Categories
धर्म-अध्यात्म

पानी पीजे छान कर, गुरु कीजै जान कर।

ऋषिराज नागर(एड़वोकेट)

भगवत गीता (4-34) में उपदेश है कि तू पूर्ण गुरु के चरणों में गिर कर योग का अभ्यास कर। जो गुरु तत्व के भेद को जानता है, केवल वही तुझे ज्ञान का उपदेश दे सकता है। :-

‘तद्विद्धि प्राणे पातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञान क्षानिनस्तत्त्वदर्शिन।।

गुरु के बिना हमें परमार्थ के मार्ग का ज्ञान नही हो सकता। अतः सबसे पहले गुरू को जानने की आवश्यकता है। यदि वास्तव में सच्चा गुरु मिल जाता है तो जीवन का कल्याण हो जाता है। क्योंकि जीवन की ऊंचाई की ओर केवल सच्चा गुरु ही लेकर जा सकता है।
पानी पीजे छान कर, गुरु कीजै जान कर।

गुरु के बिना सब कर्म-धर्म निष्फल हैं। इसका कारण किसी पाखंड को बढ़ावा देना नहीं है बल्कि इस सच को बताना है कि जब तक गुरु अच्छा नहीं मिलता है तब तक धर्म-कर्म में भी दोष बने रहने की पूर्ण संभावना रहती है।

बिन मुरशिद कामिल बुल्लि आ तेरी ऐवें गई अबादत कीती ।”

                   - वाणी बुल्लेशाह

गुरु बिन माला फेरते, गुर बिन करते दान।
गुर बिन दान हराम है, जाय पूछहु वेद पुरान॥

                    -वाणी कबीर साहिब

गुरु बिन दूजा नाही थाऊ ।। गुरु दाता गुरु देवै नाऊ”
. -आसा म.5, 386

वस्तु, कहीं ढूंढै कहीं केहि विधि आवै हाथ।
कहै कबीर तब पाइये, जब भेदी लीजे साथ॥
– ‘बाणी कबीर साहिब’

गुरू सामयिक होना यानि जो समयानुसार, हाजिर- नाज़िर होता है। (वक्त का हाजिर)
सामयिक गुरू वह है जो अभी जीवित है और शिष्य का उससे सम्बन्ध बना हुआ है। बेवक्त (असमय) का गुरु वह है जो पिछले समय में गुरु था पर अब मौजूद (जीवित) नहीं है। दोनों ही की अपनी-अपनी जगह आवश्यकता है। पिछले गुरूओं के इतिहास और उनकी अनमोल वाणियों को पढ़कर हमको वक्त- गुरु की आवश्यकता और उसके मिशन (जीवन ध्येय) की कुछ-कुछ परख होती है। गुरु ऊर्जा के आदि स्रोत परम पिता परमेश्वर से हमारा नाता जोड़ता है। जैसे ही हमारा नाता ऊर्जा के उस अनंत स्रोत से जुड़ता है वैसे ही हमारा रोम-रोम ऊर्जावान हो उठता है।

परमार्थ का जो वास्तविक लाभ है, वह वक्त गुरू या जीवित गुरू से ही प्राप्त हो सकता हैं।

(स्वामी जी महाराज सार वचन- 19 )

पिछलों की तज टेक तेरे भले की कहूं।
वक्त गुरू को मान तेरे भले की कहूं॥

मौलवी रूम साहिब हिदायत करते हैं कि तू ख़ुदा और मूसा (गुरु) की तरफ दौड़, अपने अहं भाव में अपनी रूह को न खोः –
दर खुदाए मूसा व मुसा गरेज,
आबे इमां राबफर औनी मरेज।
प्रत्यक्ष सतगुरु के उपदेश के बिना सुरत-शब्द’ मार्ग का आन्तरिक भेद नहीं खुल सकता। इस मार्ग का बोध वेदों, शास्त्रों, ग्रन्थों के होते हुए भी गुरू दीक्षा का मोहताज़ है।

गुरू को कीजै दंडवत, कोटि कोटि परनाम ।
“कीट न जानै भृग्ड को, वह कर ले आप समान॥

गुरू साहिब करि जानिये, रहिये शबद समाय।
मिले तो दंडवत बंदगी पल पल ध्यान लगाय।।
वैदिक वांग्मय में भी गुरु की महिमा का गान किया गया है। गुरु के बिना ज्ञान नहीं और ज्ञान के बिना जीवन सार्थक नहीं हो पाता।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version