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आज का चिंतन

लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण से ही मिल सकती है मंजिल

डॉ. दिनेश चंद्र सिंह  जो व्यक्ति जिस क्षेत्र में उन्नति की पराकाष्ठा की मंजिल को प्राप्त करने का संकल्प धारण करते हैं, उन्हें उसी प्रक्रिया से कठिन, दुर्गम, अगम्य एवं असाध्य कष्ट की कंकड़ीली व अत्यंत परिश्रमपूर्ण, स्वलक्ष्य केंद्रित उपलब्धि के लिए संकल्प से सिद्धि की साधना करनी पड़ती है। भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान रही […]

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ईश्वर की दिव्य शक्ति – सत्ता

🌷 ईश्वर की सत्ता 🌷 वेद ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखते हैं और आस्तिकता के प्रचारक हैं। वेद नास्तिकता के विरोधी हैं। परन्तु संसार में कुछ व्यक्ति हैं जो ईश्वर की सत्ता को स्वीकार नहीं करते। वेद ऐसे लोगों की बुद्धि पर आश्चर्य प्रकट करता है और उनकी भर्त्सना करता है। न तं विदाथ […]

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भजनोपदेशक पं. ओमप्रकाश वर्मा के जीवन का कश्मीर में प्रचार विषयक एक प्रेरक एवं रोचक प्रसंग”

ओ३म् पं. ओमप्रकाश वर्मा आर्यसमाज की पिछली पीढ़ियों से परिचित एकमात्र ऐसे आर्योपेदेशक थे जिन्हें आर्यसमाज के वरिष्ठ संन्यासियों, भजनोपदेशकों, आर्यविद्वानों के साथ कार्य करने का अनुभव प्राप्त था। उनके स्मृति-संग्रह में आर्यसमाज के गौरव को बढ़ाने वाली अनेक ऐतिहासिक घटनायें थी जिन्हें आर्यजन एवं इसके शीर्ष विद्वान भी उनसे लेखबद्ध करने का आग्रह करते […]

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“मनुष्य जीवन की चहुंमुखी उन्नति विद्या की वृद्धि से ही सम्भव है”

ओ३म् ========= मनुष्य के जीवन के दो यथार्थ हैं, पहला कि उसका जन्म हुआ है और दूसरा कि उसकी मृत्यु अवश्य होगी। मनुष्य को जन्म कौन देता है? इसका सरल उत्तर यह है कि माता-पिता मनुष्य को जन्म देते हैं। यह उत्तर सत्य है परन्तु अपूर्ण भी है। माता-पिता तभी जन्म देते हैं जबकि ईश्वर […]

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————– कहु सीता बिधि भा प्रतिकूला

विमल कुमार परिमल भारतीय संस्कृति की निर्माण-प्रक्रिया में रामकथा की लोकप्रियता और जनस्वीकार्यता एक महत्वपूर्ण अवयव है. इसी तरह रामकथा के विकास में सीता की अहम भूमिका है. सर्वोत्तम गुण सम्पन्न नारी के पर्याय के रूप में सीता का नाम आता है. यह अलग बात है कि लोकप्रचलित रामकथा में राम का नायकत्व अधिक प्रभावी […]

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‘स्वराज्य वा स्वतन्त्रता के प्रथम मन्त्र-दाता महर्षि दयानन्द’

ओ३म् ============== महाभारत काल के बाद देश में अज्ञानता के कारण अन्धविश्वास व कुरीतियां उत्पन्न होने के कारण देश निर्बल हुआ जिस कारण वह आंशिक रूप से पराधीन हो गया। पराधीनता का शिंकजा दिन प्रतिदिन अपनी जकड़ बढ़ाता गया। देश अशिक्षा, अज्ञान, अन्धविश्वास, पाखण्ड व सामाजिक विषमताओं से ग्रस्त होने के कारण पराधीनता का प्रतिकार […]

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पृथिवी सहित समस्त सृष्टि को परमात्मा ने जीवात्माओं के लिये बनाया है”

ओ३म् ============== हमारा यह संसार अर्थात् हमारी पृथिवी, सूर्य, चन्द्र आदि सब ग्रह-उपग्रह प्रकृति नामक अनादि सत्ता से बने हैं। प्रकृति की संसार में चेतन ईश्वर व जीवात्मा से भिन्न स्वतन्त्र जड़ सत्ता है। इस अनादि प्रकृति को परमात्मा व अन्य किसी सत्ता ने नहीं बनाया है। इस प्रकृति का अस्तित्व स्वयंभू और अपने आप […]

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“विश्व के प्रथम ग्रन्थ वेदों का हिन्दी में प्रचार और आर्यसमाज”

ओ३म् ========= धार्मिक एवं सामाजिक संस्था आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने 10 अप्रैल, सन् 1875 को मुम्बई नगरी में की थी। स्वामी जी की मातृभाषा गुजराती थी। आर्यसमाज एक धार्मिक एवं सामाजिक संगठन व आन्दोलन है जिसका उद्देश्य धर्म, समाज व राजनीति के क्षेत्र से असत्य को दूर करना व उसके […]

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दूसरों से सहयोग लेने का विचार कम ही रखें : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

“किसी से कुछ मांगने पर अथवा सहयोग लेने पर व्यक्ति के स्वाभिमान पर चोट लगती है। इस चोट से बचने के लिए दूसरों से सहयोग लेने का विचार कम ही रखें, और अधिक से अधिक स्वात्मनिर्भर होकर स्वाभिमान से जिएं।” जीवन जीने की पहली पद्धति — “कुछ लोग स्वाभिमानी होते हैं, जो स्वात्मनिर्भर होकर जीवन […]

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यदि वृक्ष के फल चाहिए तो पहले वृक्ष का विकास और उसकी सुरक्षा करनी होगी : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

“यदि वृक्ष के फल चाहिएँ, तो पहले वृक्ष का विकास एवं उस की सुरक्षा करनी होगी।” फल कहां लगते हैं? वृक्षों पर। अतः फल प्राप्त करने के लिए पहले वृक्षों की आवश्यकता है। उसके बाद ही फल मिल सकते हैं। इस बात को यदि दार्शनिक भाषा में कहें, तो ऐसे कहेंगे, कि “कारण के बिना […]

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