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भारतीय संस्कृति

मुक्ति का महत्व क्या है ?

संसार का सुख क्षणभंगुर है।लेकिन मुक्ति का आनंद वर्णनातीत है जो केवल अनुभव किया जा सकता है । उस परमानंद के सामने सांसारिक सुख कदापि महत्व नहीं पा सकते ।मानव के जीवन का उद्देश्य एकमात्र यही है कि वह परम आनंद को पाता रहे। परमानंद को पाकर उसकी पूर्ण आयु ,महाकाल पर्यंत रमण करता रहे […]

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अधिकार से पहले कर्तव्य अध्याय — 8 , गुरु के प्रति शिष्य के कर्तव्य

भारत में गुरु शिष्य परम्परा प्राचीन काल से है । हमारे प्राचीन वैदिक साहित्य में गुरुओं का भी गुरु परमपिता परमेश्वर को कहा गया है । वेद ने हमें यह शिक्षा दी है कि गुरुओं का भी गुरु परमपिता परमेश्वर है , क्योंकि ईश्वर ने सृष्टि के प्रारंभ में ही यह ज्ञान जिन ऋषियों को […]

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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष : कोरोना से मुक्ति दिलाएगा भारतीय योग

———————————— डॉ. वंदना सेन ———————————— वर्तमान में कोरोना संकट वैश्विक महामारी का रूप लेकर हम सभी को भयाक्रांत कर रहा है। यह सर्वविदित है कि कोई भी संक्रामक विषाणु उस शरीर को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं, जो शारीरिक व्याधियों से ग्रसित होते हैं। यही व्याधियां शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को हानि पहुंचाती हैं। […]

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ब्रह्मा के दिन रात और दिया हुआ दान

सतयुग ,त्रेता, द्वापर एवं कलयुग चारों युगों का योग 43 लाख 20 सहस्त्र वर्ष होता है। ऐसी 71 चतुर्युगियों का एक मन्वंतर होता है। 14 मन्वन्तरों का सृष्टि काल होता है। 14 मन्वन्तरों को ब्रह्म का एक दिन कहते हैं। इन के पश्चात प्रलय काल हो जाता है ।इस प्रलय काल को ब्रह्म की रात्रि […]

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अधिकारों से पहले कर्तव्य , अध्याय — 7 , वर्णों के अनिवार्य कर्तव्य

अधिकारों से पहले कर्तव्य , अध्याय — 7 <img class="i-amphtml-intrinsic-sizer" style="font-family: Roboto, 'Helvetica Neue', sans-serif; max-width: 100%; display: block !important;" role="presentation" src="data:;base64,” alt=”” aria-hidden=”true” /> भारत में ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों की व्यवस्था की गई है । चारों ही वर्ण अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण हैं । प्राचीन काल […]

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ईश्वर ने मनुष्य के कर्म करने के लिए बनाई है सृष्टि

  सृष्टि के प्रारंभ में अमैथुनी सृष्टि थी।इसमें भी मानव युवावस्था में उत्पन्न हुआ । क्योंकि यदि वह बाल्यावस्था में पैदा होता तो उसका पालन-पोषण कौन करता ? मनुष्य के अंदर बुद्धि का मंडल है, मन का मंडल है, प्रकृति का मंडल है, अंतरिक्ष का मंडल है ,आत्मा का मंडल है, अंतः करण का मंडल […]

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ईश्वर ने सृष्टि की उत्पत्ति क्यों की ?

ब्रह्म ने अपने अंदर व्याप्य प्रकृति और परमाणु से स्थूल जगत को बनाकर बाहर स्थूल रूप कर और आप उसी में व्यापक होकर साक्षी भूत आनंदमय हो रहा है। जब जगत उत्पन्न होता है तभी जीवों के विचार, ज्ञान ,ध्यान, उपदेश श्रवण में परमेश्वर प्रसिद्ध और बहुत स्थूल पदार्थों से सह वर्तमान होता है ।लेकिन […]

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प्रभु की शरणागति और उसके समक्ष समर्पण

  इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए हमें अपने पूर्वजों ,ऋषियों ,ज्ञानियों , ध्यानियों द्वारा स्थापित कुछ परंपराओं का निर्वहन करना होगा। हमें अपनी पुरातन व सनातन संस्कृति एवं सभ्यता में लौटना होगा। हमें वेदों की ओर चलना होगा । वेदों में बताए गए रास्ते पर चल कर ही जीवन और जगत में […]

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अधिकार से पहले कर्तव्य , अध्याय– 7, वर्णों के अनिवार्य कर्तव्य

भारत में ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों की व्यवस्था की गई है । चारों ही वर्ण अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण हैं । प्राचीन काल में भारत वर्ष में गुण – कर्म – स्वभाव के अनुसार व्यक्ति को उसका वर्ण प्राप्त होता था । इनमें से पहले वर्ण ब्राह्मण को […]

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नहीं की जा सकती वैदिक धर्म की किसी से तुलना

-स्व० चौधरी चरण सिंह (भू० पूर्व प्रधानमन्त्री, भारत सरकार) मैं जहां राजनीतिक क्षेत्र में महात्मा गांधी को अपना गुरु या प्रेरक मानता हूं, वहां धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में मुझे सबसे अधिक प्रेरणा महर्षि दयानन्द सरस्वती ने दी। इन दोनों विभूतियों से प्रेरणा प्राप्त कर मैंने धार्मिक व राजनीतिक क्षेत्र में पदार्पण किया था। एक […]

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