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समाज

अपनों से ही शर्मसार होती मानवता

राजेंद्र प्रसाद शर्मा आंकड़े भले ही दिल्ली के हों, पर कमोबेश यह तस्वीर सारी दुनिया की देखने को मिलेगी। राजधानी दिल्ली में 2017 की आपराधिक गतिविधियों की बाबत दिल्ली पुलिस द्वारा इसी माह जारी आंकड़ों में कहा गया है कि बलात्कार के सत्तानवे फीसद मामलों में महिलाएं अपनों की ही शिकार होती हैं। अपनों से […]

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राजनीति

नई संभावनाओं का सफर

शोभना जैन भारत यात्रा पर आए इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में दोनों देशों के शिष्टमंडलों के बीच हुई गहन मंत्रणा के बाद नेतन्याहू के सम्मान में सरस माहौल में भोज का आयोजन चल रहा था। अतिथियों के मनोरंजन के लिए लाइव बैंड मधुर संगीत की लहरियां छेड़े हुए […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-64

गीता का ग्यारह अध्याय और विश्व समाज अर्जुन कह रहा है कि मैं जो कुछ देख रहा हूं उसकी शक्ति अनन्त है, भुजाएं अनन्त हैं, सूर्य चन्द्र उसके नेत्र हैं, मुंह जलती हुई आग के समान है। वह अपने तेज से सारे विश्व को तपा रहा है। वह सर्वत्र व्याप्त होता दीख रहा है-सर्वत्र विस्तार […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-63

गीता का आठवां अध्याय और विश्व समाज स्वामी चिन्मयानन्द जी की बात में बहुत बल है। आज के वैज्ञानिकों ने ‘गॉड पार्टीकल’ की खोज के लिए अरबों की धनराशि व्यय की और फिर भी वह ‘गॉड पार्टीकल’ अर्थात ब्रह्मतत्व की वैसी खोज नहीं कर पाये-जैसी हमारे श्री ऋषि-महर्षियों ने हमें युगों पूर्व करा दी थी। […]

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संपादकीय

संविधान सभा में सरदार पटेल का वह अविस्मरणीय भाषण

सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय स्वातंत्र्य समर के एक दैदीप्यमान नक्षत्र हैं। उनकी स्पष्टवादिता और कड़े निर्णय लेने में दिखायी जाने वाली निडरता आज तक लोगों को रोमांचित कर देती है। बात उस समय की है जब देश की संविधान सभा में संयुक्त निर्वाचन पद्घति पर बहस चल रही थी। तब श्री नजीरूद्दीन अहमद जैसे कई […]

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संपादकीय

संविधान नहीं राजनीति बदलो

भारत अपना 68वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। अब से ठीक 68 वर्ष पूर्व भारत ने अपने गणतान्त्रिक स्वरूप की घोषणा की थी। 26 जनवरी 1950 से देश ने अपने राजपथ के गणतंत्रीय स्वरूप को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया। अब 68 वर्ष पश्चात देश के कई लोगों को चिन्ता होने लगी है कि भारत का […]

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संपादकीय

भारत की संस्कृति में रची-बसी हैं गणतंत्र की उच्च भावनाएं

भारत के 68वें गणतंत्र दिवस की पावन बेला है। मैंने सोचा कि अपने सुबुद्घ पाठकों के लिए कोई ऐसी भेंट इस अवसर पर दी जाए जो उन्हें गणतंत्र के पुजारी इस भारत देश की सनातन ज्ञान परम्परा से जोड़े और उन्हें आनन्दित व रोमांचित कर डाले। इसी क्रम में यह आलेख तैयार हो गया।  हमारी […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-62

गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज ”तुझे पर्वतों में खोजा तो लिये पताका खड़ा था। तुझे सागर मेें खोजा तो मां के चरणों में पड़ा था। सर्वत्र तेरे कमाल से विस्मित सा था मैं, मुझे पता चल गया तू सचमुच सबसे बड़ा था।।” ईश्वर को खोजने वाली दृष्टि होनी चाहिए-फिर सारी सृष्टि में वही […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

गुजरी माता जोरावर सिंह और फतेह सिंह का अप्रतिम बलिदान

अपना कत्र्तव्य पथ कभी नही छोड़ा महान कठिनाईयों के आक्रमणों से व्यक्ति का जीवन महान बनता है। गुरू गोबिन्दसिंह की महानता इस बात में छिपी है कि उन्होंने अपने जीवन में महान कठिनाईयों का सामना हंसते-हंसते किया और अपना कत्र्तव्य पथ कभी नही छोड़ा।  कृतघ्न गंगाराम को ‘पुरस्कार’ एक बार सिरसा नदी की बाढ़ के […]

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बिखरे मोती

चित्त-बुद्घि दोनों ही अंग, ज्ञान से हैं भरपूर

बिखरे मोती-भाग 217 गतांक से आगे…. इससे स्पष्ट हो गया है कि इन सबका आधार ‘मन’ है। अत: वाणी और व्यवहार को सुधारना है तो पहले मन को सुधारिये। इसीलिए यजुर्वेद का ऋषि कहता है-‘तन्मे मन: शिव संकल्पमस्तु’ अर्थात हे प्रभु! मेरा मन आपकी कृपा से सदैव शुभ संकल्प वाला हो, अर्थात अपने तथा दूसरे […]

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