को था बतलाया। आदर्श – उद्देश्य क्या जीवन का? -खोलकर था समझाया।। ‘मैं’ और ‘मेरा’ का गीता में जहां कहीं उल्लेख हुआ। वहां – वहां श्री कृष्ण जी ने ईश्वर का ही उपदेश दिया।। ‘मैं’ और ‘मेरा’ के द्वारा भी कोई ‘अहं […]

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गीता मेरे गीतों में , गीत 52 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

कृष्ण जी द्वारा ओ३म का गुणगान तू मेरा अनुसरण कर अर्जुन- यह अर्जुन को था बतलाया। आदर्श – उद्देश्य क्या जीवन का? -खोलकर था समझाया।। ‘मैं’ और ‘मेरा’ का गीता में जहां कहीं उल्लेख हुआ। वहां – वहां श्री कृष्ण जी ने ईश्वर का ही उपदेश दिया।। ‘मैं’ और ‘मेरा’ के द्वारा भी कोई ‘अहं […]

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