भीष्म जी के भीतर अपार धैर्य था । उन्होंने कई प्रकार की पीड़ाओं को सहन करते हुए भी कहीं पर भी असंयत भाषा का प्रयोग नहीं किया । उनकी बात को धृतराष्ट्र ने भी स्वीकार नहीं किया, परंतु इसके उपरान्त भी से उसके प्रति सद्भाव बनाए रखने में सफल रहे। एक प्रकार से उनके भीतर […]
श्रेणी: कहानी
( महाभारत का युद्ध तो हुआ पर इससे वैदिक संस्कृति का भारी अहित हुआ । करोड़ों वर्ष से जिस संस्कृति के माध्यम से विश्व का मार्गदर्शन हो रहा था उसे इस युद्ध ने बहुत अधिक क्षतिग्रस्त कर दिया। 18 अक्षौहिणी सेना के अन्त से इतना अधिक राष्ट्र का अहित नहीं हुआ जितना वैदिक संस्कृति के […]
( हमारे देश के इतिहास में ऐसे अनेक वीर योद्धा हुए हैं जिन्होंने अपने पूर्वजों के सम्मान और वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया । ऐसे वीर योद्धाओं में पांडु पुत्र भीमसेन के पुत्र घटोत्कच का नाम भी उल्लेखनीय है। महाभारत के युद्ध में घटोत्कच का प्रवेश भीष्म पितामह के […]
वीरांगना माता ने संजय से कहा कि “पुत्र ! जो लोग इस संसार में केवल संतान पैदा करने के लिए आते हैं, उन्हें इतिहास में कभी सम्मान नहीं मिलता । दान , तपस्या, सत्यभाषण, विद्या और धनोपाजर्न में जिसके शौर्य का सर्वत्र बखान नहीं होता, वह मनुष्य अपनी माता का पुत्र नहीं, मलमूत्र मात्र है। […]
( बात उस समय की है जब विराट नगरी से चलकर आए श्री कृष्ण जी को दुर्योधन ने भरी सभा में अपमानित किया और जब श्री कृष्ण जी पांडवों के लिए मात्र पांच गांव मांग कर समस्या का समाधान प्रस्तुत कर रहे थे तो उसका भी दुर्योधन ने उपहास किया। उसने श्री कृष्ण जी से […]
जैसा अर्जुन ने सोचा था, वैसा ही हुआ। राजकुमार उत्तर ने जैसे ही कौरव दल के हाथियों, घोड़ों और रथों से भरी हुई विशाल सेना को देखा तो उसके रोंगटे खड़े हो गए । उसने अर्जुन से कह दिया कि मुझ में कौरवों के साथ युद्ध करने का साहस नहीं है । डर के कारण […]
( बात उस समय की है जिस समय पांडव राजा विराट के यहां अज्ञातवास भोग रहे थे। उस समय तक कीचक का अंत हो चुका था। उसने अपने जीते जी कई पड़ोसी राजाओं को आक्रमण कर करके बड़ा दु:खी किया था। उन्हीं में से एक त्रिगर्त देश के राजा सुशर्मा थे । उन्होंने हस्तिनापुर की […]
सैरंध्री कीचक द्वारा किए गए अपने अपमान को भुला नहीं पा रही थी। अब वह उस पापी के अंत की योजना पर विचार करने लगी। तब एक दिन उसने निर्णय लिया कि आज रात्रि में जाकर भीम को बताया जाए और उसके द्वारा इस नीच पापी का अंत कराया जाए। सैरंध्री ने यही किया और […]
( महाभारत के एक प्रमुख पात्र के रूप में विख्यात रहे भीमसेन को सामान्यतः मोटी बुद्धि का माना जाता है। यद्यपि महाभारत के अध्ययन से पता चलता है कि वह बहुत अधिक बुद्धिमान व्यक्ति था। चरित्र में वह उतना ही ऊंचा था जितने अन्य पांडव थे। वह परनारी के प्रति अत्यंत आदर और सम्मान का […]
(अर्जुन धर्मराज युधिष्ठिर के अनुज थे। वह अपने आदर्श चरित्र के लिए भी जाने जाते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि अर्जुन आजीवन ब्रह्मचारी रहे भीष्म पितामह के सबसे प्रिय पौत्र थे। उन्हें दादा भीष्म के साथ रहकर उनके चरित्र के आदर्श गुणों को अपनाने का अवसर मिला। अर्जुन के बारे में सामान्यतया […]