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राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

महंगी न्याय प्रणाली

देश को आजाद हुए 70 वर्ष हो गये, पर दुर्भाग्य है हमारा कि आज भी हमारे देश में लगाया पैंतीस हजार वही कानून लागू हैं, जो अंग्रेजों ने अपने शासनकाल के दौरान लागू किये गये थे। कानूनी प्रक्रिया भी वही है, जो अंग्रेजों ने यहां चलायी थी। अंग्रेजों की न्यायप्रणाली में दोष होना स्वाभाविक है […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

इतिहास हमारी आने वाली पीढिय़ों को ऊर्जान्वित करता है

इतिहास की विशेषता इतिहास किसी जाति के अतीत को वर्तमान के संदर्भ में प्रस्तुत कर भविष्य की संभावनाओं को खोजने का माध्यम है। इतिहास अतीत की उन गौरवपूर्ण झांकियों की प्रस्तुति का एक माध्यम होता है जो हमारी आने वाली पीढिय़ों को ऊर्जान्वित करता है और उन्हें संसार में आत्माभिमानी, आत्म सम्मानी और स्वाभिमानी बनाता […]

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महत्वपूर्ण लेख

लंबित न्याय के अनुत्तरित प्रश्न

अनूप भटनागर याकूब मेमन की फांसी पर सुनवाई के लिये उच्चतम न्यायालय भले ही देर रात तक बैठ गया हो, देश के बाकी फरियादियों को शायद ही ऐसी त्वरित सुनवाई का अवसर मिलता हो। वजह क्या है? पिछले ही सप्ताह संसद में कानून मंत्री डी वी सदानंद गौडा ने बताया था कि 2014 में देश […]

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महत्वपूर्ण लेख

हिन्दी को न्याय और भारत को स्वत्व की पहचान मिले

नरेश भारती हाल में भारत के गृह मंत्रालय ने सरकार और समाज के बीच दूरी को पाटने की क्षमता रखने वाले सामाजिक माध्यम या कथित ‘सोशल मीडिया’ के उपयोग और भारत की राजभाषा हिन्दी के महत्व को रेखांकित करते हुए शासकीय कामकाज में हिन्दी का उपयोग करने के निर्देश जारी किए थे। मेरे जैसे विदेशस्थ […]

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संपादकीय

प्राचीन भारत में न्याय के सिद्घांत-वाक्य

भारत में न्याय के विषय में विभिन्न नीति-वाक्यों की रचना की गयी। जिनसे कई मुहावरों का भी निर्माण हो गया। यदि इन नीति-वाक्यों को या मुहावरों के ध्वंसावशेषों को एक साथ जोडक़र देखा जाए तो न्याय के विषय में हमारे ऋषि पूर्वजों का बहुत ही उत्तम चिंतन उभरकर सामने आता है। वैसे न्याय के भी […]

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