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कविता

कुंडलियां … 23 मद में व्यर्थ है सेठ

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अहंकार सबसे बुरा, करे मनुज का नाश।
बड़े बड़े रावण गए, बुरा कहे इतिहास।।
बुरा कहे इतिहास, जगत की खाते गाली।
मानवता से रिश्ता होता ज्यों कीड़ा व नाली।।
इतने वर्ष बाद भी रावण, मार रहा फुंकार ।
राम नाम के फूल हैं, रावण को अहंकार ।।

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राट- विराट – सम्राट सब, चढ़ गए मद की भेंट।
ऊंचा देख आवास को , मद में व्यर्थ है सेठ।।
मद में व्यर्थ है सेठ, भूमि बने बिछौना तेरा ।
चार दिनों की चांदनी , फिर है घना अंधेरा।।
तू इतराता व्यर्थ जगत में, मिट जाएंगे ठाठ।।
त्याग भाव से जी , मत समझ स्वयं को राट।।

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चौड़ी छाती कर रहा, देख भवन की ओर।
अकड़ में तिंजड़ हो रहा, व्यर्थ मचाके शोर।।
व्यर्थ मचाके शोर, जीवन यूं बीता जाता।
अकड़ में जीवन जीता, कभी नहीं मुस्काता।।
खेलों में भवन बनाता, सपनों में बने किरोड़ी।
खेल भवन के जंगल में करता छाती चौड़ी।।

दिनांक : 8 जुलाई 2023

डॉ राकेश कुमार आर्य

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