Categories
कविता

गीता मेरे गीतों में , गीत 68 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

हथियार उठा निर्भय होकर

जो धैर्य रखने वाला हो , कष्टों में ना घबराता है,
स्तुति और निंदा में जो समदर्शी रह पाता है।
मान और अपमान में भी भाव समान बनाए रखे
ऐसा मानव ही दुनिया में भगवान का भक्त कहाता है।।

जो शत्रु का भी हितचिंतन करे मित्र की भांति ही,
नहीं डिगा सकती उसको निज पथ से भयंकर आंधी भी।
उसके कष्ट नष्ट हो जाते और जीवन पथ प्रकाशित हो
वह सबका हो करके रहता और न्याय का रहे हिमाती भी।।

सपनों में घुन लग जाता और महल खड़े रह जाते हैं,
उल्टी चलते चाल जगत में , ना चैन कभी वह पाते हैं।
जिन्हें निंदा चुगली अच्छी लगती चिंतन उनका नीच रहे
भगवान उन्हीं को दर्शन देते व्यसन जिनके मिट जाते हैं।।

जीवन एक साधना अर्जुन ! हर कोई ना साध सके ,
बता! ऐसा कौन जगत में है ? – जो मेरे – तेरे साथ चले।
करते कर्म अपने-अपने सब और फल भी अपने भोग रहे
चला – चली के इस मेले में बस धर्म ही अंत में साथ चले।।

मत कायर बन क्षत्रिय होकर हथियार उठा निर्भय होकर,
जीवन को संगीत बना ले क्यों समय बिताता है रोकर ?
अर्जुन ! वीरों के चोले को पाकर वीरों सा संगीत सुना
सुनने को आतुर जग सारा, गांडीव उठा निर्भय होकर।।

अमर साधना का साधक तू – निज स्वरूप भुला बैठा,
भारत का दुर्भाग्य है अर्जुन ! हथियार फेंक कर तू बैठा।
जिनसे जग की आशा है- यदि वे ही हथियार फेंक भागे
वीर कभी नहीं कहलाते वे , तू भूल कौन सी में बैठा ?

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

Comment:Cancel reply

Exit mobile version