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पर्व – त्यौहार

श्रावणी व रक्षाबन्धन पर्व आगामी 30 अगस्त पर- “वेदों का स्वाध्याय एवं वैदिक जीवन जीने का पर्व है श्रावणी पर्व”

ओ३म् ========== श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन देश के आर्य व हिन्दू बन्धु श्रावणी पर्व को मनाते हैं। वैदिक धर्म तथा संस्कृति 1.96 अरब वर्ष पुरानी होने से विगत तीन-चार हजार वर्ष पूर्व उत्पन्न अन्य सब मत-मतान्तरों से प्राचीन है। वैदिक धर्म के दीर्घकाल के इतिहास में लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत […]

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आज का चिंतन

ओ३म् “वेद एवं सत्यार्थप्रकाश”

========= वेद सृष्टि के आद्य अर्थात् सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं। शास्त्रीय परम्परा में वेदों को ईश्वर का नित्य ज्ञान कहा गया है जिसमें न कभी, पूरी सृष्टि अवधि में, कमी होती है न वृद्धि होती हैं क्योंकि वह अन्तिम एवं पूर्ण हैं। वेदों का अध्ययन कर जब परीक्षा करते हैं तो वेद वस्तुतः सृष्टिकर्ता ईश्वर […]

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आज का चिंतन हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

ईमानदारी की मिसाल -आर्यसमाज

यह घटना सन् 1947 में भारत के विभाजन से पूर्व की है। आर्यसमाज के विद्वान एवं शास्त्रार्थ महारथी पं. लोकनाथ तर्कवाचस्पति एक गांव में प्रचारार्थ आये थे। वहां बिजली नहीं थी। पानी के लिए कुएं पर जाना होता था वा रहट चलते थे। उपदेश्क भी प्रातः निकल जाते थे। पंडित जी एक दिन रहट पर […]

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आज का चिंतन

आर्यसमाज धामावाला-देहरादून का साप्ताहिक सत्संग- “यज्ञ करने वाला व्यक्ति कभी निर्धन नहीं होताः आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री”

ओ३म् =========== आज रविवार दिनांक 16-7-2023 को आर्यसमाज, धामावाला-देहरादून के सत्संग में यज्ञ, भजन, सामूहिक प्रार्थना एवं वैदिक विद्वान आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री, सहारनपुर का व्याख्यान हुआ। सत्संग प्रातः 8.00 बजे से आरम्भ होकर दो घंटे बाद 10.00 बजे समाप्त हुआ। अपने व्याख्यान में आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री जी ने कहा कि संसार में चारों तरफ अविद्या […]

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भारतीय संस्कृति

ओ३म् “ईश्वर का ध्यान करते हुए साधक को होने वाले कतिपय अनुभव”

========== मनुष्य का आत्मा चेतन सत्ता वा पदार्थ है। उसका कर्तव्य ज्ञान प्राप्ति व सद्कर्मों को करना है। ज्ञान ईश्वर व आत्मा संबंधी तथा संसार विषयक दो प्रकार का होता है। ईश्वर भी चेतन आत्मा की तरह से एक चेतन पदार्थ है जो सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वज्ञ, निराकार, सर्वव्यापक एवं सर्वान्तर्यामी सत्ता है। ईश्वर व आत्मा दोनों […]

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आज का चिंतन

ओ३म् “ब्रह्मचर्यादि चार आश्रमों में गृहस्थ आश्रम ही ज्येष्ठ आश्रम है”

========== वैदिक धर्म वह धर्म है जिसका आविर्भाव ईश्वर प्रदत्त ज्ञान ‘वेद’ के पालन व आचरण से हुआ है। वैदिक धर्म के अनुसार मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त शिक्षाओं को ही मानना व आचरण करना होता है। ऐसे ग्रन्थ वेद हैं जिसमें परमात्मा के सृष्टि की आदि में दिए गये सभी वचन व शिक्षायें विद्यमान है। […]

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व्यक्तित्व

ओ३म् -स्वामी जी के 76-वे जन्म दिवस पर- ‘हम सबके प्रेरणास्रोत और श्रद्धास्पद स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती’

=========== परम पिता परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में संसार के सभी मनुष्यों के पूवर्जों को वेदों का ज्ञान दिया था और आज्ञा की थी कि जीवात्मा व जीवन के कल्याण के लिए संसार की प्रथम वैदिक संस्कृति को अपनाओं व धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के मार्ग का अनुसरण करो। इस मार्ग पर चलने […]

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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

ओ३म् -आचार्य जी की ७ जुलाई को १०९-वी जयन्ती पर- “सामवेद भाष्यकार आचार्य रामनाथ वेदालंकार अपनी वेद-सेवा के लिए अमर हैं और सदा रहेंगे”

============ ऋषि दयानन्द की शिष्य मण्डली एवं विश्व के शीर्ष वैदिक विद्वानों में आचार्य डा. रामनाथ वेदालंकार जी का गौरवपूर्ण स्थान है। अपने पिता की प्रेरणा से गुरुकुल कागड़ी, हरिद्वार में शिक्षा पाकर, वहीं एक उपाध्याय व प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवायें देकर तथा अध्ययन, अध्यापन, वेदों पर चिन्तन व मनन करके आपने देश […]

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आज का चिंतन

आर्यसमाज धामावाला-देहरादून का साप्ताहिक सत्संग- “दीपक की तरह ऋषि दयानन्द ने वेदज्ञान का प्रकाश विश्व में फैलायाः स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती”

ओ३म् ========= आर्यसमाज, धामावाला-देहरादून के साप्ताहिक सत्संग में आज दिनांक 2-7-2023 को प्रातः 8.00 बजे से समाज के पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री के पौरोहित्य में यज्ञशाला में यज्ञ हुआ। यज्ञ के बाद शास्त्री जी ने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘विषयों में फंस कर बन्दे हुआ तू बेखबर है, मानव का चोला पाया […]

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आज का चिंतन

ओ३म् “वेदों की रक्षा व प्रचार से ही विश्व में मानवता की रक्षा सम्भव है”

========= मनुष्य को दुर्गुणों व दुव्र्यसनों सहित अज्ञान, अन्धविश्वास, पाखण्ड, मिथ्या सामाजिक परम्पराओं सहित अन्याय व शोषण से रहित मनुष्य-जीवन की रक्षा के लिये सदाचारी विद्वानों, देवत्वधारी पुरुषों सहित वेदज्ञान की भी आवश्यकता होती है। यदि समाज में सच्चे ज्ञानी व परोपकारी मनुष्य न हों तो समाज में अज्ञान की वृद्धि होकर अन्याय, शोषण तथा […]

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