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संपादकीय

भारत का न्याय दर्शन: एक छुपा हुआ हीरा

भारत विधि का जन्मदाता राष्ट्र रहा है। भारत की विधि व्यवस्था का मूल स्रोत शांति है, और अंतिम लक्ष्य भी शांति है। कहने का अभिप्राय है कि विधि वही उत्तम मानी जाती है जो शांति से उत्पन्न हो, शांति के लिए स्थापित हो और शांति प्राप्त कराने में सहायक हो। अब प्रश्न ये आता है […]

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संपादकीय

‘ग्लोबल-विलेज’ की दोषपूर्ण अवधारणा

आजकल संपूर्ण विश्व को एक ग्राम (ग्लोबल बिलेज) कहने का प्रचलन बड़ी तेजी से बढ़ा है। विश्व में इस समय बाजारीकरण का वर्चस्व है और एक देश का उत्पाद दूसरे देश में बड़ी सहजता से उपलब्ध हो जाता है। थोड़ी सी देर में आज आप हवाई यात्राओं से विश्व के किसी भी कोने में पहुंच […]

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संपादकीय

राष्ट्र की आस्था बनाम व्यक्ति की आस्था

स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ने सांईबाबा के लिए पिछले दिनों कह दिया कि सांई हिंदू नही, मुसलमान थे। इसलिए उनकी पूजा उचित नही कही जा सकती। स्वरूपानंद जी महाराज द्वारका पीठ के शंकराचार्य हैं, उनका कहना है कि सांई भगवान का अवतार नही है। स्वरूपानंद जी महाराज ने ये भी कहा है किसांई हिंदू मुस्लिम […]

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संपादकीय

मोदी जी ! मंत्रियों की भी ‘क्लास’ लो

कौटिल्य ने देश को चलाने के लिए किसी मंत्री की योग्यता की एक व्यवस्थित सूची हमें दी है। उनके अनुसार-‘‘एक मंत्री को देशवासी (विदेशी ना हो) उच्चकुलोत्पन्न (संस्कारित और उच्च शिक्षा प्राप्त) प्रभावशाली, कलानिपुण, दूरदर्शी, विवेकशील, (न्यायप्रिय दूध का दूध और पानी का पानी करने वाला-नीर-क्षीर विवेकशक्ति संपन्न) अच्छी स्मृति वाला, जागरूक, अच्छा वक्ता, (समाज […]

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मोदी जी! मेट्रो सिटी नही ‘मेधा ग्राम’ बसाइए

ग्राम अपने आप में एक ऐसी व्यवस्था है जिसके विषय में इसके पूर्णत: आत्मनिर्भर पूर्णत: आत्मानुशासित और पूर्णत: आत्मनियंत्रित रहने की परिकल्पना को हमारे ऋषि पूर्वजों ने साकार रूप दिया। आज के भौतिकवादी युग में किसी ईकाई या संस्था के पूर्णत: आत्मनिर्भर आत्मानुशासित अथवा आत्मनियंत्रित होने की कल्पना नही की जा सकती। ग्राम्य और शहरी […]

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सबका हाथ, सबका साथ और सबका विकास

भारत के संविधान की मूल भावना के साथ हमारे राजनीतिज्ञों ने निहित स्वार्थों में निर्लज्जता की सीमा तक छेड़छाड़ की है। संविधान नही चाहता कि देश में किसी गरीब को सरकारी संरक्षण से केवल इसलिए वंचित होना पड़े कि वह किसी अगड़ी या सवर्ण जाति का है, लेकिन व्यवहार में कितने ही निर्धनों को जाति […]

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नेहरू हार गये और सावरकर जीत गये

अभी हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा है। इस हार से पहुंचे ‘सदमे’ से सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेता अभी उभर नही पाए हैं। देश के लिए कांग्रेस का हार जाना बुरी बात नही है, बुरी बात है देश में अब […]

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मोदी के आंसू:हिन्दुत्व की राजनीति के मोती

कभी आंसू बन जाते हैं तकदीर,कभी आंसू मिटा देते हैं तस्वीर।आंसुओं का भी अपना इतिहास है,कभी इनसे घबराती है शमशीर।बादल गरजता है बरसता है,पर पपीहा एक बूंद को तरसता है।हृदयाकाश में उठे गर नेकनीयती की बदरिया,तो आंसू ‘मोदी के मोती’ बनकर झरता है।। 20 मई को भाजपा के नवनिर्वाचित सांसदों की बैठक संसद में हो […]

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संपादकीय

नरेन्द्र मोदी : सभी दिशाएं अभिनंदन कर रही हैं

भारत के राजनीतिक क्षितिज पर नया सवेरा हो रहा है। इतिहास ने अपना नया अध्याय लिखना आरंभ कर दिया है, लगता है देश में फिर से मधुमास आ गया है। आज समय है स्वतंत्रता, स्वराज्य और व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की प्रचलित परिभाषाओं की समीक्षा करने का और इन प्रचलित परिभाषाओं की ओट में इन […]

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संपादकीय

निजी जीवन को बनाओ सार्वजनिक जीवन की नींव

भारत में प्राचीन काल में राजा अपने राजतिलक के पश्चात जो शपथ लेता था उसे ऐतरेय ब्राह्मण (8/15) में यूं बताया गया है-”मैं जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त का सारा समय तुम्हें समर्पित करता हूं। यदि कभी भी मैं प्रजा के साथ कोई असत्य व्यवहार करूंगा या उसके साथ कोई छल कपट करूं तो मेरा […]

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