राकेश कुमार आर्य एक षडय़ंत्र के अंतर्गत भारत को नष्ट करने के लिए जो मिथ्या और भ्रामक कथा-कहानियां गढ़ी गयी है उनमें सबसे प्रमुख है-आर्यों का विदेशी होना। प्रश्न है कि ऐसी कहानियां गढ़ी क्यों गयीं? इसका उत्तर ये है कि भारतीयों के प्राचीन धर्म और इतिहास को मिटाकर भारत में ईसाइयत का प्रबलता से […]
श्रेणी: संपादकीय
शहरों में हम जहां एक ओर मानवता के संपूर्ण विकास का सपना संजोते हैं और उसे धरती पर उतारने का प्रयास करते हैं, वहीं मानव समाज को एक पाशविक समाज की भांति रहने के लिए अभिशप्त हुआ भी देखते हैं। इसे मानवता की घोर विडंबना ही कहा जाएगा कि एक ओर जहां बहुमंजिली इमारतें हमारे […]
राकेश कुमार आर्य 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि मनाई गयी है। इस अवसर पर कुछ विचारणीय बातें हैं, जिन्हें इतिहास से ओझल करने का प्रयास किया गया है। उदयवीर ‘विराज’ की पुस्तक ‘तीन गांधी हत्याएं’ इस विषय में हमारे सामने बहुत कुछ स्पष्ट करती है। उक्त पुस्तक के अध्ययन से कई तथ्य स्पष्ट […]
मेरठ का भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह क्षेत्र कुरूवंशी राजधानी हस्तिनापुर से ध्वंसावशेषों के पास ही बसा है। महाभारत की साक्षी है कि जब अर्जुन और कृष्णजी ने खाण्डव वन का दहन किया तो उन्होंने मय नामक शिल्पकार से मित्रता कर युधिष्ठिर के राजभवनों का इंद्रप्रस्थ में निर्माण कराया। जिनके अवशेष […]
राजनीति के लिए अराजकतावाद का शब्द सर्वप्रथम क्रोपटकिन नामक राजनीतिक मनीषी ने दिया। क्रोपटकिन ने इस शब्द को यूं परिभाषित किया-”अराजकवाद जीवन तथा आचरण के उस सिद्घांत और वाद को कहते हैं जिसके अधीन समाज की कल्पना राज्यसंस्था से विरहित रूप में की जाती है। इस समाज में सामंजस्य उत्पन्न करने के लिए किसी कानून […]
आज हम लोकतांत्रिक पूंजीवाद की शोषणात्मक व्यवस्था में रह रहे हैं। स्वतंत्रता के पश्चात इस व्यवस्था में एक ऐसा शोषक वर्ग बड़ी तेजी से उभरा है जिसने पूरी अर्थव्यवस्था पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया है। पहले भारी उद्योग स्थापित करके लोगों को बेरोजगार किया गया और अब मशीनी युग में और भी अधिक तेजी […]
गोदुग्ध को हमारे यहां प्राचीन काल से ही स्वास्थ्य सौंदर्य के दृष्टिकोण से अत्यंत लाभदायक माना गया है। हमारे देश में स्वतंत्रता के वर्षों पश्चात भी गोदुग्ध, छाछ, लस्सी आदि हमारे राष्ट्रीय पेय रहे हैं। सुदूर देहात में आप आज भी जाएंगे तो लोग आपको चाय-कॉफी के स्थान पर दूध आदि ही देंगे। हां, इतना […]
इनकी जानकारी होने पर स्वयं सेल्यूकस ने बुरा माना। किंतु राष्ट्रधर्म के समक्ष सेल्यूकस के बुरा मानने का चाणक्य ने बुरा नही माना। अपने कत्र्तव्य पथ पर यथावत आरूढ़ रहे। गुप्तचरों के पीछे गुप्तचर रखने की अनूठी परंपरा में घुसपैठ का प्रश्न ही नही था। आज प्रधानमंत्री की तो बात ही छोडिय़े पुलिसकर्मी तक के […]
(पिछले दिनों 29 दिसंबर को राजस्थान के नागौर जिले के कुचामन सिटी में गौ रक्षा अधिवेशन का आयोजन गौ-पुत्र सेना के तत्वावधान में किया गया। जिसमें लेखक को मुख्य वक्ता के रूप में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया। प्रस्तुत लेख उसी अधिवेशन में दिये गये भाषण और चिंतन पर आधारित है, इसका पहला भाग […]
आज की राजनीति में कांट-छांट, उठापटक, तिकड़मबाजी से काम निकालने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। कुटिल नीतियों से, छल-बल से, दम्भ से, पाखण्ड से अन्याय से, अत्याचार से किसी भी उचित अनुचित ढंग से अपने वैचारिक विरोधी को नीचा दिखाने की इस प्रवृत्ति को ही आज के राजनीतिज्ञों ने कूटिनीति की संज्ञा दे दी […]