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संपादकीय

सरकार व्यक्ति और व्यवस्था

किसी संस्कृत के कवि ने कितना सुंदर कहा है :- यन्मनसा ध्यायति तद्वाचा वदति,यद्वाचा वदति तत्कर्मणा करोति,यद्कर्मणा करोति तदभि सम्पद्यते। अर्थात मनुष्य जैसा विचारता है-ध्यान करता है, वैसा ही बोलता है, जैसा बोलता है-वैसा ही कर्म करता है और जैसा कर्म करता है वैसा फलोपभोग करता है।इसका अभिप्राय है कि संसार के सारे व्यवहार-व्यापार का […]

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संपादकीय

गाय के लिए मैराथन दौड़

भारत में धर्म राजनीति की नकेल रहा है, और राजनीति धर्म की स्थापना का अर्थात मानवता को सर्वोपरि मनवाने का सशक्त माध्यम रही है। धर्म को जिन लोगों ने सम्प्रदाय या रिलीजन माना उन्होंने धर्म और राजनीति के खूनी संबंधों को मानवता के विरूद्घ मानकर धर्म और राजनीति को अलग-अलग करने का प्रयास किया। परंतु सत्य […]

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संपादकीय

हम उस देश के वासी हैं…

भारत के गौरव पर प्रकाश डालते हुए मैक्समूलर ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया: व्हाट कैन इज टीच अस’ में लिखा है-‘‘यदि मैं विश्वभर में से उस देश को ढूंढने के लिए चारों दिशाओं में आंखें उठाकर देखूं जिस पर प्रकृति देवी ने अपना संपूर्ण वैभव, पराक्रम तथा सौंदर्य खुले हाथों लुटाकर उसे पृथ्वी का स्वर्ग बना […]

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संपादकीय

उठो! स्वाभिमानी भारत के निर्माण के लिए

पाकिस्तान ने अपने जन्म के पहले दिन से ही भारत के लिए समस्याएं खड़ी करने का रास्ता अपनाया। पराजित मानसिकता के इतिहास बोध से ग्रसित भारत के शासक वर्ग ने पाकिस्तान द्वारा देश में और देश के बाहर बोयी गयी समस्याओं के काटने पर तो ध्यान दिया, पर कभी इन समस्याओं के जनक को ललकारने […]

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समय की पुकार यही है

मौलाना अबूल कलाम आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण नेता रहे। वह नेहरू, गांधी और पटेल की तिक्कड़ी में से नेहरू के अधिक निकट थे, गांधीजी को पसंद करते थे, और पटेल को समझने का प्रयास करते थे। उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम को लेकर एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम था-‘आजादी की […]

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यू.एन. में कश्मीरी मुद्दों का सच

1947 ई. के जम्मू-कश्मीर राज्य की सीमाओं का निर्माण उससे सही सौ वर्ष पूर्व हुआ था, जब अमृतसर की संधि के अंतर्गत अंग्रेजों ने जम्मू-लद्दाख के शासक महाराजा गुलाब सिंह को कश्मीर घाटी को अपने राज्य में मिला लेने की सहमति दे दी थी। आज के पाक अधिकृत कश्मीर और भारतीय कश्मीर को मिलाकर देखने […]

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प्राचीन भारत में न्याय के सिद्घांत-वाक्य

भारत में न्याय के विषय में विभिन्न नीति-वाक्यों की रचना की गयी। जिनसे कई मुहावरों का भी निर्माण हो गया। यदि इन नीति-वाक्यों को या मुहावरों के ध्वंसावशेषों को एक साथ जोडक़र देखा जाए तो न्याय के विषय में हमारे ऋषि पूर्वजों का बहुत ही उत्तम चिंतन उभरकर सामने आता है। वैसे न्याय के भी […]

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भारत का न्याय दर्शन: एक छुपा हुआ हीरा

भारत विधि का जन्मदाता राष्ट्र रहा है। भारत की विधि व्यवस्था का मूल स्रोत शांति है, और अंतिम लक्ष्य भी शांति है। कहने का अभिप्राय है कि विधि वही उत्तम मानी जाती है जो शांति से उत्पन्न हो, शांति के लिए स्थापित हो और शांति प्राप्त कराने में सहायक हो। अब प्रश्न ये आता है […]

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‘ग्लोबल-विलेज’ की दोषपूर्ण अवधारणा

आजकल संपूर्ण विश्व को एक ग्राम (ग्लोबल बिलेज) कहने का प्रचलन बड़ी तेजी से बढ़ा है। विश्व में इस समय बाजारीकरण का वर्चस्व है और एक देश का उत्पाद दूसरे देश में बड़ी सहजता से उपलब्ध हो जाता है। थोड़ी सी देर में आज आप हवाई यात्राओं से विश्व के किसी भी कोने में पहुंच […]

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राष्ट्र की आस्था बनाम व्यक्ति की आस्था

स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ने सांईबाबा के लिए पिछले दिनों कह दिया कि सांई हिंदू नही, मुसलमान थे। इसलिए उनकी पूजा उचित नही कही जा सकती। स्वरूपानंद जी महाराज द्वारका पीठ के शंकराचार्य हैं, उनका कहना है कि सांई भगवान का अवतार नही है। स्वरूपानंद जी महाराज ने ये भी कहा है किसांई हिंदू मुस्लिम […]

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