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भारतीय संस्कृति

स्वच्छता से अस्वच्छता की ओर

“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””” भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने स्वच्छता को ईश्वर उपासना में साधन माना है महर्षि पतंजलि ने शौच (जल से शरीर बाहरी अवयवों की शुद्धि) अष्टांग योग में यम नियमों में गणना की है| शरीर की स्वच्छता चित्त की एकाग्रता में वृद्धि करती है| हैंड वॉशिंग सबसे बड़ा प्रिवेंशन माना गया है रोगाणुओं विषाणु से […]

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इतिहास के पन्नों से भारतीय संस्कृति

स्वामी शंकराचार्य के ईश्वर के अस्तित्व पर शास्त्रार्थ का खोजपूर्ण वर्णन

ओ३म् ============ लगभग 23-24 सौ वर्ष पूर्व सनातन धर्म लुप्त प्रायः होकर देश में सर्वत्र नास्तिक मत छा गया था। इस अवधि में देश में स्वामी शंकराचार्य जी का प्रादुर्भाव होता है। वह वेद ज्ञान व विद्या से सम्पन्न थे। उन्होंने जैनमत के आचार्यों से उनकी अविद्यायुक्त मान्यताओं और वैदिक मत की सत्य मान्यताओं पर […]

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भारतीय संस्कृति

देश की उन्नति के लिए सत्य का मंडन और असत्य का खंडन होना आवश्यक है

ओ३म् ========== ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास में खण्डन-मण्डन की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डाला है। हम यहां उनके विचारों को अपने शब्दों में कुछ अन्तर के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। स्वामी जी कहते हैं कि हमारे देश के संन्यासी लोग ऐसा समझते हैं कि हम को खण्डन-मण्डन से क्या प्रयोजन? […]

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भारतीय संस्कृति

मूर्ति पूजा वेद आदि धर्म शास्त्रों के सर्वथा विपरीत है, यह परंपरा अर्वाचीन है प्राचीन नहीं

मूर्तिपूजा अर्वाचीन है, वेदादि शास्त्रों के विरुद्ध और अवैदिक है | फिर हम अपने ईश्वर को कैसे प्राप्त करें? हमारी उपासना-विधि क्या हो ? उपासना का अर्थ है समीपस्थ होना अथवा आत्मा का परमात्मा से मेल होना। महर्षि पतञ्जलि द्वारा वर्णित अष्टाङ्गयोग के आठ अङ्ग निम्न हैं | — यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, […]

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इतिहास के पन्नों से भारतीय संस्कृति

मनु महाराज के अनुसार टैक्स केवल वाणिज्यिक लोगों से ही लिया जाना चाहिए

उपकरणों से शिल्पकर्म रत #शूद्रों से कर न लिया जाय। ——— —————— टैक्स लेना राज्य का कर्तव्य और अधिकार दोनों है, लेकिन कैसी सरकार टैक्स ले सकती है और किससे कितना ले सकती है, इसके भी सिद्धांत गढे गए हैं, पहले भी और हाल में भी। ब्रिटिश जब कॉलोनी सम्राट हुवा करता था तब वहां […]

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भारतीय संस्कृति

शिव एक समन्वयकारी शक्ति का नाम है

डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र शिवत्व की प्रतिष्ठा में ही विश्व मानव का कल्याण संभव है शिव मानसिक शांति के प्रतीक हैं। वे अपनी तपस्या में रत अवस्था में उस मनुष्य का प्रतीकार्थ प्रकट करते हैं जिसे किसी और से कुछ लेना-देना नहीं रहता। जो अपने में ही मस्त और व्यस्त है; शांत है। ऐसी सच्ची शांति […]

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इतिहास के पन्नों से भारतीय संस्कृति

राम का वन गमन से पूर्व अपने पिता दशरथ और माता से प्रशंसनीय संवाद

ओ३म् ========== मर्यादा पुरुषोत्तम राम को हमारे पौराणिक बन्धु ईश्वर मानकर उनकी मूर्तियों की पूजा करते वा उनको सिर नवाने के साथ यत्र तत्र समय-समय पर राम चरित मानस का पाठ भी आयोजित किया जाता है। वाल्मीकि रामायण ही राम के जीवन पर आद्य महाकाव्य एवं इतिहास होने के कारण प्रामाणिक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ […]

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धर्म-अध्यात्म भारतीय संस्कृति

मनुष्य को इस सृष्टि के कर्त्ता और पालक ईश्वर के उपकारों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए

ओ३म् ============ मनुष्य मननशील प्राणी है। इसका शरीर उसने स्वयं उत्पन्न किया नहीं है। माता पिता से इसे जन्म मिलता है। माता पिता भी अल्पज्ञ एवं अल्प शक्ति वाले मनुष्य होते हैं। सभी मनुष्य व महापुरुष अल्पज्ञ ही होते हैं। कोई भी मनुष्य व इतर प्राणियों के शरीर को बनाना नहीं जानता। मनुष्य से भिन्न […]

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धर्म-अध्यात्म भारतीय संस्कृति

अपने देश और देशवासियों से प्रेम न करने वाला व्यक्ति सच्चा धार्मिक नहीं होता

ओ३म् ========= संसार में जितने मनुष्य हैं व अतीत में हुए हैं वह सब किसी देश विशेष में जन्में थे। उनसे पूर्व उनके माता-पिता व पूर्वज वहां रहते थे। जन्म लेने वाली सन्तान का कर्तव्य होता है कि वह अपने जन्म देने वाले माता-पिता का आदर व सत्कार करे। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव […]

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भारतीय संस्कृति

वैदिक व्यवस्था और भारतीय राजनीति

माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या: और भारत की राजनीति भारत की धर्मनिरपेक्ष राजनीति ने वेद और वैदिक संस्कृति को अछूत बनाकर रख दिया है । संविधान भी वेद की छाया से दूर रखने का हरसंभव प्रयास किया गया है। जिससे पता चलता है कि भारत की संविधान सभा में भी ऐसे लोग नहीं थे जो वेद […]

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