Categories
भारतीय संस्कृति

मां की ममता दुनिया की किसी मंडी में नहीं बिकती

(10 मई मदर्स-डे )

-मुरली मनोहर श्रीवास्तव

मां, हर बच्चों के लिए खास ही नहीं बल्कि उनकी पूरी दुनिया होती है। होना भी लाजिमी है बच्चे जन्म लेने से कई माह पहले ही अपनी मां से जुड़ जाते हैं। सभी बच्चों के जन्म लेने के बाद रिश्तों से जुड़ते हैं मगर मां और बच्चे का संबंध सारे रिश्तों से 9 माह पहले ही बन जाता है। इसीलिए मां और बच्चे के रिश्ते से पवित्र और निश्छल कोई रिश्ता इस धरती पर हो ही नहीं सकता। दुनिया के लिए बच्चे की मां भले ही आम महिला हो सकती है, मगर उस बच्चे के लिए उसकी मां उसकी पूरी दुनिया होती है। जिसका स्थान न भूतो, न भविष्यति कोई नहीं ले सकता है। मां एक ऐसा शब्द जिसके उच्चारण मात्र से आत्मा तृप्त हो जाती है। वो मां ही तो है जिसका मासूम कितना भी खाना खा ले मगर मां की नजरों में वो भूखा ही रहता है। वाह रे मां….तू सच में पूजनीय हो।

अमरीका से शुरु हुआ मदर्स डेः
वर्ष 1912 में मदर्स-डे की शुरूआत अमेरिका से हुई। इसके शुरु होने के पीछे की वजह है कि अमेरिकन एक्टिविस्ट एना जार्विस अपनी मां से बेहद प्यार करती थीं। उनकी मां को इनके अलावे कोई संतान नहीं थी, इसलिए मातृ प्रेम में इन्होंने शादी तक नहीं की। 1905 में जार्विस की मां की मृत्यु के बाद उन्होंने अपनी मां की स्मृति में एक स्मारक बनाया। यह स्मारक पश्चिम वर्जीनिया के ग्राफ्टन के सेंट एंड्रयू मैथोडिस्ट चर्च में बनाया गया था। मां की मौत के बाद अपनी मां के प्रति प्यार का इजहार करने के लिए उन्होंने इस दिवस की शुरुआत की, जिसे बाद में 10 मई को पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा। वैसे 9 मई 1914 को अमेरिका के राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने एक लॉ पास किया, जिसमें लिखा था कि मई महीने के हर दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाएगा, जिसके बाद मदर्स डे अमेरिका, भारत और कई देशों में मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाने लगा। जबकि यूके इसे मार्च के चौथे रविवार को मनाता है, लेकिन ग्रीस में इसे 2 फरवरी को मनाया जाता है।
दुनिया का अनमोल रिश्ताः
कहते हैं मां भगवान का बनाया गया सबसे नायाब तोहफा है। मां को प्यार करने और तोहफे देने के लिए किसी खास दिन की जरुरत नहीं होती। मां जिस तरह से अपने मासूम को सीने से लगाकर पालती है उसी तरह से हर बच्चों को चाहिए कि अपनी मां को उम्र के आखिरी पड़ाव पर कभी अकेला और भूखा नहीं छोड़ें। आप भले ही बड़े पैसे वाले हो सकते हैं, देश-दुनिया की सैर कर सकते हैं मगर एक बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मां की सेवा से बढ़कर दुनिया की कोई इबादत नहीं है।

तो मां वृद्धाश्रम में नहीं होतीः

मदर्स-डे की परिभाषा सही मायने में आज की युवा पीढ़ी समझ ले तो शायद वृद्धाश्रम में रहने वाली मां की संख्या ना के बराबर हो जाएगी। परंतु बच्चे बढ़ते उम्र के साथ अपनी जिम्मेदारियों को भूलने लगते हैं, शायद वो ये भूल जाते हैं कि आने वाला कल भी बीते कल को दुहरायेगा। उस वक्त अपने दर्द को सीने में घूंट घूंटकर भी किसी से कह नहीं पाता है इंसान। इसलिए वक्त के साथ जिसने दुनिया में आने से 9 माह पूर्व रिश्ते बनाए हैं। दुनिया से परिचित कराया है उस मां की सेवा ही दुनिया की पूरी परिधि है। इसमें भी मां और खुबसूरत हो जाती है जब मां और पिता जी साथ होते है। उनके रहने पर इंसान अपनी जिम्मेदारियों से कोसो दूर खुद को पाता है। लेकिन जैसे ही इनका वक्त पूरा हो जाता है, मानो जिम्मेदारियों का पहाड़ टूट जाता है। तो आओ मां किसी बंद कमरे में अकेले न रह जाए, किसी दिन भूखी न रह जाए, अंधेरे में अकेली न रह जाए। इसलिए उसकी ममता को अपने सीने से लगाकर महसूस कीजिए कि आपके बचपन की बिखरी हुई तस्वीर को मां ने कितने करीने से सजाया था, कि आज पूरी दुनिया को उसकी नजरों से ही देख रहे हैं। बस, मां को अपनी नजरों से कभी ओझल मत करना वरना चाहकर भी बीता हुआ कल फिर वापस नहीं आएगा। क्योंकि मां की ममता दुनिया के किसी मंडी नहीं मिल पाएगा।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version