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मोक्ष मार्ग का प्रथम सोपान है स्वाध्याय

कृष्ण कान्त वैदिक शास्त्री सु$आङ् अधिपूर्वक इड्-अध्ययने धातु से स्वाध्याय शब्द बनता है। स्वाध्याय शब्द में सु, आ और अधि तीन उपसर्ग हैं। ‘सु’ का अर्थ है उत्तम रीति से ‘आ’ का अर्थ है आद्योपान्त और ‘अधि’ का अर्थ है अधिकृत रूप से। किसी ग्रन्थ का आरम्भ से अन्त तक अधिकारपूर्वक सर्वत: प्रवेश स्वाध्याय कहलाता […]

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अविद्या दूर करने का एकमात्र उपाय वैदिक साहित्य का स्वाध्याय

मनमोहन सिंह आर्य मनुष्य की आत्मा के अल्पज्ञ होने के कारण इसके साथ अविद्या अनादि काल से जुड़ी हुई है। इसका एक कारण जीवात्मा का एकदेशी, ससीम, राग-द्वेष व जन्म-मरणधर्मा आदि होना भी है। ईश्वर सर्वव्यापक, निराकार,  सर्वान्तर्यामी एवं सर्वज्ञ है। सर्वज्ञ का तात्पर्य है कि वह जानने योग्य सब कुछ जानता है। वह जीवों […]

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आतंकवाद पर कायराना सियासत

अरविंद जयतिलक दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में ऐसे सियासतदानों की कमी नहीं जो अपने बोलवचन से न सिर्फ आतंकियों की हौसला आफजाई कर रहे हैं बल्कि उन्हें बेगुनाह बता देश की संप्रभुता से खिलवाड़ भी कर रहे हैं। आश्चर्य है कि जब पूरा देश मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट में मारे गए 257 लोगों के मुजरिम […]

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लंबित न्याय के अनुत्तरित प्रश्न

अनूप भटनागर याकूब मेमन की फांसी पर सुनवाई के लिये उच्चतम न्यायालय भले ही देर रात तक बैठ गया हो, देश के बाकी फरियादियों को शायद ही ऐसी त्वरित सुनवाई का अवसर मिलता हो। वजह क्या है? पिछले ही सप्ताह संसद में कानून मंत्री डी वी सदानंद गौडा ने बताया था कि 2014 में देश […]

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वैदिक धर्म व संस्कृति का उद्धारक, रक्षक व प्रचारक सत्यार्थ प्रकाश

मनमोहन सिंह आर्य संसार में समस्त धार्मिक ग्रन्थों में वेद के बाद सत्यार्थप्रकाश का प्रमुख स्थान है। इसका कारण इन दोनों ग्रन्थों का मनुष्य जीवन के लिए सर्वोपरि महत्व है। वेद ईश्वर प्रदत्त अध्यात्म व सांसारिक ज्ञान है। यह बताना आवश्यक है कि सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, निराकार, सर्वान्तर्यामी ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी […]

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क्या सचमुच आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता?

डॉ प्रवीण तिवारी मुंबई धमाकों का गुनहगार फांसी पर चढ़ा दिया गया। भारतीय न्यायव्यवस्था और लोकतंत्र की सुंदरता भी दुनिया के सामने आई। इतने बड़े गुनाह के लिए किसी और मुल्क में पकड़े जाने के बाद ही सरेआम किसी को सजा दे दी जाती लेकिन ये हमारे लोकतंत्र की मजबूती है कि हमारे देश में […]

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कलाम से प्रेम याकूब से घृणा – भारत के दो रूप

प्रवीण गुगनानी गत सप्ताह की दो घटनाओं से भारत के दो सशक्त रूप देखनें को मिले। एक घटना घृणा, विद्रूपता के रूप में आई तो दूसरी में सम्पूर्ण भारत सृजन, निष्ठा और प्रेम को वंदन करता दिखा। इन दो घटनाओं को संयोग कतई नहीं कहा जा सकता, क्योंकि एक घटना में भारत के प्रिय पुत्र, […]

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लोकल कलाकारों के लुटने का मौसम आया

सुरेश कुमार जो हमारी संस्कृति को सहेजते हैं उन्हें हम कितना सम्मान देते हैं, कितना सस्ता समझते हैं और जो सिर्फ सीडी सुनाकर चलते बनते हैं, उनके लिए पलक पांवड़े बिछाते हैं। हैं तो ये भी कलाकार ही, फिर ये अपने ही घर में घर की मुर्गी दाल बराबर क्यों समझे जाते हैंज्समाचारों में ही […]

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कसौटी पर पंथनिरपेक्षता

कुलदीप नैयर यह भी कि देश के विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी पहचान को जाति और पंथ के दायरे तक सीमित कर लिया है। जनता को उदारवादी संगठनों एवं राजनेताओं के जरिए दृढ़ता के साथ कहना होगा कि देश में जाति या पंथ के नाम पर नफरत न फैलाई जाए। अगर देश ऐसा करने में […]

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त्रिकालदर्शी हमारा प्राण प्रिय ईश्वर

मनमोहन सिंह आर्य हम अल्पज्ञ जीवात्मा हैं इस कारण हमारा ज्ञान अल्प होता है। ईश्वर जिसने इस सृष्टि को बनाया व इसका संचालन कर रहा हैए वह हमारी तरह अल्पज्ञ नहीं अपितु सर्वज्ञ है। सर्वज्ञ का अर्थ होता है कि जिसे सब प्रकार का पूर्ण ज्ञान हो। जो अतीत के बारे में भी जानता हो […]

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