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भारतीय संस्कृति

अधिकारों से पहले कर्तव्य, अध्याय-1

भारत की शिक्षा प्रणाली और कर्तव्य प्राचीन काल में भारत की शिक्षा प्रणाली गुरुकुलों के माध्यम से संचालित होती थी। चिकित्सा और शिक्षा दोनों नि:शुल्क देने की व्यवस्था हमारे ऋषि पूर्वजों ने अनिवार्य की थी । गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली की यह परम्परा पर्याप्त अवरोधों के उपरांत भी भारत में न्यूनाधिक 1850 ईसवी तक काम करती […]

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हमारे अस्तित्व का आधार है राष्ट्र

वैदिक सभ्यता और उसको मानने वालों के निम्न लिखित आदर्श है मा नः स्तेन ईशतः यजुर्वेद 1।1 भ्रष्ट व् चोर लोग हम पर शासन न करें वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम । – अथर्व० १२.१.६२ हम सब मातृभूमि के लिए बलिदान देने वाले हों। यतेमहि स्वराज्ये । – ऋ० ५.६६.६ हम स्वराज्य के लिए सदा यत्न […]

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‘माँ’ की ममता और आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता

राजपूत दुनिया की हर नारी में मातृत्व वास करता है। बेशक उसने संतान को जन्म दिया हो या न दिया हो। नारी इस संसार और प्रकृति की ‘जननी’ है। नारी के बिना तो संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस सृष्टि के हर जीव और जन्तु की मूल पहचान माँ होती है। आज […]

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मां की ममता दुनिया की किसी मंडी में नहीं बिकती

(10 मई मदर्स-डे ) -मुरली मनोहर श्रीवास्तव मां, हर बच्चों के लिए खास ही नहीं बल्कि उनकी पूरी दुनिया होती है। होना भी लाजिमी है बच्चे जन्म लेने से कई माह पहले ही अपनी मां से जुड़ जाते हैं। सभी बच्चों के जन्म लेने के बाद रिश्तों से जुड़ते हैं मगर मां और बच्चे का […]

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यज्ञ ही हमारे जीवन का आधार है

सादा जीवन उच्च विचार प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक जितने भी महापुरुष हुए हैं उन्होंने मनुष्य बनने के लिए मनुष्य को केवल एक ही नैतिक उपदेश दिया है कि मनुष्य को सादा जीवन और उच्च विचार के आदर्श को अपने जीवन में अंगीकृत करते हुए उत्थान के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। जिसके लिए […]

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महात्मा बुद्ध और वैदिक कर्म फल व्यवस्था

  — कार्तिक अय्यर नमस्ते मित्रों। कुछ वामपंथी भीमसैनिक मानते हैं कि पुनर्जन्म, परलोक आदि सब गप्प है। शरीर नष्ट होने के बाद आत्मा खत्म हो जाता है। किसी को किसी कर्म का फल नहीं मिलता आदि आदि। परंतु भगवान बुद्ध वैदिक कर्म फल व्यवस्था मानते थे। कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतसमाः। एवं त्वयि नान्यथेतोsस्ति न कर्म […]

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विद्या की महिमा को समझिए

हमारे वैदिक समाज में मर्यादाओं का बड़ा सम्मान किया जाता है । अभी तक हमने कुछ मर्यादाओं पर ही विचार किया जैसे अपने दान को गोपनीय रखना, घर में आये अतिथि को सम्मान देना , भलाई करके चुप रहना ,अपने प्रति दूसरे को द्वारा किए गए उपकार को सबको बताना, संपदा में अभिमान न करना […]

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नारी को लेकर महर्षि मनु के विचार

जिस कार्य को करने में जो व्यक्ति कुशल हो , उसको वही कार्य सौपें जाने चाहिए। जैसे मनु महाराज ने कर्म के आधार पर ही चार वर्ण बनाए थे। जिनको आज जातिगत बना दिया गया है , जो मनु महाराज की सोच के विपरीत हैं । आप भी अपने घर में आज भी किसी उपयुक्त […]

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संसार की उलझन से कैसे पार हो

नींद में सपना देखा तो अच्छा लगा। नींद टूटने पर दुख हुआ । क्योंकि जागने पर जो देखा वह स्वप्न से अलग था। नाशवान प्रकृति के नाशवान दृश्यों में मन रम गया । तो मृगतृष्णा का शिकार हो गया। दूर-दूर तक भागने लगा । हताश निराश होकर अंत में मौत की गोद में समा गया। […]

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अचल व शांत आत्मा में परमात्मा समाहित व प्रकाशित रहता है

ओ३म =========== ईश्वर सृष्टिकर्ता है और वह जीवात्माओं को उनके कर्मानुसार भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म देकर सुख व दुःख का भोग कराता है। मनुष्य जन्म उन जीवात्माओं को मिलता है जिनके पूर्वजन्म के कर्म-संचय में आधे से अधिक पुण्य कर्म होते हैं। इसका अर्थ यह है कि यदि पाप कर्म आधे से कम हैं तो […]

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