लेखक:- डॉ. जीतराम भट्ट, (निदेशक, डॉ. गो.गि.ला.शा. प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान) कुछ लोगों का कहना है कि संस्कृत केवल पूजा-पाठ की ही भाषा है। किन्तु यह सत्य नहीं है। संस्कृत-साहित्य के केवल पॉच प्रतिशत में धर्म की चर्चा है। बाकी में तो दर्शन, न्याय, विज्ञान, व्याकरण, साहित्य आदि विषयों का प्रतिपादन हुआ है। संस्कृत पूर्ण रूप से […]
लेखक: उगता भारत ब्यूरो
ओ३म् ========= वेद मनुष्य के गुण, कर्म व स्वभाव को महत्व देते हैं। जो मनुष्य श्रेष्ठ गुण, कर्म व स्वभाव वाला है वह द्विज और गुण रहित व अल्पगुणों वाला है उसे शूद्र कहा जाता है। द्विज ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य को कहते हैं जो गुण, कर्म व स्वभाव की उत्तमता से होते हैं। ब्राह्मण […]
अमृत महोत्सव लेखमाला सशस्त्र क्रांति के स्वर्णिम पृष्ठ — भाग-12 नरेन्द्र सहगल यद्यपि प्रथम विश्व युद्ध के समय लड़खड़ाते ब्रिटिश साम्राज्यवाद के सीने पर भारतीय सशस्त्र क्रांतिकारियों द्वारा लगने वाला प्रचंड प्रहार मात्र एक अंग्रेज भक्त की गद्दारी के कारण विफल हो गया परंतु इस विफलता से सरफरोशी देशभक्त क्रांतिकारियों के मन में अपने वतन […]
श्रावण माह अज्ञानियों के लिए ज्ञान का संदेशवाहक बनकर आता है और जनसामान्य को कल्याणपथ पर चलने की ओर प्रेरित करता है। गर्मी के बाद जब वर्षा होती है, तो मानव चित्त वातावरण के अनुकूल होने से शान्त रहता है तथा मन प्रसन्न रहता है। श्रावणी का उत्सव इसी वर्षा के साथ आता है और […]
स्वामी श्रद्धानन्दजी की कलम से- रक्षाबन्धन का संदेश [‘रक्षाबन्धन’ पर्व पर विशेष रूप से प्रकाशित ] माता का पुत्र पर जो उपकार है उसकी संसार में सीमा नहीं। यही कारण है कि हर समय और हर देश में मातृशक्ति का स्थान अन्य शक्तियों से ऊंचा समझा जाता है। जहां ऐसा नहीं है वहां सभ्यता और […]
#रक्षा_बन्धन का मूल नाम #श्रावणी_उपाकर्म, #ऋषि_तर्पण, #वेद_स्वाध्याय #यज्ञोपवीत_धारण_पर्व है। १) #श्रावणी_उपाकर्म – “#श्रावण” शब्द का अर्थ सुनना और श्रावणी जिसका अर्थ होता है सुनाये जाने वाली। क्या सुनाये जाने वाली? जिसमें वेदों की वाणी को सुना जाये। वह “श्रावणी” कहाती है। अर्थात् जिसमें निरन्तर वेदों का श्रवण और स्वाध्याय और प्रवचन होता रहे। वह श्रावणी […]
अमृत महोत्सव लेखमाला सशस्त्र क्रांति के स्वर्णिम पृष्ठ — भाग-11 बलिदान से पहले मातृभूमि की वंदना ‘रख दे कोई जरा सी खाक-ए-वतन कफ़न पे’ बिस्मिल, अशफाक, लाहिड़ी, रोशन सिंह ने पिया शहादत का जाम नरेन्द्र सहगल प्रथम विश्व युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात इंग्लैंड की साम्राज्यवादी लिप्सा बहुत अधिक बढ़ गई। इधर भारत […]
संसार को बिना असत्य माने जैसा कि हम पहले अध्यायों में सिद्ध कर चूके हैं , ईश्वर की सत्यता सिद्ध नहीं होती। अत: ईश्वर का अस्तित्व संसार को असत्य सिद्ध करने में सबसे प्रथम स्थान रखता है। ईश्वर के रुप का चिन्तन करने से संसार आप से आप असत्य प्रतीत होने लगता है। ईश्वर का […]
अमृत महोत्सव लेखमाला सशस्त्र क्रांति के स्वर्णिम पृष्ठ — भाग-10 नरेन्द्र सहगल सशस्त्र क्रांति के नवयुवक योद्धाओं द्वारा अत्याचारी अंग्रेज शासकों के सीने पर निरंतर पड़ रहे प्रचंड प्रहारों से दुखी होकर अथवा घबराकर अंग्रेजों ने एक बार फिर साम दाम दंड भेद की एकतरफा नीति के तहत भारतीयों को कुछ राजनीतिक सुविधाएं देने का […]
“हिन्दू जाति का भयंकर भ्रम” — परस्पर-विरोधी सब विचार सत्य कैसे ? हिन्दू जाति के अनेक रोगों में से एल भयंकर रोग यह है कि ये लोग संसार के सभी धर्मों को सच्चा मानते हैं । यदि मुसलमानों से पूछों तो वे कहेंगे कि हमारा धर्म अन्य धर्मों की अपेक्षा श्रेष्ठ है और अन्य धर्म […]