निर्मुलन : मंन्दिरों में जाने वाले सभी अंधविश्वासी या अंधश्रद्धालु नहीं होते । ये सब दर्शनीय स्थान है जहाँ सभी प्रकार के लोग जाते हैं । ईश्वर में आस्था रखने वाले लोग मंन्दिर जायें या नहीं जायें – इससे ईश्वर को कोई फर्क नहीं पड़ता ।जो लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं तथा श्रद्धा रखते […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
एक हिन्दू (आर्य) धर्म की रक्षा के लिए शुद्धिस्वामी दयानन्द सरस्वती की सर्वथा नवीन, मौलिक और क्रान्तिकारी देन थी। इसके प्रादुर्भाव का इतिहास अतीव रोचक है और इस बात को स्पष्ट करता है कि स्वामी जी अपने समय की परिस्थितियों को देखते हुए किस प्रकार मौलिक चिन्तन करते थे और तत्कालीन सामाजिक समस्याओं के समाधान […]
शिवकुमार शर्मा महर्षि अरविंद घोष एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के साथ-साथ योगी, दार्शनिक, कवि और प्रकांड विद्वान भी थे। उनके क्रांतिकारी विचार और भाषणों में ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों की कड़ीआलोचना शामिल रहती थी और समाचार पत्र “वंदे मातरम” तो अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आग उगलता था। अलीपुर बम कांड में गिरफ्तार […]
उन्नीसवीं शताब्दी का प्रचलित हिन्दू धर्म, धर्म न रहकर उसका विद्रूप मात्र रह गया था। वेदों, उपनिषदों तथा वैदिक दर्शनों में प्रतिपादित अध्यात्म, दर्शन तथा नैतिकता के सूत्र विलुप्त प्रायः हो गये थे। वेदों तथा अन्य ऋषि कृत ग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन समाप्त हो गया था। पठित हिन्दू अधिक से अधिक भगवद्गीता, तुलसीदास की रामचरित मानस […]
हमें आज दिनांक 27-11-2022 को आर्यसमाज राजपुर, देहरादून के तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव के समापन समारोह में उपस्थित होने का अवसर मिला। आयोजन का आरम्भ प्रातः यज्ञ से हुआ। यज्ञ में आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी, आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी, आचार्य प्रदीप शास्त्री, श्री प्रेमप्रकाश शर्मा आदि ऋषिभक्त उपस्थित थे। यज्ञ की समाप्ति के बाद एक बड़े पण्डाल […]
हमें आज दिनांक 27-11-2022 को आर्यसमाज राजपुर, देहरादून के तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव के समापन समारोह में उपस्थित होने का अवसर मिला। आयोजन का आरम्भ प्रातः यज्ञ से हुआ। यज्ञ में आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी, आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी, आचार्य प्रदीप शास्त्री, श्री प्रेमप्रकाश शर्मा आदि ऋषिभक्त उपस्थित थे। यज्ञ की समाप्ति के बाद एक बड़े पण्डाल […]
ह्रदय नारायण दीक्षित गीता दर्शन ग्रंथ है। इसका प्रारम्भ विषाद से होता है और समापन प्रसाद से। विषाद पहले अध्याय में है और प्रसाद अंतिम में। अर्जुन गीता समझने का प्रभाव बताते हैं, “नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।“ हे कृष्ण आपके प्रसाद से – त्वत्प्रसादान्मयाच्युत मोह नष्ट हो गया। प्रश्न उठता है कि यह विषाद क्या […]
प्रश्न :- स्वाहा का अर्थ क्या होता है ? उत्तर :- निरुक्तकार यास्क जी कहते हैं की “स्वाहाकृतयः स्वाहेत्येतस्तु आहेति वा स्वा वागाहेति वा स्वं प्राहेति वा स्वाहुतं हविर्जुहोतीति वा तासामेषा भवति || ||निरुक्त अध्याय 8/खण्ड २०||” स्वाहा शब्द का अर्थ यह है – १) (सु आहेति वा) सु अर्थात् कोमल, मधुर, कल्याणकारी, प्रिय वचन […]
मनुष्य को अपने पूर्वजन्म के शुभकर्मों के परिणामस्वरूप परमात्मा से यह श्रेष्ठ मानव शरीर मिला है। सब प्राणियों से मनुष्य का शरीर श्रेष्ठ होने पर भी यह प्रायः सारा जीवन दुःख व क्लेशों से घिरा रहता है। दूसरों लोगों को देख कर यह अपनी रुचि व सामथ्र्यानुसार विद्या प्राप्त कर धनोपार्जन एवं सुख-सुविधा की वस्तुओं […]
अनिरुद्ध जोशी शतायु विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है हिन्दू धर्म। सिर्फ 5 हजार वर्ष पहले तक कोई दूसरा धर्म अस्तित्व में नहीं था तो स्वाभाविक है कि हिन्दुओं में कभी यह खयाल नहीं आया कि कोई नया धर्म जन्म लेगा और फिर वह हमें मिटाने के लिए सबकुछ करेगा। मात्र 2 हजार वर्ष पूर्व […]