अब की संस्कृति का मूल सिद्धांत तो वेद वाणी है। जिसमें पुनर्जन्म की बात कही गई है। ऋषि श्रृंग का भी पुनर्जन्म होना वेद संगत है। महर्षि श्रृंग द्वारा सुनाये गए आध्यात्मिक विषय से वेद के पुनर्जन्म संबंधित सिद्धांत की पुष्टि होती है। अमर ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के चतुर्थ समुल्लास में धर्म महिमा का विवरण […]
लेखक: देवेंद्र सिंह आर्य
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।
मुनिवरो ! यह सत्य युग के काल का समय है।हमारे गुरु ब्रह्मा वेद के प्रकांड पंडित और विद्या के भंडार थे l मुनिवर देखो ! उनका महान से सिर मंडल भी था उनके एक पुत्र महा सृष्टु मुनि महाराज थे। मुनि वरो! एक समय महा सृष्टू मुनि महाराज अपनी तुंबा नाम की धर्मपत्नी के साथ […]
45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आते हैं, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द होता है। अंग्रेज उससे दिन भर कोल्हू में बैल की जगह हाँकते हुए तेल पेरवाते हैं, रस्सी बटवाते हैं और […]
दुनिया की भागम भाग है, कोई गुरु के पास दौड़ रहा है ,कोई आश्रम जा रहा है, कोई तीर्थ जा रहा है ,कोई चार धामों की यात्रा के लिए भागम भाग कर रहा है, कोई 12 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा के लिए दौड़ रहा है, कोई बिस्तर पर अशांत है, कोई अधिक धन के होते हुए […]
कितना विशुद्ध, कितना विशाल, कितना विस्तृत, कितना विरल ,कितना विराट ,कितना स्वाभाविक, कितना प्राकृतिक, कितना परिष्कृत, कितना परिमार्जित रूप है उसका जिस अदृश्य, अगोचर, अजर, अमर ,अभय, अगम, अनुपम ,अतुलनीय शक्ति अर्थात परमपिता परमेश्वर की बात हम कर रहे हैं । जिसका निज नाम है – ओ३म। कितना प्यारा नाम है – ओ३म। शेष सभी […]
जब-जब धर्म की हानि हुई है तब तक भारत भूमि पर कोई न कोई ऐसा महामानव अवतरित हुआ है जिसने पथभ्रष्ट और धर्मभ्रष्ट मानव समाज को सही रास्ता दिखाया है ।आज समाज में जो परिस्थितियां पुनः निर्मित हो रही हैं उनमें पुनः एक चुनौती की झंकार है, एक ललकार है ,एक पुकार है हमें विश्वास […]
कार्यशील वर्ग ने अकर्मण्य वर्ग का और साहसी वर्ग ने कायर वर्ग का सदैव शोषण किया है । मनुष्य को आज एक दूसरे का दु:ख दर्द समझने की फुर्सत नहीं है । ना ही यह सोचने का वक्त है कि वह आधुनिकता की इस दौड़ में कहां जा रहा है ? मनुष्य ने दुनिया को […]
जमाना नहीं मानव की सोच बदली है। सफलता और उन्नति के इस समय में जहां हमने बहुत कुछ पाया है वहीं वह कुछ खोया भी है ।हमने विकास के शिखरों को तो छू लिया लेकिन पतन के गर्त में भी गिरे हैं ।अपने पतन की पराकाष्ठा की ओर अभी हमने ध्यान नहीं दिया तो फिर […]
उपनिषद भारतीय सांस्कृतिक वांग्मय की अमूल्य धरोहर हैं। इनकी मैक्समूलर, फ्रॉयड जैसे कितने ही विदेशी विद्वानों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। वास्तव में मानवीय व्यवहार और उसकी उन्नति में उपनिषदों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । उपनिषदों का प्रतिपाद्य विषय है कि जो कुछ ब्रहमांड में है वही पिंड में है। पिंड का […]
जीवन का एक रूप है – श्वास। यदि मनुष्य श्वास रहित हो जाए तो मृत हो जाता है । श्वासों का खेल जब तक चल रहा है तब तक हम सब गतिमान हैं। श्वासों का खेल खत्म हो गया तो जीवन मेला खत्म हो गया ,लेकिन मनुष्य इनका कोई मूल्य न समझकर इन सांसों को […]