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भारतीय संस्कृति

भारतीय संस्कृति की दिव्यता, अलौकिकता और भव्यता के प्रतीक हैं दीपावली के दीये

 कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल दीपक हमारे अन्त:चक्षुओं का प्रतिबिम्ब भी है जो सतत हमारे भौतिक एवं आध्यात्मिक विभागों के मध्य समन्वय का सेतु बनने का कार्य करता है। दीप की सतत् ज्वलित लौ, हमारी अन्तरात्मा के साथ सीधे सम्पर्क एवं साम्य स्थापित करने की अनुभूति प्रदान करती है। भारतीय धर्म-दर्शन में दीप का अपना अलग महत्व […]

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भारतीय संस्कृति

जीवन के लिए बहुत जरूरी है आदर्श आचार व्यवहार

आदर्श आचार-व्यवहार (दार्शनिक विचार) प्रेषक #डॉविवेकआर्य पूर्वाभिभाषी,सुमुखः,होता,यष्टा,दाता,अतिथीनां पूजकः,काले हितमितमधुररार्थवादी,वश्यात्मा,धर्मात्मा,हेतावीर्ष्यु,फलेनेर्ष्युः,निश्चिन्तः,निर्भीकः,ह्रीमान्,धीनाम्,महोत्साहः,दक्षः,क्षमावान्,धार्मिकः,आस्तिकः,मंगलाचारशीलः ।। ―(चरक० सूत्र० ८/१८) अर्थ―मनुष्य को चाहिये कि यदि अपने पास कोई मिलने के लिए आये तो उससे स्वयं ही पहले बोले। वह सदा प्रसन्नमुख, हँसता और मुस्कराता हुआ रहे। प्रतिदिन हवन और यज्ञ करने वाला हो। मनुष्य को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिये, […]

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आओ कुछ जाने भारतीय संस्कृति

हिंदू राष्ट्र भारत में ही है उन्नति का सार

के.एम. त्रिपाठी हम देखते हैं कि विभिन्न देशों की यात्राओं में जब हमारे राजनेता जाते हैं, तो उनके स्वागत के लिए विश्वभूमि के बन्धु संस्कृति की परम्पराओं, धार्मिक श्लोकों व हिन्दू संस्कृति के विविध प्रतीकों, पध्दतियों,कलाओं के माध्यम से उनका सम्मान करते हैं। भारत में भले ही छुद्र राजनैतिक स्वार्थों के लिए विभिन्न धड़े सनातन […]

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भारतीय जीवन दर्शन में भूमि ,नागरिक और राज्य

प्रो.लल्लन प्रसाद भारतीय जीवन दर्शन में पृथ्वी को मां की संज्ञा दी गयी है। रत्नगर्भा, वसुन्धरा ही जल, वायु, जीवन की पोषक है, पेड़, पौधे जंगल, पहाड़, फल, फूल, पशु-पक्षी, धन-धान्य की जननी है, हम सबकी मां है, कौटिल्य अर्थशास्त्र में मनुष्यों से युक्त भूमि को अर्थ कहा गया है। भूमि को प्राप्त करने और […]

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भारतीय संस्कृति

लोकहित ही रहा भारतीय धातु परंपरा का उद्देश्य

आर.के.त्रिवेदी विश्व के कल्याण का भाव लेकर ही भारत में धातुकर्म विकसित हुआ था। धातुकर्म के कारण ही भारत में बड़ी संख्या में विभिन्न धातुओं के बर्तन बना करते थे जो पूरी दुनिया में निर्यात किए जाते थे। धातुकर्म विशेषकर लोहे पर भारत में काफी काम हुआ था। उस परम्परा के अवशेष आज भी देश […]

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ऋग्वेद में वर्णित रोग और उनका निदान

कृपाशंकर सिंह ऋग्वेद की ऋचाओं में कुछेक रोगों के नाम भी मिलते हैं। इनमें यक्ष्मा, राजयक्ष्मा, हृदय रोग, दनीमा (बवासीर) हरिमा पृष्ठयामगयी आदि रोगों का उल्लेख है। इसमें से यक्ष्मा रोग का वर्णन कई ऋताओं में मिलता है। यक्ष्मा से ऋषियों का वास्तविक आशय किस तरह के रोग का है, यह पूरी तौर पर स्पष्ट […]

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भारतीय संस्कृति

कितना प्रासंगिक है प्राचीन भारतीय विज्ञान

डॉ. बिशन किशोर (भू.पू. आचार्य, यान्त्रिक इंजीनियरिंग, काशी हिंदी विश्वविद्यालय वाराणसी) विश्वगुरु भारत आज विज्ञान और तकनीकी के लिए विदेशों पर निर्भर है। परतन्त्रता में तो ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास गया जिससे हमारा अपना अस्तित्व पूर्णरूपेण विदेशी ज्ञान पर अवलम्बित हो गया। इसलिए हम समस्त ज्ञान आयात  कर रहे हैं। पहले परतन्त्र थे, अब […]

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इतिहास के पन्नों से भारतीय संस्कृति

सभ्यता की शक्ति में ही छिपी है भारत की आत्मा

प्रस्तुति -श्रीनिवास आर्य भारत के राजनेताओं का यह कत्र्तव्य है कि वे चुनाव से पहले मतदाताओं को अर्थात् राष्ट्र को यह बतलाएँ कि उनकी दृष्टि में भारत का बल क्या है और भारत की निर्बलता या कमजोरी क्या है? साथ ही बल को बढ़ाने के लिए और कमजोरी को खत्म करने के लिए कौन से […]

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भारतीय संस्कृति

जैसलमेर की कला संस्कृति और सोने जैसी माटी का कोई सानी नहीं

प्रीटी  राजस्थान पर्यटन विकास निगम जैसलमेर शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित मनोरम बालू के टीलों का भ्रमण करने के लिए परिवहन की शानदार व्यवस्था करता है। इन मनोरम टीलों की यात्रा किए बिना जैसलमेर की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी। थार मरूस्थल के बीच बसा राजस्थान का जैसलमेर शहर अपनी पीले पत्थर की […]

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नवरात्रों की दुर्गा पूजा और आयुर्वेद के ऋषि

देवेंद्र सिंह आर्य( चेयरमैन ‘उगता भारत’) नवरात्रों का दुर्गापूजा आदि से कोई सम्बन्ध नहीं। आयुर्वेद के ऋषियों ने इन दिनों में नौ तरह की औषधियों के सेवन का वर्णन किया है जिससे हम दीर्घायु, ऊर्जावान व बलवान बन सकते हैं। ये दिव्यगुणयुक्त औषधियां रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी बहुत सहायक हैं। नौ तरह […]

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