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भारतीय संस्कृति

आयुष्मान भवः

आयुष्मान भवः

गायत्री मंत्र – 
ओ३म् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात्।

हे सर्वरक्षक परमात्मा, प्राण स्वरूप, प्राणाधार, दुख:विनाशक, दुख:हर्त्ता, सुख स्वरूप, आनंद ऐश्वर्य के दाता, कीर्ति के प्रदाता, आप सवित हैं, उत्पादक हैं, प्रेरक हैं, प्रकाशक हैं, ज्योतिर्गमय हैं, ज्योत्सना हैं, शुद्ध ज्ञान-विज्ञान स्वरूप, देवों के देव महादेव परमात्मा आप का वरण करते हुए आपको धारण करें। आप की सदकृपा से हम सत्य एवं धर्म के मार्ग पर चलें। हे सच्चिदानंद स्वरूप आपके सत्याचरण से हमारे मन पवित्र हो, आपके शुद्ध ज्ञान-विज्ञान से हमारी बुद्धि पवित्र हो, आपके ज्ञान प्रकाश से हमारी आत्मा पवित्र हो, प्रकाशित हो। हे धर्मात्माओं के धर्मात्मा आप सदैव हमारे हृदय में निवास करें। इसी भावना से मैं गायत्री मंत्र, सविता मंत्र, गुरुमंत्र, महामंत्र से प्रार्थना करता हूँ। हे विधाता हम सदैव सत्कर्मों की ओर प्रेरित हों अर्थात् सत्पथ पर चलें।

परमात्मा की सृष्टि में मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ जीव माना गया है, लेकिन हमको मनुस्मृति के अनुसार मनुर्भवः की बात कही है अर्थात् हम मनुष्य बने। मनुष्य बनने का तात्पर्य मनुष्यता से है। गंवई भाषा में भी लोग कहते हैं कि मनुष्य शकल से ही आदमी जैसा दिखता है वरन अकल से तो कोई-कोई ही मनुष्य होता है। ऐसे ही मानव को महामानव कहा जाता है यथा श्री राम, महायोगीराज श्रीकृष्ण, आदित्य नैष्ठिक ब्रह्मचारी हनुमान, मदालसा, मैत्री, गार्गी जैसी विदुषियां, भगत सिंह, आजाद, बिस्मिल, बटुकेश्वर दत्त, दुर्गा भाभी, वीर शिरोमणि लक्ष्मी बाई वीर-वीरांगनाएं इत्यादि नामित अनामित अनेकानेक है।

महामानव बनने के लिए सर्वप्रथम दीर्घ-जीवी बनने का सुयत्न करें। वैदिक काल में आदि ऋषि, ब्रह्मा से लेकर महर्षि वेदव्यास पर्यंत अनेकानेक ऋषि, ऋषिकाएं एवं अनेक दिव्य महापुरुष हुए हैं जिन्होंने वेदानुकूल जीवनयापन से अपनी आयु को औसतन सौ वर्ष और उससे अधिक आयु प्राप्त की है। महाभारत काल में भी अब से ५१२२ वर्ष पहले गुरु द्रोणाचार्य, कुल पुरोहित कृपाचार्य, कुल संरक्षक भीष्म पितामहः (देवव्रत) की आयु के ठोस प्रमाण १७५ से २०० वर्ष के मिलते हैं। ७५ वर्ष के श्रीकृष्ण और २५ वर्ष के प्रद्युम्न को पहचानने में माता रुक्मणी को भ्रम हो जाता था । ऐसा यौवन था श्रीकृष्ण का। पूर्ण वेदानुकूल चलने पर मनुष्य अपनी आयु को ४०० वर्ष तक पूर्ण स्वस्थ रहते हुए प्राप्त कर सकता है ।

परंतु आज यह सब बातें अविश्वसनीय लगती हैं। महाभारत काल में प्रत्येक माता-पिता ने अपनी सात-सात पीढ़ियों को देखा था और उस समय युद्ध में पांच पीढ़ियों ने तो साथ-साथ युद्ध में भाग लिया था। वेद मंत्रों के आधार पर भी औसत आयु को सौ वर्ष माना गया है-

कुर्वन्नेवेहे कर्माणिजिजी शतं विषेत समाः (यजुर्वेदः ४०१२)

उत्तम कर्म करता हुआ मनुष्य इस संसार में सौ वर्ष जीने की चाह करें।

महाभारत काल में भी पितामहः भीष्म तत्कालीन शासक महाराज युधिष्ठिर का उपदेश देते हैं – 

ऋषियों दीर्घ संध्यात्वा दीर्घ – मायुर वाप्नयुः ।।

अर्थात् दीर्घ संध्या से भी मनुष्य दीर्घायु को प्राप्त होता है।

आगे वेद मंत्र कहता है-
ओ३म् यः हविष्कृतिम् आहूति दशात सः विश्वमान्युश्नवत्।

अर्थात् जो मनुष्य हवन में हवनीय आहुतियां देता है वह व्यक्ति भी पूर्ण आयु को प्राप्त करता है क्योंकि वैदिक संस्कृति का प्राण यज्ञ ही है। स्वाहा यज्ञ की आत्मा है और सुगंधी यज्ञ का सार है। 

एक स्थान पर वेद से उद्धृत है-

ओ३म् शतं जीवो शरदो वर्धमान् शत हेमन्ताञदतमु वसन्तान। शतमिद्राग्नी सविता वृहस्पति शतायुषाः हविषेमं पुनर्दः।। (ऋग्वेद १०/१६१/१८)
अर्थात् हमारे जीवन में १०० शरद, १०० हेमंत, १०० बसंत आदि ऋतुएं आऐं और इंद्र, अग्नि, सविता, बृहस्पति नामों से पुकारा जाने वाला परमात्मा १०० वर्षों तक हमारी रक्षा करें।

ओ३म् एव वा देवा वश्विना कुमार साहदेव्यः। ( ऋग्वेद ६/२४/७)
जो महानुभाव सुकुमार मन वाले होते हैं अर्थात् निष्पाप मन वाले होते हैं, अच्छे विद्वानों का सानिध्य प्राप्त कर सद्गुण धारण करें ऐसे महाशयों की भी दीर्घायु होती है।

आगे वेद में मंत्र दिशा बोध देता है
ओ३म् तेजोऽसि शुक्रममृतमा युष्या आयुर्मे पाहि।

हे ईश्वर हमें तेजस्विता, पवित्र बल और अमृत जीवन दो। हम अपने शुद्ध आहार-विहार-विचार से दीर्घायु प्राप्त करें।

इसी प्रकार
ओ३म् त्र्याषुम् जमदने कश्यपस्य त्र्याषुम्।
यद् देवेषु त्र्याषुम् तन्नो अस्तु त्र्याषुम्।।
(यजुर्वेदः ३/६२)
याज्ञिक परोपकारी, उत्तम दृष्टा निरीक्षक, सच्चा ज्ञानी विद्वान तिगुनी आयु प्राप्त कर के यशस्वी बनते हैं। 

ओ३म् आयुर्यज्ञेन कल्पताम्, प्राणो यज्ञेन कल्पताम्।
चक्षर्येज्ञन् कल्पताम्, श्रोतं यज्ञेन कल्पताम्।।

यज्ञ के द्वारा अर्थात् लोकहित के कार्यों द्वारा आयु, प्राण, दृष्टि एवं श्रवण शक्ति में श्री वृद्धि होती है। शुभ कर्मों से इंद्रियों के दोष दूर होते हैं। यही आयुष्मान होने की आधारशिला है आगे वेद भगवान उपदेश करते हैं-

ओ३म् तच्चचक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत, पश्येम् शरद शतं, जीवेम शरद शतं , श्रृणुयाम् शरद शतं।
प्रव्रवाम् शरद शतं अदीनाः श्याम शरद शतं भूयश्च शरद शतात।।
सूर्य में जिसका प्रकाश है, विद्वानों को सार्थक और पूर्व से ही पावन परमात्मा हमारी समस्त ज्ञानेंद्रियों, कर्मेंद्रियों को पवित्र एवं संयम बनाने वाला बनाये अर्थात् हम कभी निराश ना हो। हम सौ वर्ष एवं सौ वर्ष से भी अधिक स्वस्थ रहकर आयुष्मान प्राप्त करें। 

ओ३म् सोऽरिष्ट न मरिष्यसि, न मरिष्यसि मा विभे।
न वै तत्र म्रियन्ते, नो यन्त्यधमं तमः।। (अथर्व ८/१२/२४)

हे मनुष्य, निरोग रह कर कभी नहीं मरेगा। मरते वे हैं जो अज्ञानी होते हैं अर्थात् निर्भयता, निरोग आयु बढ़ाते हैं। यशस्वी ही दीर्घायु को प्राप्त होते हैं। जो मौत से डरता है वही अति शीघ्र इसका शिकार होता है।

Cowards die many times before their death but the brave die only once.

अतः करो योग रहो निरोग।

वेद मंत्र आयु की दिशा तय करता है-
ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुपाहनत
इन्द्रोह ब्रह्मचर्येण देवेभ्य: स्वराभरत् ॥
(अथर्व ११/५/१९)

ब्रह्मचर्य के तप से विद्वानों ने मृत्यु को दूर किया। इंद्र राजा भी ब्रह्मचर्य के द्वारा प्रजा को सुख देता है। वेदाचरण से व्यक्ति अपने आप ही आयुष्मान होता है।

पश्येम शरद् शतम्, जीवेम् शरद शतम्।
बुध्येम शरद शतम्, रोहेम शरद शतम्।।
पूर्षेम शरद शतम्, भवेम् शरद शतम्।
भूयेम शरद शतम्, भूयसी शरद शतात्।।
                              (अथर्व १९/६७/१-८)

हे परमात्मा हम सौ वर्ष तक देखें, सौ वर्षों तक जीते रहें, सौ वर्षों तक बुद्धि सृजनशील रहें, सौ वर्षों तक ज्ञान प्राप्त करते हुए अपने सिद्धांतों पर आरूढ़ रहें। सौ वर्षों तक पुष्ट रहकर पराक्रमी बने रहें। सौ वर्षों तक सब सामर्थ्य युक्त रहैं। सौ वर्षों से अधिक संतानवान रहें अतः जहां आपका जीवन यशस्वी है वही कीर्ति है, वही जीवन है। बिना यश वाला जीवन जिंदा लाशें होती है।

Life is burden without personality.

देखिए जीवन था मदालसा, मैत्री, गार्गी, दुर्गा भाभी, वीर शिरोमणि लक्ष्मीबाई का, मर्यादा पुरुषोत्तम राम का, महायोगीराज आप्त पुरुष श्री कृष्ण का, नैष्ठिक ब्रह्मचारी हनुमान का, भारत वसुंधरा पर आहुति देने वाले बलिदानियों का, उनको प्रेरणा देने वाले तथा विष खाकर भी राष्ट्र को बचाने वाले आदि शंकराचार्य एवं महर्षि दयानंद का। आयुष्मान होने का मूल मंत्र है – यस्य कीर्ति तस्य जीविता।

सादर-
गजेंद्र सिंह आर्य
राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता, पूर्व प्राचार्य
जलालपुर (अनूपशहर), बुलंदशहर -२०३३९०
उत्तर प्रदेश
चल दूरभाष – ९७८३८९७५११

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