हर मनुष्य को अपने जीवन में प्रसन्न रहना चाहिए क्योंकि प्रसन्नता सभी गुणों की जननी है। लेकिन अभिमान से दूर रहना चाहिए , क्योंकि अभिमान नरक का मूल है। मनुष्य को ‘बड़ा’ बनने के लिए अपनी गलती को स्वीकार करने में लज्जा का अनुभव नहीं करना चाहिए , बल्कि लज्जा का अनुभव उन कार्यों में […]
श्रेणी: भारतीय संस्कृति
ओ३म् =========== उपासना क्या है और इसे क्यों करना चाहिये? उपासना करने के क्या लाभ हैं? यह विषय उपेक्षणीय नहीं है। उपासना पास बैठने को कहते हैं। हम अपनी माता की गोद में होते हैं तो हमें माता का स्नेह तथा उससे ज्ञान प्राप्त होता है। माता हमारी क्षुधा निवृति सहित सभी प्रकार से पोषण […]
भारत के विषय में कैप्टेन सिडेनहम का कहना है-”हिन्दू सामान्यत: विनम्र, आज्ञापालक, गम्भीर, अनाक्रामक, अत्यधिक स्नेही एवं स्वामिभक्त किसी की बात को शीघ्रता से समझने में दक्ष, बुद्घिमान, क्रियाशील, सामान्यत: ईमानदार, दानशील, परोपकारी संतान की तरह प्रेम करने वाले विश्वासपात्र एवं नियम पालन करने वाले होते हैं। जितने भी राष्ट्रों से मैं परिचित हूं, सच्चाई […]
ओ३म् ============ चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ईश्वर द्वारा सृष्टि के आरम्भ में चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा को दिया गया वह ज्ञान है जिससे मनुष्य अपना समस्त जीवन ईश्वर की सच्ची उपासना एवं सत्कर्मों को करता हुआ व्यतीत कर सकता है। जीवन में सुखी, निरोग, दीर्घायु रहकर अपने परजन्म को […]
ओ३म् ============ मनुष्य जिन गुण, कर्म व स्वभाव को धारण करने से मनुष्य कहा जाता है उनमें से एक गुण दया भी है। दया दूसरे मनुष्यों व प्राणियों पर दया, प्रेम, सहानुभूति, हित कामना रखने को कहते हैं। दया करना सह-अनुभूति प्रकट करना होता है तथा उसी के अनुरूप दूसरों की सहायता, सेवा-शुश्रुषा, दुःख निवारण […]
श्रीकृष्णजी कहते हैं कि अर्जुन ! जब देहधारी आत्मा सतोगुण की प्रधानता के काल में देह का त्याग करे तब वह उत्तम ज्ञानियों के निर्मल लोकों को प्राप्त होता है, अर्थात ऐसी स्थिति में आत्मा की सदगति हो जाती है। इसका अभिप्राय है कि किसी के लिए मरणोपरांत हमारा यह कहना कि उसकी आत्मा को […]
गीता के 11 अध्याय में अध्याय में श्रीकृष्णजी ने अर्जुन को स्पष्ट किया कि ये जो हमारे चर्मचक्षु हैं ना-ये हमें इस भौतिक संसार को ही दिखाते हैं और हम ये मान बैठते हैं कि वह दिव्य शक्ति परमात्मा कोई और है, और यह संसार कुछ और है। जबकि इस संसार के रूप में ही […]
जितने विद्या अभ्यास सुविचार ईश्वर उपासना धर्म अनुष्ठान सत्य का संग ब्रह्मचर्य जितेंद्रतादि उत्तम कर्म है वह सब तीर्थ कहाते हैं। क्योंकि इन करके जीव दुख सागर से तर सकते हैं नमः पार्याय चावार्याय च नमःप्रतरणाय चोत्तरणाय च। नमः तीर्थ्याय च कुलयाय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च।।यजु•16/42 यजुर्वेद के इस मंत्र का भाष्य लिखते […]
****************************************** आजकल एक वाक्य अधिक सुनने को मिल रहा है – “इस समय भगवान् के भी दरवाजे बन्द हैं।” भारतीय संस्कृति की समझ रखने वाला व्यक्ति ऐसा नहीं कह सकता। सूर्य, चन्द्रमा आदि ब्रह्माण्ड के अन्य पिण्डों की तो बात छोड़ दीजिए, भारत में वृक्ष, लता,वनस्पति एवं जन्तुओं की भी पूजा होती है। दूसरे शब्दों […]
एक मनुष्य को नैतिकता और गुण नहीं छोड़ना चाहिए , क्योंकि नैतिकता तथा गुण हीरे तथा रत्नों से भी अधिक मूल्यवान होते हैं । यह मनुष्य को प्रभु प्रिय और लोकप्रिय बनाते हैं और उसके मन को संतुष्टि प्रदान करते हैं। नैतिकता और गुणों के कारण ही एक मनुष्य के अंदर ही प्रभु का अस्तित्व […]