शिव आख्यान डॉ डी के गर्ग भाग- 3 ये लेख दस भाग में है , पूरे विषय को सामने लाने का प्रयास किया है। आप अपनी प्रतिक्रिया दे और और अपने विचार से भी अवगत कराये पहले २ भाग में शिव के दो स्वरूप के विषय में लिखा है ,अब करते है तीसरे शिव की […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
ऋषिराज नागर(एड़वोकेट) भगवत गीता (4-34) में उपदेश है कि तू पूर्ण गुरु के चरणों में गिर कर योग का अभ्यास कर। जो गुरु तत्व के भेद को जानता है, केवल वही तुझे ज्ञान का उपदेश दे सकता है। :- ‘तद्विद्धि प्राणे पातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञान क्षानिनस्तत्त्वदर्शिन।। गुरु के बिना हमें परमार्थ के मार्ग […]
Dr D K Garg भाग एक में आपने पढ़ा की धर्म क्या है और इसका वर्गीकरण क्या है। अब वर्गीकरण का भाग तीन प्रस्तुत है। ३ सामाजिक धर्म :–मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । समाज में रह कर, सबसे सहयोग करके ही उसकी सभी प्रकार की आवश्यकताओंकी पूर्ति हो पाती है ।जिस समाज में वह […]
ईश्वर जीव और प्रकृति तीनों अनादि हैं। तीनों की सत्ता प्रथक प्रथक है। जीव से ईश्वर ,ईश्वर से जीव और इन दोनों से प्रकृति भिन्न स्वरूप हैं। ईश्वर और जीव दोनों चेतनता तथा पालन आदि गुणों में समान हैं। ईश्वर जीव और प्रकृति इन तीनों के गुण, कर्म व स्वभाव भी अनादि हैं। ईश्वर जीव […]
सत्यार्थ प्रकाश के नवम समुल्लास में महर्षि दयानंद ने लिखा है कि सत पुरुषों के संग से विवेक अर्थात सत्य सत्य धर्म- अधर्म कर्तव्य -अकर्तव्य का निश्चय अवश्य करें,पृथक पृथक जानें । जीव पंचकोश का विवेचन करें। पृथम कोष जो पृथ्वी से लेकर अस्थिपर्यंत का समुदाय पृथ्वीमय है उसको अन्नमय कोष कहते हैं ।”प्राण” अर्थात […]
ओ३म् -मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। वैदिक साधन आश्रम की स्थापना सन् 1949 में हुई थी। इसके संस्थापक बावा गुरुमुख सिंह जी और उनके श्रद्धास्पद आर्यसंन्यासी महात्मा आनन्द स्वामी थे। आश्रम में सभी प्रकार व श्रेणियों के साधक-साधिकायें आते रहे हैं। आश्रम में वर्ष में दो बार ग्रीष्मोत्सव एवं शरदुत्सव आयोजित किये जाते हैं। हम वर्ष […]
आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने आर्योद्देश्यरत्नमाला नामक एक छोटी सी पुस्तक लिखी है। इस लघु ग्रंथ में महत्वपूर्ण व्यावहारिक शब्दों (आर्यों के मंतव्यों) की परिभाषाएं प्रस्तुत की गई है जो वेदादि शास्त्रों पर आधारित हैं। इसमें 100 मंतव्यों (नियमों) का संग्रह है अर्थात सौ नियमों रूपी रत्नों की माला गूंथी गई […]
मान्यताएं; इस विषय में दो परस्पर विरोधी मान्यताएं है । 1.ईश्वर और जीव एक ही है ,ये कहना है शंकराचार्य जी का 2.जीव और ब्रह्म एक ही नहीं है अपितु दोनों अलग-अलग पदार्थ हैं जिनके गुण कर्म स्वभाव भिन्न-भिन्न हैं | विश्लेष्ण: पहली मान्यता ठीक ही नहीं ,पूरी तरह से अस्वीकार्य है| क्योंकि जीव कभी […]
#डॉविवेकआर्य धार्मिक जगत में एक प्रश्न सदा से उठता रहता है कि क्या ईश्वर जीव के भविष्य में करने वाले कर्मों को जानता है? यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है क्यूंकि प्राय: लोग ईश्वर को त्रिकालदर्शी बताते है। स्वामी दयानन्द इस विषय पर सत्यार्थ प्रकाश के सप्तम समुल्लास में इस प्रकार से विवेचना करते हैं। “(प्रश्न) […]
पिछले दिनों एक संस्थान के वैदिक विद्वान सदस्य ने संस्था के अधिकारियों से आग्रह किया कि वे पुर्णिमा को उस संस्था में यज्ञ का प्रावधान करें और संस्था में यज्ञ करने की अनुमति दें। उन्हें इस अनुमति के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ा और अंत में दिवंगत आत्माओं के नाम पर यज्ञ हुआ। अब एक […]